रात भर हम करवटें बदलते है
रात भर हम करवटें बदलते है

रात भर हम करवटें बदलते है

( Raat bhar hum karvaten badalte hai )

 

रात भर हम करवट बदलते है !

याद में उसकी रोज़ जलते है

 

जिंदगी ग़म भरी है ये  इतनी

हाँ ख़ुशी के लिये तड़फतें है

 

याद आती है साथ गुजरे दिन

जब गली से उसकी निकलते है

 

हिज्र की ही तकलीफ़ होती फ़िर

चाहने जब वाले बिछड़ते है

 

आज ऐसी यहां आती ख़ुशबू

सांसों में जैसे वो महकते है

 

चाहता हूँ बने वो  मेरा ही

वो दिल में “आज़म” उतरते है

 

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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