दोस्ती का खून | Dosti ka Khoon
सन 2000 की बात है। आशु और अंकित दोनों की नई नई दोस्ती हुई थी। दोनों कक्षा 12 में पढ़ते थे। आशु एक अमीर परिवार से ताल्लुक रखता था।
उसके पिता एक कंपनी में अकाउंटटेंट के तौर पर कार्य करते थे जबकि अंकित के पिता की सबमर्सिबल की एक छोटी सी दुकान थी। आशु के पिता को अच्छी आमदनी थी इसलिए आशु के पिता उसको जेब खर्च के लिए रोज 20 रुपए देते थे।
आज के समय को देखते हुए, उस समय 20 रुपयों की बहुत कीमत होती थी। ज्यादा रुपए मिलने की वजह से आशु में बहुत से दुर्व्यसन पैदा हो गए थे, जैसे- सिगरेट पीना, गुटके खाना, लड़कियों पर खर्च करना, मॉल में जाकर महंगे महंगे फैशनेबल कपड़े खरीदना, दोस्तों के साथ मूवीज देखना आदि।
उधर अंकित इन सब गलत दुर्व्यसनों से बहुत दूर था। विभिन्न दुर्व्यसनों में संलिप्त होने के कारण, अब आशु को पिता द्वारा प्रतिदिन दिए जा रहे ₹20 भी कम पड़ने लगे थे। अब आशु चोरी पर उतर आया। उसको पता रहता था कि घर पर मम्मी और पापा कहाँ रुपए छुपा कर रखते हैं? वह धीरे-धीरे मौका देखकर रुपए चुराने लगा।
एक दिन आशु की मम्मी जब कपड़े धोने बैठी तो… उन्हें आशु की पेंट की जेब मोटी दिखाई दी। उन्होंने उसकी जेब की तलाशी ली। आशु की पेंट की जेब से ₹1000 मिले।
इतनी बड़ी रकम आशु की जेब से पाए जाने पर उन्हें शक हुआ कि घर में जो रुपए चोरी हो रहे थे… कहीं ना कहीं इस चोरी के काम को आशु ही अंजाम दे रहा था। घर में आशु के अलावा तीन भाई-बहन और भी थे। वे किस पर शक करती? सब तो चोरी से मना करते थे। आज मिले 1000 रुपये से उन्हें यकीन हो गया कि आशु ही घर में चोरी करता है।
उन्होंने सख्ती से आशु से पूछताछ की लेकिन आशु बिल्कुल नहीं घबराया। उसने मम्मी से कहा-
“मम्मी जी, ये रुपए अंकित के हैं। उसने ये रुपये मुझे रखने को दिए थे।”
“मुझसे झूठ बोलता है बदतमीज कहीं का…” आशु को झापड़ मारते हुए आशु की मम्मी ने कहा।
“मैं कसम खाकर कहता हूँ कि ये रुपए मेरे दोस्त अंकित के हैं।”
“होंगे तेरे दोस्त अंकित के? ये रुपए मैं अपने पास रख रही हूँ। अगर तेरे दोस्त अंकित के रुपए हैं तो… उससे कह देना कि वह आए और आकर मुझसे रुपये ले जाए।” आशु की मम्मी ने रुपए अपने पास रखते हुए कहा।
उसी दिन शाम को आशु अंकित से मिला और सारी बात अंकित को सच-सच बता दी कि किस तरह उसने झूठ बोला और घर के चोरी किए गए रुपए को तेरा बताया? उसने अंकित से रिक्वेस्ट की, कि वह उसकी मम्मी से वे ₹1000 लाकर उसे दे दे। उन रुपयों का मिलना उसके लिए बेहद जरूरी है। उसने अंकित को दोस्ती की कसम देकर कहा-
“अंकित मेरे दोस्त! मेरी बात मान, दोस्त ही दोस्त के काम आता है। मेरी मदद कर। अगर तू मेरी मदद नहीं करेगा तो बता, मैं किसके पास जाऊंगा? कौन मेरी मदद करेगा?
अब तो मम्मी को मैंने यह बता दिया है कि वे रुपए तेरे हैं। अगर तू वे रुपए मम्मी से लेकर ना आया तो… मैं चोर कहलाऊंगा तथा जिस काम के लिए मैंने रुपए चुराए, वह काम भी ना हो पाएगा। मैं अपने मम्मी-पापा की नजर में गिर जाऊंगा। प्लीज अंकित, मेरे दोस्त, मेरी मदद कर। मैं तेरे पांव पड़ता हूँ।” अंकित के पैरों में गिरते हुए आशु बोला।
“यार, ऐसा मत कर। मुझे पाप का भागी मत बना। चल परेशान मत हो। मैं कुछ करता हूँ, लेकिन याद रखना… इस बार तो तूने मुझे फंसा दिया, लेकिन आइंदा इस तरह की जलील हरकत कभी मत करना। अगर कभी भविष्य में तूने ऐसा किया तो मैं सच-सच तेरे घर वालों को सारी बात बता दूंगा।” धमकाते हुए अंकित बोला।
“यकीन कर आइंदा ऐसा कभी नहीं होगा। अब प्लीज, मेरी मम्मी से लाकर वे रुपए जल्द से जल्द मुझे दे दे। मैं तेरा एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा।” आशु विनती करते हुए अंकित से बोला।
अगले दिन सुबह अंकित, आशु की मम्मी से रुपए लेने पहुँचा। आशु की मम्मी ने अंकित से एक साथ कई सवाल किये-
“सच-सच बता, क्या वे ₹1000 तेरे ही हैं ? इतनी बड़ी रकम तुम्हें कहाँ से मिली? तुमने आशु को वे रुपए क्यों दिए?”
“आंटी जी, आपको तो पता ही है कि मेरे पिता की सबमर्सिबल की एक छोटी सी दुकान है। कल सुबह मेरे पिताजी ने राजेश अंकल को (जहाँ से हमारा दुकान का सामान आता है) को देने के लिए, वे रुपए मुझे दिए थे। उस समय आशु भी मेरे साथ ही था। इतनी बड़ी रकम मेरी जेब में नहीं आ रही थी। मेरी जेब छोटी थी और मुझे घबराहट भी हो रही थी। तब मैंने ये रुपए आशु को रखने के लिए दे दिए थे। फिर इसके बाद मुझे कोई काम पड़ गया और मैं आशु से रुपए लेना भूल गया।” अंकित ने जवाब दिया।
आशु की मम्मी समझ गई थी कि ये रुपए अंकित के नहीं है लेकिन फिर भी उसकी बात पर विश्वास करते हुए उन्होंने वे रुपए अंकित को लौटा दिए। घर से बाहर निकालने के बाद अंकित ने वो रुपए आशु को लौटा दिए।
इस घटना ने अंकित को इतना अधिक दिमागी तौर पर परेशान किया कि वह खुद को अपनी नजरों में गिरा हुआ महसूस करने लगा था। उसे महसूस हो रहा था कि आशु का साथ देखकर उसने बहुत बड़ी गलती की है।
उसे यह भी डर सताने लगा था कि अभी आशु ने उसे इस ₹1000 के प्रकरण में फसाया है, आगे भविष्य में न जाने यह क्या करेगा? क्योंकि आशु के अंदर गंदी आदतें बढ़ती जा रही थी।
उसने सोचा कि आशु की संगति में रहना ठीक नहीं है। आशु से दूरी बनाना ही ठीक है। अंकित ने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और धीरे-धीरे वह आशु से दूर होता चला गया। उसने आशु से मिलना-जुलना, बातें करनी बंद कर दी। कुछ ही समय बाद उनकी दोस्ती आशु के स्वार्थ(चोरी) की भेंट चढ़ गई।

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा
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अंकित का चरित्र एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसमें वह सही-गलत के फर्क को समझता है और अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनते हुए सही निर्णय लेता है। उसने महसूस किया कि आशु की संगति उसके जीवन को गलत दिशा में ले जा सकती है, इसलिए उसने अपने भले के लिए उससे दूरी बनानी शुरू कर दी।