Should there be educational qualifications for politicians

निबंध : क्या राजनीतिज्ञों के लिए शैक्षिक योग्यता निर्धारित होनी चाहिए

निबंध : क्या राजनीतिज्ञों के लिए शैक्षिक योग्यता निर्धारित होनी चाहिए 

 

( Should there be educational qualifications for politicians? Essay in Hindi )

 

कहीं भी यदि आपको नौकरी की तलाश करनी है या फिर कोई बिजनेस चलाना है तो पढ़ाई लिखाई बहुत मायने रखती है। पढ़ाई लिखाई तब बहुत जरूरी हो जाती है।

एक अच्छा पढ़ा लिखा व्यक्ति एक अच्छी नौकरी पाने के लिए योग्य होता है चाहे वह सरकारी हो और जो सरकारी हो अथवा प्राइवेट नौकरी हो।

साथ ही उसके काम करने की अधिकतम आयु भी निर्धारित होती है। इसके अलावा बीच-बीच में उसके कार्यों का मूल्यांकन भी वार्षिक स्तर पर किया जाता है।

जिसके आधार पर उसका प्रमोशन निर्धारित किया जाता है। आखिर यह सारे मापदंड हमारे राजनेताओं के लिए क्यों नहीं है?

चुनाव में खड़े होने से पूर्व राजनेताओं के लिए उनकी न्यूनतम शैक्षिक योग्यता, शारीरिक समर्थ की न सिर्फ जांच होनी चाहिए बल्कि रिटायरमेंट के लिए भी आयु निर्धारित होनी चाहिए।

जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में कहा था कि जिन अनपढ़ लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया उनके लिए शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता लगाकर उन्हें चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। लेकिन क्या आज के संदर्भ में पंडित जवाहरलाल नेहरु जी यही कहते..?

उस वक्त उन्होंने वह वक्तव्य स्वतंत्रता के लिए लड़ने वालों के लिए कहा था। उस वक्त के स्वतंत्रता सेनानी आज चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।

1947 से 2021 के मानव संसाधन में भी काफी ज्यादा अंतर आ चुका है। देश की एक बड़ी जनसंख्या के लिए उस समय संसाधन उपलब्ध नहीं थे तो देश को भी यह हक नहीं था कि वह इस तरह की अनिवार्यता उन पर थोपे।

लेकिन आजादी के इतने साल बाद स्थितियां काफी बदल गई है। आजादी के समय साक्षरता दर मात्र 12% थी जो कि आज के माहौल से बहुत अलग है।

आज बेहतर संसाधन उपलब्ध हैं। देश की साक्षरता दर 74% के आसपास है। ऐसे में न्यूनतम शैक्षिक योग्यता कम से कम आठवीं पास राजनेताओं के लिए तो निर्धारित की ही जा सकती है।

कुछ राज्यों में ग्राम पंचायतों के चुनाव के लिए शैक्षणिक अनिवार्यता है। कहीं पांचवी कक्षा कहीं आठवीं कक्षा और कहीं दसवीं कक्षा तक की यह न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित है।

उत्तराखंड में भी अधिकतम दो बच्चे और न्यूनतम शैक्षिक योग्यता आठवीं पास चुनाव लड़ने के लिए निर्धारित की गई है।

पंचायती राज विभाग से त्रि स्तरीय चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के लिए शैक्षिक योग्यता निर्धारित कर दिया है। राजस्थान और हरियाणा सरकारों ने साल 2015 में ही पंचायती राज कानून में संशोधन करके पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित किया था।

राजस्थान विधानसभा ने पंचायत चुनाव के लिए जिला परिषद एवं पंचायत समिति का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 10वीं पास तथा सरपंच के चुनाव के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और आठवीं पास निर्धारित कर रखी है।

हरियाणा सरकार ने भी इस तरह के कानून अपने यहां बनाए हैं। हरियाणा में ग्राम पंचायत का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 10वीं पास निर्धारित की गई है।

ऐसे में यह वक्त की जरूरत है कि विधायकों और सांसदों के लिए भी एक न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित की जाए। क्या एक प्रतिनिधि के लिए आठवीं अथवा दसवीं पास करना भी दूर की बात है? देश में ओपन स्कूल चलाए जा रहे हैं।

किसी का हक छीना नहीं जा रहा है. हक के लिए मेहनत करने के लिए कहा जा रहा है. जिस तरह से देश में तमाम सरकारी नौकरियां तथा अलग-अलग पदों के लिए एक शैक्षिक योग्यता निर्धारित की गई है और योग्यता में कुछ छूट भी दलित पिछड़ों और आदिवासियों के लिए दी गई है। ठीक इसी तरह से राजनीतिज्ञों के लिए भी शैक्षिक योग्यता निर्धारित क्यों नहीं होनी चाहिए?

आज के इस डिजिटल क्रांति के युग में बिना पढ़े लिखे जनप्रतिनिधियों के लिए काम करना आसान नहीं होगा। देश में चुनाव लड़ने का अधिकार सबको है।

लेकिन गांव पंचायत और जिले की सरकार चलाने के लिए जन प्रतिनिधियों के लिए शिक्षा बेहद जरूरी है। योजनाओं के ऑनलाइन अपडेट और ऑनलाइन ही लाभार्थियों को पेमेंट करना होता है।

वार्ड पंच पंचायत समिति सदस्य जिला परिषद सदस्य बिना शैक्षिक योग्यता के चल सकते हैं। लेकिन ग्राम पंचायत स्तर पर सरपंच पंचायत समिति के प्रधान जिला में जिला प्रमुख को कई शक्तियां एवं अधिकार प्राप्त होते हैं।

इसलिए गांव की सरकार चलाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है। यदि यह पढ़े-लिखे नहीं होंगे तो यह किसी अन्य के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाएंगे और इनकी शक्तियों का दुरुपयोग होगा।

ध्यान देने वाली बात है कि कैसे लोग हमारे लोकतंत्र में प्रतिनिधि बन रहे हैं? यह कास्ट से ज्यादा आजकल क्लास निर्धारित करती है।

आज पैसे वाला व्यक्ति ही चुनाव लड़ सकता है। टिकट उसी को मिलता है जो किसी नेता का बहुत खास व्यक्ति अथवा रिश्तेदार हो, नेता पहली पसंद हो।

सहानुभूति पैदा करने के लिए एक और आयाम दिखाया जाता है कि प्रत्याशी दलित हो अथवा पिछड़े वर्ग से संबंधित हो और अल्पसंख्यक हो।

उसका कम पढ़ा लिखा होना जायज ठहराने की भी कई बार कोशिश होती है। आज ऐसे कई राजनेता है जो सच में दलित पिछड़े और अल्पसंख्यक की जिंदगी जी रहे हैं।

सालों से अपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों का रिकॉर्ड बनता जा रहा है और लगभग सभी दल ऐसे उम्मीदवारों का अपनी पार्टी में खुले दिल से स्वागत करते हैं। फिर चाहे उसे से पार्टी की छवि गरीबों के रहनुमा के रूप में हो अथवा दलित पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के रहनुमा के रूप में हो।

कई समृद्ध पृष्ठभूमि के प्रतिनिधि कम पढ़े लिखे अथवा अनपढ़ मिल जाएंगे, फिर क्यों किसी पढ़े-लिखे दलित पिछड़े गरीब पृष्ठभूमि के नौकरशाह को या कर्मचारी को मजबूर किया जाए कि वह ऐसे मंत्री सांसद विधायक के मातहत का काम करें।

जिस तरह से प्रतिनिधि हमें राज्य और केंद्र में मिल रहे हैं इससे देखकर नहीं लगता कि वह 10 वीं भी पास नहीं होने चाहिए।

एक अजीब सा लोग तर्क देते हैं कि किसी अनपढ़ ने भ्रष्टाचार नहीं किया फिलहाल तो इस पर शोध किया जाना चाहिए। मान लीजिए पढ़े लिखे लोग ही भ्रष्टाचार में लिप्त थे।

लेकिन क्या भ्रष्टाचार भरने की वजह उनका पढ़ा लिखा होना चाहिए। दूसरा सवाल उठता है कि क्या अनपढ़ लोग भ्रष्टाचार पकड़ पाएगे? उसे रोक पाएंगे?

राजनीति समझ होना एक अलग बात है उसके लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं है। लेकिन क्या सिर्फ वोट बटोरने तक ही राजनीति की समझ होना जरूरी है या फिर सुशासन चलाने के बारे में भी सोचना होगा!

अब लोगों को इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि लोग क्या चाहते हैं? क्या वह राजनेताओं के लिए एक न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित करने के पक्ष में है अथवा नहीं?

 

लेखिका : अर्चना  यादव

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