Kahan Dhundu
Kahan Dhundu

कहां ढूंढू

( Kahan dhundu )

 

गौतम, नानक-राम कहां ढूंढू
मजहब के चार धाम कहां ढूंढू

अमन के जैसे गुजरे है दिन
वैसी सुबहो – शाम कहां ढूंढू

मुंह में राम है बगल में खंजर
‘ सत्यवादी ‘ इक निज़ाम कहां ढूंढू

मजहब-मजहब लड़ने वाले हैं सब
‘इंसानियत ‘ का पैगाम कहां ढूंढू

झूठ-फरेब का बोलबाला हुआ
रहे ईमानदारी तमाम कहां ढूंढू

सहमी सहमी मानवता है आज खड़ी
सच की महज एक जुबान कहां ढूंढू!!

 

Mohammed

 शायर: मोहम्मद मुमताज़ हसन
रिकाबगंज, टिकारी, गया
बिहार-824236

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