ग़म भरी अपनी यहां तो जिंदगी है

ग़म भरी अपनी यहां तो जिंदगी है

ग़म भरी अपनी यहां तो जिंदगी है

 

 

ग़म भरी अपनी यहां तो जिंदगी है!

लिक्खी क़िस्मत में नहीं शायद ख़ुशी है

 

कोई भी अपना नहीं है आशना  ही

तन्हाई के रोज़ आंखों में नमी है

 

हो गया मुझसे पराया उम्रभर वो

रोज़ रातें यादों में जिसकी कटी है

 

हाँ ख़ुशी से ही रही है खाली झोली

की ख़ुदा की रोज़ मैंनें बंदगी है

 

आस औरों से मुहब्बत की क्या रखता

रोज अपनों ही दिखायी बेरुख़ी है

 

प्यार है जिससे मुझे दिल से सच्चा ही

वो रखता मुझसे बड़ी ही बेरुख़ी है

 

जख़्म भरते ही नहीं आज़म के दिल के

प्यार में ऐसी किसी ने चोट दी है

 

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शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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