Varsha ritu aayi
Varsha ritu aayi

वर्षा ऋतु आई

( Varsha ritu aayi )

 

घेरे घटा सघन नभ घोरा ।
चमके चपला करहि अजोरा ।।१

सन सन बहे तेज पुरवाई ।
लागत हौ बरखा ऋतु आई ।।२

आगम जानिके खग मृग बोले ।
अति आनंद ह्रदय में घोले।।३

प्रेम मगन वन नाचे मोरा ।
पपिहा करे पिउ पिउ चहु ओरा।।४

हर्षित जीव जगत अब सांचे।
उछरि उछरि मृग भरहि कुलाचे।।५

भई प्रफुल्लित बिरहिन नारी ।
अब प्रिय आवन की हौ बारी।।६

एक पल धैर्य नही दिन राती ।
धड़कहि जोर जोर से छाती।।७

छन छन अंदर बाहर जाए ।
दरस चरण की कब प्रिय पाए।।८

पुलकित भई देखि प्रिय आगे।
भाग्य हमार आजु पुनि जागे।।९

बार-बार देखहि प्रिय ओरा।
जैसे चंद्र को निरखि चकोरा।।१०

 

दोहा

हर्षित भई प्रिय पाइके , नैन बहे जल धार।
“रूप” खिले तब प्रेम से , छलके नेह अपार।।

 

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कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)

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