तुम्हारे पांव की बेड़ी तुम्हें ही काटनी होगी | Ghazal on Life in Hindi
तुम्हारे पांव की बेड़ी तुम्हें ही काटनी होगी
( Tumhare paon ki bedi tumhen hi katni hogi )
बुजुर्गों के चरण-वंदन में जब तक सर नहीं आते।
नये इतिहास रचने के सुखद अवसर नहीं आते
मधुर व्यवहार ही कश्ती किनारे तक लगाती है
समंदर से तो पत्थर तैरकर बाहर नहीं आते ।
मजारों पर लदे देखें कहीं काटन ,कहीं रेशम,
बशर निर्धन के घर तक क्यों लिए चादर नहीं आते ?
मुहब्बत गांव की,परिवार की जन्नत से प्यारी है
नगर से लोग पैदल भाग कर यूँ घर नहीं आते।
तुम्हारे पांव की बेड़ी तुम्हें ही काटनी होगी
चुनौती मृत्यु का स्वीकारने कायर नहीं आते।
मैं दुनिया भर के सदमों में यक़ीनन डूब ही जाता
लिए पतवार अनहद गर विनय साग़र नहीं आते ।
शायर: अजय जायसवाल ‘अनहद’
प्राध्यापक हिन्दी
श्री हनुमत इंटर कॉलेज, धम्मौर सुलतानपुर
( उत्तर प्रदेश 227408 )
यह भी पढ़ें:-