घर आबाद रखना

घर आबाद रखना | Ghar Aabaad Rakhna

घर आबाद रखना

मुसलसल दिल को अपने शाद रखना
मेरी यादों से घर आबाद रखना

गुज़ारी है ग़मों में यूँ भी हँसकर
मुझे है प्यार की मरजाद रखना

मिलेंगे हम ख़ुशी से फिर यहीं पर
लबों पर बस यही फ़रियाद रखना

वफ़ा के फूल ख़ुद खिलते रहेंगे
सदा देते इन्हें तुम खाद रखना

बहारें दे रहीं हैं दस्तकें फिर
सनम मन को न अब नाशाद रखना

फक़ीरों के हैं दामन में दुआएं
जहां वालों सदा यह याद रखना

सफ़र में दूरियाँ जितनी हों साग़र
मुबाइल से सदा संवाद रखना

Vinay

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003

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