जरा सी बात इतनी भारी हुयी
जरा सी बात इतनी भारी हुयी
जरा सी बात इतनी भारी हुयी।
उम्र भर की हमें बीमारी हुयी।।
आज जी भर के शायद रोया है,
इसी से आंख भारी भारी हुयी।।
फरेबी नश्ल ही रही उसकी,
हानि जो भी हुयी हमारी हुयी।।
उसे सुला के ही सो पाता हू़,
न जाने कैसी जिम्मेदारी हुयी।।
सिलवटें बिस्तर की बताती हैं,
किस तरह जाने की तैयारी हुयी।।
आज ही भूल गये वो हमको,
अभी तो कल ही खाकसारी हुयी।।
वो जब हंसता है शेष हंसता हूं,
ऐसी हालत ही कुछ हमारी हुयी।।
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कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)
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