गिला- शिकवा नहीं करते कभी ज़ालिम ज़माने से
गिला- शिकवा नहीं करते कभी ज़ालिम ज़माने से
गिला- शिकवा नहीं करते कभी ज़ालिम ज़माने से।
न बेशक बाज़ आता है अभी भी दिल दुखाने से।।
सदा मस्ती में रहते है भुला के ग़म जहां भर के।
बहाते अब नहीं आंसू किसी के भी रुलाने से।।
नहीं अब दिल पे लेते हैं किसी भी बात को उसकी।
चले आते सताने जो सदा हमको बहाने से।।
नहीं ग़म हार जाने का खुशी न जीत से कोई।
फकीरी दिल में बसती है नज़र आते दिवाने से।।
“कुमार” देन है रब की हुनर सबको नहीं मिलता।
नहीं बनता कभी शायर ग़ज़ल कोई चुराने से।
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