वो कभी ज़ज्बात दिल के यार समझा नहीं | Jazbaat ghazal
वो कभी ज़ज्बात दिल के यार समझा नहीं
( Wo kabhi jazbaat dil ke yaar samjha nahi )
वो कभी ज़ज्बात दिल के यार समझा नहीं
मुझसे देखो वो कभी भी प्यार से मिलता नहीं
छोड़कर वो बीच सफ़र में ज़ा चुका है तन्हा ही
पूरा उससे ही मुहब्बत का किया फेरा नही
दिल फ़रेबी इस क़दर निकला हर वादे दीगर से
कोई भी उसनें निभाया प्यार का वादा नहीं
उस हसीं से मिलनें को मेरा दिल बेताब है
शहर में उसके घर का मुझको मिला रस्ता नहीं
देखता है राहे जिसकी रोज़ तू दिल में लिए
हाँ मगर होता इशारा भी कोई उसका नहीं
दूरियां बढ़ती नहीं उससे हमेशा के लिए
प्यार में ही वो अगर मुझसे खफ़ा होता नहीं
एक वो है जो कभी आता नहीं मिलनें मुझे
याद वो आता न हो ऐसा कोई लम्हा नहीं
ऐसा बिछड़ा राहों में मुझसे दग़ा की भीड़ में
वो मिला “आज़म” दुबारा फ़िर मुझे चेहरा नहीं