Galat
Galat

ग़लत को ग़लत जो कोई भी कहेगा 

( Galat ko galat jo bhi kahega ) 

 

ग़लत को ग़लत जो कोई भी कहेगा ,
यकीं मानिए मुश्किलों में फँसेगा ।

ग़लत के लिए साथ देंगे हज़ारों ,
सही बोलने पर अकेला रहेगा ।

ये दुनिया अजब चाल से चल रही है ,
हरिक आदमी एक दिन तो गिरेगा ।

ज़रा इल्म हासिल लगे ऐंठने सब ,
ये रब को बुरा तो बहुत ही लगेगा ।

लकीरों में लिक्खा पता क्या करें हम ,
जो मेहनत करेगा उसी को मिलेगा ।

सफलता जिसे झूठ से मिल गई हो ,
वो बातें इधर या उधर की करेगा ।

उसी की कहानी तो दिलचस्प होगी ,
बुलंदी जो उठ कर ज़मीं से छुएगा ।

मुखौटा लगा कर मुलाक़ात कर लो ,
पता हाल ए दिल न किसी को चलेगा ।

बहुत देर दस्तक दिए हो चुकी है ,
न जाने अभी द्वार कब तक खुलेगा ।

नक़ल में चमक तो असल से अधिक है ,
बताओ यहाँ देव किसको चुनेगा ।

रचनाकार: शैलेन्द्र मिश्र देव
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