कहां ढूंढू | Kahan Dhundu
कहां ढूंढू
( Kahan dhundu )
गौतम, नानक-राम कहां ढूंढू
मजहब के चार धाम कहां ढूंढू
अमन के जैसे गुजरे है दिन
वैसी सुबहो – शाम कहां ढूंढू
मुंह में राम है बगल में खंजर
‘ सत्यवादी ‘ इक निज़ाम कहां ढूंढू
मजहब-मजहब लड़ने वाले हैं सब
‘इंसानियत ‘ का पैगाम कहां ढूंढू
झूठ-फरेब का बोलबाला हुआ
रहे ईमानदारी तमाम कहां ढूंढू
सहमी सहमी मानवता है आज खड़ी
सच की महज एक जुबान कहां ढूंढू!!