हर लम्हा | Nazm Har Lamha
हर लम्हा
( Har Lamha )
छुपकर क्या देखता है तमाशा मेरी तबाही का
आंख मिलाकर लुत्फ उठा किस्सा ए रुसवाई का
हर कदम जिंदगी से नसीहतें पा रहा हूं मैं
हर लम्हा अनुभवों की दौलतें सजा रहा हूं मैं
हर सांस के अहसान की कीमत चुकाई है मैंने
हर रिश्ते की अहमियत खुद को समझाई है मैंने
जो दर्द दिया है जिंदगी ने वो साथ मेरे चलता रहा
दर्द मुझे खलता रहा और मैं जिंदगी को खलता रहा
चलो यूं ही सवाल करते हैं देते हैं जवाब यूं ही
गलतफहमियां दूर हों जाएं तो कर लेंगे फिर हिसाब यूं ही
खुद को डूबो भी चुके जिंदगी को समझते समझाते
ज़िन्दगी के इम्तिहान हैं कि खत्म होने को ही नहीं आते
यहां वहां भटका किए ढूंढते रहे खुद को
मिले आखिर खुद में ही छोड़ दिया जब ज़िद्द को
देखते हैं रोज़ उन लाशों को जो ख्वाबों से लदी चली गईं
सुना तो था हमने कि मौत पीछे कुछ ना छोड़ गई
शिखा खुराना