पी मुहब्बत की मैंनें भी चाय है 
पी मुहब्बत की मैंनें भी चाय है 

पी मुहब्बत की मैंनें भी चाय है 

 

 

पी मुहब्बत की मैंनें भी चाय है !
इसलिए आहें निकलती दिल से है

 

मिल गया है दर्द दिल को इक ऐसा
वो गया पीला दग़ा की चाय है

 

बेवफ़ा से मैं मुहब्बत कर बैठा
जो नहीं समझा वफ़ा की चाय है

 

रह गयी दम तोड़ती दिल में ख़्वाहिश
पी जिसकी थी आरजू की चाय है

 

इंतिहा अब हो गयी है रब ग़म की
पीला दे रब अब ख़ुशी की चाय है

 

रुला आंखों को गयी है आज मेरे
अब नहीं पीनी मुहब्बत की चाय है

 

दर्द देगी उम्रभर आज़म ग़म के
मत पी तू ये जो मुहब्बत की चाय है

 

 

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शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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