Ghazal | दुर जब से ख़ुशी के साये हो गये
दुर जब से ख़ुशी के साये हो गये
( Door Jub Se Khoosi Ke Saye Ho Gaye )
दुर जब से ख़ुशी के साये हो गये!
जख़्म दिल में ग़म के गहरे हो गये
कौन सच्ची वफ़ायें निभाता है अब
देखिए अब दिलों में धोखे हो गये
आंख भरके वफ़ा की नहीं देखते
कुछ फ़रेबी यहां अब चेहरे हो गये
ग़ैर अपनें ही अब हो गये है यहां
हां मगर अब पराये अपनें हो गये
जो हक़ीक़त में था दोस्त मेरा कभी
वो मेरी नींदों के अब सपनें हो गये
भूलने को जिसको चाहता मैं रहा
क़ैद आंखों में वो अब लम्हें हो गये
प्यार की बातें करता नहीं अब वही
रोज़ होठों पे उसके शिकवे हो गये
कर लिया है आज़म प्यार तेरा क़बूल
उम्रभर के लिए हम तेरे हो गये