बढ़ती जनसंख्या भारत के विकास की सबसे बड़ी चुनौती
बढ़ती जनसंख्या भारत के विकास की सबसे बड़ी चुनौती

निबंध : बढ़ती जनसंख्या भारत के विकास की

सबसे बड़ी चुनौती

( Growing population is the biggest challenge for the development of India

: Essay in Hindi )

प्रस्तावना ( Preface ) :-

आज जनसंख्या वृद्धि देश के ज्यादातर समस्याओं का कारण बन गई है। गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सेवा की कमी, अपराध, स्वच्छ पानी की कमी जैसी समस्याएं बढ़ती आबादी की वजह से ही हैं। देश के पास दुनिया की जमीन का 2.4 फीसदी हिस्सा है।

इसमें दुनिया की 18% से भी अधिक आबादी निवास करती है। देश में जमीन के कुल 60 फ़ीसदी हिस्से पर खेती की जाती है। इसके बावजूद 20 करोड़ों लोग भुखमरी के शिकार हैं।

117 देशों की ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 में भारत का स्थान 101 है। देश की आबादी अनियंत्रित रूप से बढ़ने की वजह से ट्रैफिक जाम की समस्या आने वाले भविष्य में बढ़ सकती है।

देश में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जिस हिसाब से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है सड़कों का निर्माण नहीं हो रहा है।

बढ़ती आबादी का बोझ सड़कों पर आसानी से देखने को मिल रहा है। 1950 में भारत की आबादी 37 करोड़ थी। वर्तमान समय में भारत की जनसंख्या 130 करोड़ हो गई है।

जनसंख्या इसी दर से बढ़ती रही हो ऐसा अनुमान है कि साल 2050 तक भारत की जनसंख्या 140 करोड़ तक पहुंच जाएगी।

जनसंख्या वृद्धि में दिल्ली पहले स्थान पर है। एक अनुमान के अनुसार अगले एक दशक तक दिल्ली दुनिया के सबसे बड़ी आबादी वाला शहर बन जाएगा।

भारतीय जनसंख्या के विभिन्न आयाम :-

दुनिया की कुल जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी 18 फ़ीसदी है, जबकि पृथ्वी के धरातल का मात्र 2.4 फीसदी है। भारत में संसाधनों को विकसित करने की रफ्तार जनसंख्या वृद्धि दर से कम है।

इसलिए जनसंख्या का संसाधनों पर दबाव बढ़ने से देश में आर्थिक, सामाजिक समस्याओं पर प्रभाव और बढ़ेगा।

चाहे देश की विकास दर बढ़ती है या संसाधन, देश में हासिल सुविधाओं के न्यायपूर्ण वितरण की ठोस व्यवस्था न होने पर आबादी के एक बड़े हिस्से को अनिवार्य जरूरतों को पूरा करने में चुनौतियां आएंगी।

तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश की सामाजिक आर्थिक समस्याओं की जननी बनकर देश के सामने खतरे की घंटी बन सकती है। एक अनुमान के अनुसार देश में कामकाजी लोगों की संख्या अगले दो दशक में 30 फीसदी तक बढ़ जाएगी।

वहीं अगर चीन से तुलना की जाए तो आने वाले दशक में चीन की कामकाजी लोगों की संख्या 20 फीसदी  कम होगी। आज जनसंख्या नियंत्रण राष्ट्रीय हित से जुड़ा मुद्दा बन गया है।

लेकिन इस पर नियंत्रण के लिए किसी भी राजनैतिक दल या संगठन के द्वारा आवाज नहीं उठाई जाती। देश के तमाम राजनैतिक पार्टियां रोटी, कपड़ा, मकान की बात करती हैं लेकिन जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दे पर न कानून बनाने का कोई वादा करती हैं न कोई चर्चा होती है।

यही वजह है कि राष्ट्रीय हित के मुद्दे चुनावी मुद्दे नहीं बन पाते हैं। जनसंख्या वृद्धि का सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ रहा है। ग्रामीण आबादी को रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ पलायन करना पड़ता है।

जिससे शहरी लोगों की जिंदगी भी मुश्किल हो जाती है। काफी हद तक इसके लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं। आजादी के 74 साल बाद भी आज तक कोई ठोस रणनीति नहीं बन पाई है। जिससे ग्रामीण आबादी का शहरों की तरफ पलायन रुक सके।

लोग गांव छोड़कर शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं। सरकार गांव में रोजगार, अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध करवा दें तो शायद इस पलायन को रोकने में मदद मिले।

संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट के अनुसार साल 2050 तक दुनिया का 68 फीसदी हिस्सा शहरों में रहने लगेगा। वर्तमान समय में 55 फीसदी जनसंख्या शहरों में निवास करती हैं। देश की आबादी यदि इसी दर से बढ़ती रही तो आने वाले समय में यह संकट और गंभीर रूप धारण कर सकता है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत साल 2024 तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। भारत में 10 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं की आबादी 7 करोड़ है।

युवा आबादी को सही दिशा और पर्याप्त संसाधन उपलब्ध न हो तो भारत के लिए और चुनौतियां बढ़ जाएंगी। सच्चाई यह है कि देश में केवल कुछ ही युवाओं के लिए आबादी स्किल युक्त है।

देश में 10 करोड़ युवा ऐसे हैं जो शिक्षित होने के बावजूद किसी कौशल में दक्ष नहीं है। आने वाले दशक में लगभग 10 करोड़ नौकरियों की आवश्यकता होगी।

जनसंख्या विस्फोट के प्रभाव से बचने के लिए लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना जैसी नीतियों का निर्माण करने की जरूरत है, जिससे लोग बीमारी और बेरोजगारी जैसे विपरीत परिस्थितियों में दूसरों पर निर्भर न रहें।

जनसंख्या वृद्धि देश के लिए चुनौती

मानव जीवन स्वतंत्र नहीं है। जीवन प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होता है और कृषि संसाधन सीमित हैं। इसलिए मनुष्य के सुखमय जीवन के तमाम संसाधन सीमित हैं। शिक्षा, स्वास्थ, अपराध नियंत्रण की व्यवस्था जैसे संसाधन भी सीमित संसाधनों में एक है।

महानगरों में रोड जाम पर फ्लाईओवर बनते हैं और कुछ दिन बाद उन पर भी भारी भीड़ जमा हो जाती हैं। अस्पतालों की बढ़ती संख्या भी बढ़ती जनसंख्या से भरमार है।

अवकाश, सड़क मार्ग से सटे हुए हैं। शिक्षा केंद्रों में बढ़ती जनसंख्या के कारण लाखों छात्रों का दाखिला भी नहीं हो पाता है।

बढ़ती आबादी के कारण महानगर फैल रहे हैं। नागरिक सुविधाएं अस्त-व्यस्त हो रही हैं, गांव फैल रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या की वजह से संसाधन व कृषि क्षेत्र घट रहा है।

निष्कर्ष ( Conclusion ) :-

बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या देश के विकास को प्रभावित कर रही है। बड़ी जनसंख्या तक योजनाओं का लाभ समान रूप से नहीं पहुंच पा रहा हैं। जिसकी वजह से गरीबी और बेरोजगारी समस्या बनी हुई है।

विश्व में सबसे अधिक गरीब और भूखे लोग भारत में रहते है। कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या भी भारत में ही सबसे अधिक है। युवाओं में हताशा और तनाव बढ़ रहा है।

भारत की जनसंख्या सकल घरेलू उत्पाद और गरीबी को जोड़ने वाले हैं इज़की दो दिशा है। पहले दिशा में प्रति व्यक्ति जीडीपी का ग्राफ बढ़ने के साथ गरीबी दर घटी है जिससे जनसंख्या वृद्धि कम हो जाती हैं। इसके विपरीत दिशा मेंजनसंख्या पर काबू पाते ही जीडीपी बढ़नी चाहिए।

लेकिन क्या गरीबी दर इससेकम होती है। माल्थस की परिकल्पना की थी कि जनसंख्या वृद्धि दर से गरीबी, अकाल, महामारी बढ़ेगी जब कि सच्चाई यह है कि बढ़ती जनसंख्या जीडीपी और गरीबी दोनों ही दिशा में जुड़ी हुई है और दोनों भी एक दूसरे की बाधक है।

लेखिका : अर्चना  यादव

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