Essay on Indian secularism model
Essay on Indian secularism model

 

निबंध : धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल पश्चिमी मॉडल से कैसे भिन्न है

( How is the Indian model of secularism different from the western model

Essay in Hindi )

 

पश्चिमी मॉडल में धर्मनिरपेक्षता से आशा एक ऐसी व्यवस्था से है जहां पर धर्म और राज्य एक दूसरे की माला मामले में हस्तक्षेप नहीं करते।

व्यक्ति और उसके अधिकारों को केंद्रीय महत्व प्रदान किया जाता है। इसके विपरीत भारत में प्राचीन समय से ही विभिन्न विचारधाराओं को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है।

यहां धर्म को जिंदगी का एक तरीका, आचरण संहिता तथा व्यक्त की सामाजिक पहचान के तौर पर जाना जाता है।

इस प्रकार से भारत के संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का मतलब समाज के विभिन्न धर्म एवं मतों का अस्तित्व मूल्यों को बनाए रखने से है। सभी बंधुओं का विकास एवं समृद्ध की स्वतंत्रता तथा साथ ही सभी धर्मों के प्रति एक समान आदर तथा सहिष्णुता विकसित करना रहा है।

बता दें कि भारत के संविधान की प्रस्तावना में 42 वें संविधान संशोधन के बाद पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया था।

पंथनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग यहां पर भारतीय संविधान के किसी अन्य भाग में नहीं किया गया है। भारत के संविधान में ऐसे कई अनुच्छेद है जहां पर भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य साबित किया गया है ।

भारत के संदर्भ में अभी कहा जाता है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता की मात्र नकल घर है। लेकिन भारत के संविधान को ध्यान से पढ़ा जाए तो स्पष्ट होता है कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी तौर पर ही भिन्न है। पश्चिम की पूर्णतया अलग बात, अलगाववादी, नकारात्मक धर्मनिरपेक्ष और धारणा के उलट भारत की धर्मनिरपेक्षता समग्र रूप से सभी धर्मों का सम्मान करने की संवैधानिक मान्यता पर आधारित है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्म एवं राज्य के बीच संबंध विच्छेद होने पर बल नहीं देता बल्कि आध्यात्मिक समानता पर, अंतर धार्मिक स्वतंत्रता पर जोर देता है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता में अंतः धर्म और अंतर धार्मिक वर्चस्व एक साथ केंद्रित है। इसमें हिंदुओं के अंदर दलितों एवं महिलाओं के उत्पीड़न तथा भारतीय मुसलमानों अथवा ईसाइयों के अंदर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किए जा सकने वाले खतरों का विरोध किया गया है।

जो इसे पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा से अलग बनाता है। यदि पश्चिम में कोई धार्मिक संस्था किसी समुदाय महिला के लिए कोई निर्देश देती है तो सरकार और न्यायालय इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

वहीं भारत में मंदिरों मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश जैसे मुद्दों पर राज्य और न्यायालय दोनों ही दखल दे सकते हैं।

अन्य भिन्नता यह है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का संबंध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी से न होकर अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आबादी से भी है।

इसके अंतर्गत सभी को अपनी पसंद का धर्म मानने का अधिकार है।नधार्मिक अल्पसंख्यकों को भी उनकी अपनी संस्कृति एवं शैक्षिक संस्थाएं कायम रखने का अधिकार प्राप्त है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश रहती है। जबकि पश्चिम में यह देखने को नहीं मिलता है।

उदाहरण के तौर पर भारत में भारतीय संविधान ने धार्मिक हनन पर प्रस्ताव पर प्रतिबंध लगाया है। भारत में बाल विवाह के उन्मूलन एवं अंतर जाति विवा पर हिंदू धर्म द्वारा लगाए गए निषेध को खत्म करने के लिए कानून बनाए गए हैं।

भारत में धर्मनिरपेक्षता के तहत महात्मा गांधी जी की अवधारणा को अधिक बल दिया गया है। जिससे सभी धर्मों को समान और सकारात्मक रूप से प्रोत्साहित करने की बात कही गई है।

इस तरह से कहा जा सकता है कि भारत की धर्मनिरपेक्षता न तो पूरी तरह धर्म के साथ जुड़ी है ननही यह पूरी तरह तथास्तु है।

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने केसवानंद भारती मामले में दिए गए अपने निर्णय में धर्मनिरपेक्षता को भारत की आधारभूत संरचना का हिस्सा बताया है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने इन्हीं मूल्यों के आधार पर सिद्धांत रूप से पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से काफी भिन्न है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भारतीय राज्य का धर्मनिरपेक्ष चरित्र इसलिए बरकरार है क्योंकि वह ना तो धार्मिक धर्म तांत्रिक है ना ही किसी धर्म को राजधर्म बताता है।

भारत में सभी धर्मों को समानता हासिल करने और उनके परिष्कृत करने की नीति अपनाई गई है। इसलिए इसकी वजह से ही वह अमेरिकी शैली में धर्म से अलग ही है।

यह जरूरत पड़ने पर उनमें संबंध भी बना सकता है। भारतीय राज्य धार्मिक अत्याचार का विरोध करने हेतु धर्म के साथ निषेधात्मक संबंध बना सकता है।

यही बात का इस प्रस्ताव पर प्रतिबंध तीन तलाक सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश जैसी घटनाएं शामिल है।

इसके अलावा शांति, स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए भारत में जटिल रणनीति अपनाई गई हैं।

स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य साद पूर्ण अस्तित्व अथवा सहिष्णुता से काफी आगे है। आवश्यकता इस बात की है कि इन खामियों को दूर किया जाए।

सरकार को चाहिए कि वह इसका संरक्षण सुनिश्चित करें। जिससे धर्मनिरपेक्षता को न्यायालय द्वारा संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा मान लिया गया है।

धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक जन आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक आयोग गठन करने की जरूरत महसूस की जा रही है। जनप्रतिनिधियों को ध्यान में रखना चाहिए कि धर्मनिरपेक्ष राज्य में धर्म एक विशेष रूप से व्यक्तिगत और निजी मामला होता है।

वोट बैंक की राजनीति का मुद्दा धर्म को नहीं बनाना चाहिए। साथ ही राजनीति को धर्म से अलग करके देखना चाहिए।

एसआर बोम्मई बनाम गणराज्य मामले में भारत गणराज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर धर्म को राजनीति से अलग नहीं किया जाएगा तो सत्ताधारी दल का धर्म है देश का धर्म बन जाएगा सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर राजनीतिक दलों को अमल करने की जरूरत है।

लेखिका : अर्चना  यादव

यह भी पढ़ें :-

निबंध : परिश्रम का महत्व | Importance of hard work essay in Hindi

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here