गुजारिश आपसे | Ghazal guzarish aap se
गुजारिश आपसे
( Guzarish aap se )
गुजारिश आपसे, मेरे ख्याल को सराह दिया जाए
अपने दिल में इस ग़ैर मुस्तहिक़ को पनाह दिया जाए
ये बात नहीं आसान इतनी
दिकत के लिए जो हो हमें सजा दिया जाए
क्या पसंदीदा और क्या ना-पसंदीदा
अल्फ़ाज़ को बस अल्फ़ाज़ की दर्ज़ा दिया जाए
ज़ख्म को ज़रा सी हवा दिया जाए
महफ़िल में हम है तो इल्म का चिराग बुझा दिया जाए
उर्दू मुहब्बत का लफ्ज़ है
और शेर-ओ-शायरी मुहब्बत की दास्तां है
इल्म के मालिक, तुम अपने ग़ज़लों में बेहर रखा करो
में मुहब्बत नमाज़ी हूँ, मुझे दिल का रस्ता दिया जाए
‘अनंत’ तू मुहब्बत है, शायरों की दास्तां नहीं है
गुजारिश आपसे, आप हमें सम्झे या हमें आपको समझने का मौका दिया जाए
‘खुसरो’ के ज़ुबान अब हम और हम पर चलाने लगे लोग
गुजारिश आपसे, मुहब्बत की राह में मुहब्बत को थोड़ी सी जगह दिया जाए
शायर: स्वामी ध्यान अनंता