Ek talash unchai chune ki

एक तलाश ऊंचाई छूने की | Ek talash unchai chune ki

एक तलाश ऊंचाई छूने की

( Ek talash unchai chune ki )

मैं प्रयागराज जिले के एक छोटे से गाँव से ताल्लुक़ रखता हूँ, जब मैं घर और था तो नोकरी करने की सोची हालाकि घरवाले बोलते थे कि नोकरी करने से बेहतर है कि खुद का कोई बिजनेस चालू करो ,घर मे खेतीबाड़ी होने के कारण घरवालों का मन था कि ये घर से बाहर न जाए, पर मेरे मन मे ये सोच आई कि मैं खुद के मेहनत की कमाई से जो कुछ करूँगा वो ज्यादा सुकूँ देगा ।

खुद पैसे कमाकर खुद से बिजनेस चालू करूँगा, ऐसी तमाम सोच के साथ मैं उस गांव से लगभग 800 किलोमीटर दूर प्रयागराज जंक्शन से पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर पहुचाँ जो की एक बड़ा शहर है,सुबह के 5 बजे ही हमारी ट्रेन प्रयागराज से दुर्गापुर आ गई।

मन मे कई सवाल उठ रहे थे कि हम जिस जगह नोकरी करने जा रहे हैं वहां का माहौल कैसा होगा, लोग कैसे होंगे, हमे किस काम मे लगाया जाएगा ? इस तरह से तमाम बातें दिमाग मे नाच रही थी , दुर्गापुर से बस की सफर शुरू हुई जो कि पनाग्रह दार्जिलिंग मोड़ तक हमे आना पड़ा,वहाँ से ऑटो रिक्शा से उस बताए पते पर पहुचाँ जहां हमारी मंजिल थी।

उस कम्पनी का नाम अशोका बिल्डिकॉन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी जो कि एक बड़ी कम्पनी इंटरनेशनल स्तर पर अपनी एक ऊंची ख्याति बनाई है और आप साफ शब्दों में कहें कि हजारों लोगों के रोजी रोटी का एक जरिया है।

खैर कम्पनी में आते ही धीरेंद्र तोमर भाई से मुलाकात हुई जिनके जरिये मैं यहां तक आया, फिर झरना प्रधान जी से मुलाकात हुई वो हमें कम्पनी के अंदर ऑफिस में लेकर आये जहां पर मिहिर दास सर जो कि स्टोर इंचार्ज हैं उनसे और अनूप सर और नीरज सर से मुलाकात हुई, उस दिन जॉइनिंग हुई हमारी ।

तीनो लोग का जो प्यार अपनापन मिला लगा नही की घर से बाहर आया हूँ, दूसरे दिन से मिहिर सर के बताने पर अपनी ड्यूटी चालू हुई, कुछ दिन अनूप सर और नीरज सर के साथ काम करने का मौका मिला बहुत अच्छा साथ रहा।

कम्पनी के अंदर सभी के साथ भाईचारे का सम्बंध बनता गया उसी बीच मेरी ड्यूटी स्टोर गोडाऊन में लगा दी गई जहां पर दिलीप सर,शांतनु सर,राहुल भाई ,प्रदीप अलाउंडर सर ,अजहर सर और विकास तिवारी से मुलाकात हुई।

मैं गोडाऊन के बारे में कुछ नही जानता था,जहां इन सबका एक सहयोग जो कि मुझे कुछ सीखने में काफी मदद मिला, प्रदीप सर ने काफी हेल्प किया ककौन से सामान कहां हैं कहाँ नही उन्होंने एक भाई की तरह मार्गदर्शन किया।

सीनियर दिलीप सर जो स्वभाव से ही सरल हैं उन्होंने बेटे जैसा प्यार दिया, इन सबसे ऊपर हमारे इंचार्ज सर विभु दत्ता स्वाइन सर वो क्या है कि जब एक बच्चा गलती करता है तो अभिवावक डाँटते हैं उनका भी कुछ ऐसा ही बर्ताव रहा एक अच्छे मार्गदर्शक के रूप में उन्होंने हमेसा सहयोग किया।

मैं आप सभी का दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ, अगर काम मे कोई गलती हो तो माफ करिएगा मैं एक दिन बेहतर करूँगा ऐसी आशा और विश्वास दिलाता हूं, आपका अपना है अंकुल मैं घर से दूर उन अभिवावक को छोड़ कर आया हूँ कि हमे यहां अभिवावक या मार्गदर्शक की कमी महसूस न हो, अगर मैं गलती करूँ तो आप बार बार डांट सकते हैं, आप सभी को दिल से शुक्रिया ।

❣️

लेखक : अंकुल त्रिपाठी निराला
(प्रयागराज )

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