पाठक तुम कब आओगे | Geet pathak tum kab aaoge
पाठक तुम कब आओगे
( Pathak tum kab aaoge )
पड़ी किताबें पूछ रही है पाठक तुम कब आओगे
पुस्तकालय सूना लगता कब पुस्तक पढ़ पाओगे
कब होगी हाथों में पुस्तक पन्ने पलट पढ़ो जरा
शब्द शब्द मोती संजोये पोथियों में ज्ञान भरा
आखर आखर पढ़ देखो किस्मत बदल पाओगे
पुस्तकों से जीवन संवरे मनचाही मंजिल जाओगे
पाठक तुम कब आओगे
वेद पुराण ग्रंथ सारे उपनिषद सब भंडार हमारे
महाकाव्य रच गए पुरोधा महाज्ञानी वो सितारे
गीता का सार भरा पुस्तकों में अतुलित प्यार भरा
प्रेम का संचार भरा आचार मधुर संस्कार भरा
उजाले की किरण आशाएं मार्गदर्शन पा जाओगे
खोलकर किताबें देखो हौसलों की उड़ानें पाओगे
पाठक के तुम कब आओगे
कंप्यूटर ने किया कबाड़ा ऑनलाइन चला चक्कर
फेसबुक टि्वटर आए वेबसाइट में हो रही टक्कर
गूगल में संसार समाया मोबाइल हंस हंस नाच रहा
लाइव चलते कवि सम्मेलन कवि ग्रुपों में बांच रहा
पुस्तकों में कालजई गुण युगो शोहरत पाओगे
स्वर्णाक्षर शब्दाक्षर से जमाने भर याद आओगे
पाठक तुम कब आओगे
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )