अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस | International Women’s Day
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर समस्त नारी शक्ति को नमन करते हुए मेरे भाव – आसमाँ को मुट्ठी में क़ैद करने की ख़्वाहिश, अपनी पहचान तलाशने, अपनी पहचान क़ायम करने का अरमान, रिश्ते-नाते,घर-आँगन को सहेजने का ज़िम्मा।
रस्मों-रिवाजों को निभाने की हर कोशिश ,हर ज़िम्मेदारी आज एक माँ, संगिनी, बेटी, बहु,पत्नी,जननी आदि बन कर नारी बख़ूबी निभा रही है। औरत जिससे सारा संसार ज्यीतिर्मय है अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि वह जननी हैl
भारतीय संस्कृति में नारी का विशेष सम्मान किया गया है। जन्म से मृत्यु तक की, सुबह से शाम तक की, हमारी हर मुख्य चर्यायों का नारी आधारित नाम दिया गया है जैसे समझदार बनने के लिए “विद्या”की आवश्यकता होती है।
जीविका चलाने के लिए “लक्ष्मी “की जरूरत होती है। फिर देखें सुबह से शाम तक यानि ‘उषा’ से ‘संध्या’ तक रोटी की जुगाड़ में लगे रहते हैं जिसे देवी ‘अन्नपूर्णा’ पूर्ण करती है आदि – आदि ।
इस तरह स्त्री की असली पहचान है कि वो एक शक्ति का रूप है जिसके ऊपर माँ, पत्नी,बहन,बेटी आदि तमाम जिम्मेदारियाँ होती हैं। पृथ्वी पर महिलाओं के बिना जीवन की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती हैं।
नारी के संघर्ष की गाथा बहुत हैं।नारी का हजारों वर्षो से शोषण होता आया है, कभी आडंबरों के माध्यम से, तो कभी परिवार के सम्मान के लिए आदि – आदि ।
इसी नारी को सम्मान देने तथा उनकी उपलब्धियों का गुणगान करने और उनके त्याग समर्पण आदि को मुल्य प्रदान करने के लिए प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) मनाया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) की शुरुआत आज से लगभग एक सदी पूर्व एक समाजवादी आंदोलन के माध्यम से हुई थी जो कि एक श्रम आंदोलन से उपजा था।
इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को वार्षिक रूप से मनाने की मान्यता दी थी। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत साल 1908 में हुई थी, जब न्यूयॉर्क शहर की सड़कों पर हजारों महिलाएं घंटों काम के लिए बेहतर वेतन और सम्मान तथा समानता के अधिकार को प्राप्त करने के लिए उतरी थी।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव क्लारा जेटकिन का था, उन्होंने साल 1910 में यह प्रस्ताव रखा था। पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस साल 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में मनाया गया था।
यह अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास से संबंधित कुछ बातें थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को औपचारिक मान्यता वर्ष 1996 में प्रदान की गई थी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे ‘अतीत का जश्न, भविष्य की योजना’ थीम के साथ शुरू किया गया था।
आज के परिप्रेक्ष्य में अगर हम विचार करें, तो हम पाते हैं कि आज की तारीख में महिलाएं पुरुषों से बहुत आगे निकल गई हैं। महिलाओं को जब-जब अवसर दिया गया, तब-तब उन्होंने पूरे विश्व को बता दिया कि वह पुरुष के बराबर ही नहीं, बल्कि कई मौकों पर वे उनसे कई गुना बेहतर साबित हुई हैं।
आज विश्व पटल पर महिलाएं नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। अब वह समय नहीं रहा जब महिलाएं घर की चार-दिवारी में बंद की जाती थी। अब महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं।
भारतीय संस्कृति में नारी को विशेष स्थान दिया गया है। जैन संस्कृति भारतीय संस्कृति को गौरवशाली बनाने में महत्वपूर्ण स्थान रखती है ।नारी सम्मान के अनेक उदाहरण जैन संस्कृति में बहुलता के साथ हमारे समक्ष है ।इस काल में प्रथम सिद्ध होने का श्रेय माता मरुदेवा को प्राप्त हुआ।
ऋषभ ने लिपि और गणित का प्रशिक्षण देने के लिए ब्राह्मी और सुंदरी को ही चुना ।24 तीर्थंकर में 19 वां तीर्थंकर मल्लि नाथ को भी स्थान दिया । 16 महासतियों के माध्यम से नारी जाति को उच्च सम्मान दिया गया। तेरापंथ धर्मसंघ में जयाचार्य ने महासती सरदारां जी को जो मान दिया वह अतुलनीय है, लंबी गाथाएँ है।
मातु श्री छौगाँ जी और वदानां जी का उदाहरण सामने है। साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा जी को तो आचार्य तुलसी से लेकर आचार्य महाश्रमण जी तक. महाश्रमणी, संघ महानिदेशिका, असाधारण साध्वी प्रमुखा और शासन माता का संबोधन और सम्मान प्रदान किया । वर्तमान साध्वी प्रमुखा विश्रुतविभाजी धर्मसंघ का गरिमापूर्ण दायित्व निभा रही है।
आचार्य तुलसी नारी जाति के उन्नायक व धर्म क्रांति के सूत्रधार थे। नव उन्मेषि , आत्म गवेषी ,युग द्रष्टा गुरुदेव तुलसी नारी जाति के सही से उद्धारक थे जिन्होंने नारी में स्वाभिमान जगा कर , बालिका शिक्षा का विकास कर सब क्षेत्रों में नारी को आगे ला कर नारी को विपुल सम्मान दिया ।
अपने कर्तव्य के द्वारा सृजन के आकाश की अनेक ऊँचाइयाँ को छूने के साथ-साथ अपने धरातल से जुड़कर संस्कारों का सिंचन करते हुए अपने घरौंदे को विशाल आलम का रूप दिया , अपनी क्षमताओं का सिंचन देकर अपनी नैसर्गिक गुणावली को क़ायम रखते हुए सुघड़ आकर दिया आदि गुणों से परिपूर्ण नारी शक्ति को आज के दिन मेरा शत – शत नमन ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)