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करवा का चाँद
( Karwa ka chand )
चांद , रोजा रख कर या भूखे
रहकर तुझे मनाना पड़े
मुहब्बत मेरी उस मुकाम
पर है, कि कोई गवाह
बनाना पड़े
अब्र में छुपे कभी जमीं के
साए में तू, मर्जी तेरी
इक महज मेरा नहीं है तू ,
कि मुझे ही तुझे
रिझाना पड़े
कभी दूज,कभी तीज , कभी
चौथ का बन आता है तू
पूरा तो पूरा , आधे अधूरे से
भी, जो कभी मुझे खफा
होना पड़े
आज किया हर रिवायतों से
आज़ाद तुझे , ए महताब
इज़्तिराब ,हसद का कोई
इल्जाम तुझ पर न
लगाना पड़े..
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )
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