Kavita Dhalti Jawani
Kavita Dhalti Jawani

ढ़लती जवानी

( Dhalti jawani ) 

 

मेंरे भाई अब यह उम्र ढ़लती जा रही है,
इन हड्डियों से माॅंस अब कम हो रहा है।
ये बाल भी काले रंग से सफ़ेद हो रहें है,
टांगों में भी दर्द अब यह शुरु हो रहा है।।

अब भागना और दौड़ना दूर की बात है,
पैदल चलने में ही थकान सी हो रही है।
कभी‌ गेहूं बोरी लदकर दौड़ लेता था मैं,
आज सोने पर भी नींद नही आ रही है।।

धूप गर्मी व लू थपेड़ो में भी नहीं रुकता,
झुकता उठता बैठता और काम करता।
कुछ भी खाता-पीता उसको पचा लेता,
आज कुलर पॅंखा भी अच्छा न लगता।‌।

दम घुटता है यह श्वास भी कम आता है,
फेफड़ों की चाल भी ये धीमी हो गई है।
खांसी खर्रा पाचनशक्ति कम हो गया है,
ऑंख में गीड़ कान में फड़की लगती है।।

आज ऑंतो में सूजन बातों में तुतलापन
कुछ ऐसा मुझको ये महसूस हो रहा है।
ना दवाई का असर ना कोई करें फीकर
शायद ऐसा ही हाल सब का हो रहा है।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here