
गुलशन
( Gulshan )
गुल खिले गुलशन खिले खिलती चले बहार
महकती फिजायें सारी चमन हुआ गुलज़ार
दिल की हसीं वादियो में फूलों का डेरा है
खुशबूओं से भरा चमन है प्यार घनेरा है
बागों में बैठी कोयल तितलियां पंखों वाली
गुलशन सारा महकता फलों से लदी डाली
पेड़ों पे लताएं मोहक पुष्प भांति भांति के
मोगरा गुलाब चमेली केवड़ा रातरानी के
बगिया का कोना-कोना मंद मंद बयार है
सौरभ महकी महकी चले मधुर बहार है
मन मयूरा नाच उठता गुलिस्ता में प्यार का
झूम उठे तन मन सारा दीपों के त्यौहार सा
खिल जाए चेहरे सारे कुसुमित पुष्पवृंद से
गुलशन हो महफिले सारी मोहक छंद से
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )