हाँ खायी जीस्त में ठोकर बहुत है
हाँ खायी जीस्त में ठोकर बहुत है

हाँ खायी जीस्त में ठोकर बहुत है

( Haan khayi jeest mein thokar bahut hai )

 

हाँ खायी  जीस्त में ठोकर बहुत है

जिग़र पे इसलिए  नश्तर बहुत है

 

मुहब्बत का अपनें ने कब दिया गुल

नफ़रत के ही मारे पत्थर बहुत है !

 

किसी को प्यार क्या  देगे भला वो

 मुहब्बत की जमीं बंजर बहुत है

 

मिले मंजर नहीं मुझको ख़ुशी के

ग़मों के ही देखे मंजर बहुत है

 

नहीं दी पेट भर रोठी अपनों ने

किया है काम भी दिन भर बहुत है

 

नहीं अच्छी सीरत है उसकी दिल से

सूरत से वो लेकिन सुंदर बहुत है

 

नज़ाकत जो दिखाएगा “आज़म” को

नगर में वरना देखो  दर बहुत है

 

❣️

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

यह भी पढ़ें : –

जिंदगी रोज़ ग़म ने ही सतायी ख़ूब है | Ghazal

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here