रक्खी जिससे यहां दोस्ती ख़ूब है | Ghazal
रक्खी जिससे यहां दोस्ती ख़ूब है
( Rakhee jisse yahan dosti khoob hai )
रक्खी जिससे यहां दोस्ती ख़ूब है !
कर गया आज वो दुश्मनी ख़ूब है
जिंदगी की बुझे प्यास अब ए ख़ुदा
प्यार की उठ रही बेकली ख़ूब है
रात दिन आँखों में ही नमी ख़ूब है
यादों की चोट दिल पे लगी ख़ूब है
दोस्ती तोड़कर तू गया है जब से
गुफ़्तगू हर होठों पे चली ख़ूब है
वो नज़र आया मुझको नहीं है चेहरा
आज भी देखा उसको गली ख़ूब है
आज उसनें तो पत्थर मारे नफ़रत के
प्यार की जिसके बातें करी ख़ूब है