रुलाती हमको | Ghazal Rulati Humko
रुलाती हमको
( Rulati Humko )
खिलातीं रोज़ गुल ये तितलियाँ हैं
हुई भँवरों की गुम सब मस्तियाँ हैं
हमारे साथ बस वीरानियाँ हैं
जिधर देखो उधर तनहाइयाँ हैं
ग़ज़ब की झोपडी में चुप्पियाँ हैं
किसी मरते की शायद हिचकियाँ हैं
रुलाती हमको उजड़ी बस्तियाँ ये
कि डूबी बारिशों में कश्तियाँ हैं
मुसीबत में नहीं कोई किसी का
सहारा छोड़ती परछाइयाँ हैं
नहीं महफूज़ है ये ज़ीस्त भी अब
उगलती ज़ह्र शीरीं तल्खियाँ हैं
करे सजदा हज़ारों हमने तुमको
मगर मिलती सदा रुसवाइयाँ हैं
नहीं सुनवाई कोई मुफ़लिसों की
कि फेंकी फाड़ के सब अर्ज़ियाँ हैं
निशां मंज़िल के अब मिलते नहीं
गिराता आसमां भी बिजलियाँ हैं
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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