
आओ सारी कसम तोड़ दे
( Aao saaree kasam tod de )
आओ सारी कसम तोड़ दे, हवा का रुख मोड़ दे।
प्यार भरे झरने लाए, सद्भाव दिलों में छोड़ दें।
हंसी खुशी से रहना सीखें, बैर भाव सब छोड़ दे।
हिलमिल कर रहे हम, आओ सारी कसम तोड़ दे।
कुदरत भी हम संभाले, अपने हाथों पेड़ लगा ले।
होठों पर मुस्कान ले, दीन हीन को गले लगा ले।
जाति-पाति विष फैलाए, उनमें मानवता जोड़ दें।
रोक रही हो परंपरायें, आओ सारी कसम तोड़ दे।
फूलों सी खुशबू सा महके, हो खुशियों भरी बहार।
पग पग पर विजय हमारी, नेह की चले बयार।
शब्द मोती चुन चुनकर, संगीत से स्वर जोड़ दे।
प्रेम की महफिल सजा,आओ सारी कसम तोड़ दे।
ना सीमाए ना सरहद, ना हमें बांधे कोई दीवार।
उन्मुक्त विचारों की भाषा, ना रोक सके सरकार।
प्रगति पथ पर बढ़ते जाएं, रुक ना जाना हौड़ से।
प्रतिभा दिखलाने को, आओ सारी कसम तोड़ दे।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )