chaahe kaante mile ya ki phool
chaahe kaante mile ya ki phool

चाहे काँटे मिले या कि फूल

 

चाहे काँटे मिले या कि फूल

मुस्कुरा के तू कर ले क़ुबूल

 

झूट को सच कहा ही नहीं

अपने तो कुछ हैं ऐसे उसूल

 

हाल ऐसा हुआ हिज्र में

जर्द आँखें है चेहरा मलूल

 

आस फूलों की है किसलिए

बोये हैं आपने जब बबूल

 

कर रही मंज़िलें इन्तज़ार

राह में बैठना है फ़िज़ूल

 

लोग सारे सुधरते नहीं

राम आये कि आये रसूल

 

अज़्म कमजोर जिनके पड़े

बन गये रास्तों की वो धूल

 

सोच मत इतना भी तू ‘अहद’

आदमी से ही होती है भूल !

 

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चाहे काँटे मिले या कि फूल

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मशहूर गायक रफीक शेख़ की आवाज़ में ये ग़ज़ल सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

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शायर:– अमित ‘अहद’

गाँव+पोस्ट-मुजफ़्फ़राबाद
जिला-सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश )
पिन कोड़-247129

 

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