जीवन के रंग

धर्म-पत्नि

अग्नि को साक्षी मान खाये सात फेरे,
दाम्पत्य जीवन बंधन में खाये सात फेरे।

सनातन धर्म में विवाह विधि शुभ संस्कार,
वचन नहीं निभाये पापी पाप पुण्य संस्कार।

पति-पत्नी परस्पर करे प्रेम भाव स्नेह,
विच्छेद नहीं करे सेवा सुरक्षा भाव स्नेह।

नर्क स्वर्ग जीवन यात्रा में जुगल जोड़ी,
तोड़े जो ताना-बाना मोल एक कोड़ी।

मानव नहीं दानव दोगला बिना पूंछ पशू ,
देख रहा दाता मन बुद्धि चित्त चक्षु।

वंश वृद्धि शिव शक्ति की गणेश कार्तिक,
राम सीता संतान लव कुश गुरुवर वाल्मिक।

द्रौपदी का चीरहरण सीता का अपहरण अनहोनी,
करता सब कुछ करतार घटे घटना अनहोनी।

महाभारत कुरुक्षेत्र युद्ध मिला गीता का ज्ञान,
रामायण की रचना पात्र पवित्र रावण अभिमान।

राजा भर्तृहरि राज पाठ छोड़ा पिंगला रानी,
कागा ताप संताप त्याग माया बने ज्ञानी।

सच्चाई

जो बोला झूठ बोला अपनी ज़ुबान से,
सच्च का सामना नहीं किया ज़ुबान से।

बेईमान बन कर ईमान बेच दिया अपना,
अमीर बनने वास्ते ज़मीर बेच दिया अपना।

झूठ लूट खसोट पुश्तेनी पैशा जारी रखा,
आने नहीं दी आंच उस़ूल जारी रखा।

नस्ल की नस-नस में खोलता ख़ून,
जब नहीं ज़ुल्म तब तक नहीं सुकून।

थूक कर चाट लेना फ़ित़रत में शुमार,
जोश जवानी ता़क़्त का चढ़ा रहता ख़ुमार।

गुलहटी पल्टी मार करना धोखा-धड़ी दग़ा,
बांये हाथ का खेल कोई नहीं सगा।

शराफ़त से रिश्ता नाता नहीं रखा कभी,
साज़िश शरारत से दूरी नहीं बनाई कभी।

गै़रत को ग़र्क़ किया समुंद्र में डाल,
काले सांप कोबरे रखें आस्तीन में पाल।

कागा इंसानियत दफ़न हो गई इंसान ज़िंदा,
क़दम दर क़दम करते नफ़रत का धंधा।

चाटुकार

अपने स्वार्थ वास्ते खोल देते मित्रों के भेद,
खाते थाली में भोजन कर देते उसमें छेद।

जब तक होती ग़र्ज़ करते चिकनी चुपड़ी बातें,
दिन गुज़ारते संगीन संग बीत जाती रंगीन रातें।

ताबड़-तोड़ तलवे चूस चाट करते काना-फूसी,
आगे पीछे इधर-उधर दरिया दिल नहीं कंजूसी।

अंदाज़ अलग पहन कुर्ता-पायजामा रहन-सहन रईस,
हाथ पकड़ी छड़ी पग में कड़ी रुतबा रईस।

चापलूस बन करते चाटुकारी चुग़ल खोर गिला शिकवा,
रंगदारी मांगी जाती खुले आम खेत खलिहान बिकवा।

कागा लूट खसोट मचाते ज़र ज़ेवर धन दोलत,
आज नगद कल उधार नहीं कोई छूट मोहलत।

शेरे इंसान

शेर करता अपना शिकार घास नहीं खाता,
ख़रगोश चरता घास जंगल मांस नहीं खाता।

भूख मरना मंज़ूर अपनी मांद में मांदा,
स्वाद बदलने खाता भूख मिटाने नहीं खाता।

पराया शिकार सूंघता तक नहीं जूठन बासी,
कुत्ता का किया शिकार क़त़ई नहीं खाता।

झपट लेता झट-पट झटके से दहाड़,
खाता कर ख़ुद ह़लाल हराम नहीं खाता।

इंसान अजीबो-गरीब मिज़ाज रंगीन संगीन उस़ूल,
लूट लेता लुटेरा घास घूस जायज़ खाता।

ख़रगोश की क्या बिस़ात़ पराया मांस खाये,
अपनी नहीं कोई औकात मांस नहीं खाता।

कागा नहीं खोजे कम्मी-बेशी किसी की,
बद+नियत हर किसी की चुग़ली खाता।

मेघवंशी

मेघ वंश के दो अंश जाटा मारू,
सिंधु घाटी के सुत सपूत माईया धारू।

सिंध ढाट की छवि छट्टा सुंदर सलोनी,
मोअन जो दड़ो खंडहर मिली नाम निशानी।

किया काम ऊन कपास कताई बुनाई वस्त्र,
राज़गीर कारीगर भवन निर्माण चलाते अस्त्र-शस्त्र।

भाला ढाल तलवार नुकेले तीखी तेज़ धार,
अंग कवच पशु खाल लड़ते धूंआ-धार।

खंडहर खोदे गये खंगाल चिन्ह मिले प्राचीन,
सिंधु सभ्यता संस्कृति वेष भूषा भाषा प्राचीन।

मेघ नाम बादल गर्जे गगन मंडल में,
बारिश बरसे शीतल जल गगन मंडल में।

प्रथ्वी बने हरी भरी करे सोलह श्रृंगार,
जहां बरसते लू ताप आंधी अनन्त अंगार।

बुनकर बन ताना-बाना बुना अंग वस्त्र,
तन ढांपा जन मानस का निर्मित वस्त्र।

अग्नि कुंड में उत्पन्न चार क्षत्रिय क्षत्रप,
सोलंकी पड़िहारा चौहान परमार शूरवीर सपूत क्षत्रप।

रजपूत ने नाम दिया शक्ति प्रतीक सिंह,
नाम पीछे जेसा काम वेसा नाम सिंह।

प्रकृति प्रलय पश्चात नर्म गर्म दो दल,
भक्ति भजन कथा कीर्तन शक्ति बाहु बल।

मेघ का नाम बिना उपमा उप-नाम,
संत साधु रिखिया मेघ ऋषि की सन्तान।

जब आई बहिष्कृत की बारी समाज में,
रजपूत बने मेघवार गुण गौत्र समाज में।

मारू दी पहचान आज तक चलित फलित,
जाटा जाट समाज का विघटन बना प्रचलित।

सिंध ढाट सामरोटी खावड़ में पढ़े मेघवाल,
मोहराणो वट पारकर में लिखे पढ़ें मेघवाल।

ढाटी मेघवाल ने नाम पीछे लिखा नंद,
कागा राय राज मल दास लाल चंद।

ईमानदारी

किसी को रोका नहीं किसी को टोका नहीं,
किसी से दग़ा नहीं किसी से धोखा नहीं।

हम सफ़र राही बने मंजिले मक़स़ूद की जानिब,
बिल्ली बन किसी मुसाफिर का रास्ता रोका नहीं।

शक बेशक रहा झूठ झांसा की अफ़वाहें सुन,
रहज़न बन किसी अजनबी का रास्ता रोका नहीं।

नेकी कर दरिया में डाली ज़माना चश्मदीद गवाह,
लुटेरा बन किसी शरीफ़ का रास्ता रोका नहीं।

मर्द बन बेदर्द की दुआ बटोरी मुसीबत देख,
नामर्द बन किसी क़द्दावर का रास्ता रोका नहीं।

रंगदारी में रंगीन नहीं नाज़ नख़रे आमने-सामने,
ख़ूंख़ार बन किसी ख़ानदान का रास्ता रोका नहीं।

रूबरू शराफ़त पीठ के पीछे शरारत साजिश कागा,
ख़ुराफ़्त बन किसी कामयाब का रास्ता रोका नहीं।

आवा-गमन

जो आया जग में अंत जाना है,
जो जाया जग में अंत जाना है।

प्रकृति की रचना प्रबल आवा-गमन अडिग,
चौरासी लाख योनियों का उत्पन्न पतन अडिग।

चार खानें चित्त अजर अमर कोई नहीं,
सबके अंदर सांसें अता पता कोई नहीं।

काम क्रोध लोभ मोह अहंकार पांच प्रमुख,
भिन्न-भिन्न रंग रूप तीन ताप संताप सुख।

दस इन्द्रियां सबका अपना क्रम धर्म-कर्म,
पच्चीस प्रवृतियां विभिन्न मुद्रायें मर्म धर्म-कर्म।

कागा रस रूप गंध शब्द स्पर्श कर्तव्य,
अगन गगन पवन जल थल सशक्त कर्तव्य।

ईमानदारी

किसी को रोका नहीं किसी को टोका नहीं,
किसी से दग़ा नहीं किसी से धोखा नहीं।

हम सफ़र राही बने मंजिले मक़स़ूद की जानिब,
बिल्ली बन किसी मुसाफिर का रास्ता रोका नहीं।

शक बेशक रहा झूठ झांसा की अफ़वाहें सुन,
रहज़न बन किसी अजनबी का रास्ता रोका नहीं।

नेकी कर दरिया में डाली ज़माना चश्मदीद गवाह,
लुटेरा बन किसी शरीफ़ का रास्ता रोका नहीं।

मर्द बन बेदर्द की दुआ बटोरी मुसीबत देख,
नामर्द बन किसी क़द्दावर का रास्ता रोका नहीं।

रंगदारी में रंगीन नहीं नाज़ नख़रे आमने-सामने,
ख़ूंख़ार बन किसी ख़ानदान का रास्ता रोका नहीं।

रूबरू शराफ़त पीठ के पीछे शरारत साजिश कागा,
ख़ुराफ़्त बन किसी कामयाब का रास्ता रोका नहीं।

आवा-गमन


जो आया जग में अंत जाना है,
जो जाया जग में अंत जाना है।

प्रकृति की रचना प्रबल आवा-गमन अडिग,
चौरासी लाख योनियों का उत्पन्न पतन अडिग।

चार खानें चित्त अजर अमर कोई नहीं,
सबके अंदर सांसें अता पता कोई नहीं।

काम क्रोध लोभ मोह अहंकार पांच प्रमुख,
भिन्न-भिन्न रंग रूप तीन ताप संताप सुख।

दस इन्द्रियां सबका अपना क्रम धर्म-कर्म,
पच्चीस प्रवृतियां विभिन्न मुद्रायें मर्म धर्म-कर्म।

कागा रस रूप गंध शब्द स्पर्श कर्तव्य,
अगन गगन पवन जल थल सशक्त कर्तव्य।

कागा की कलम

कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा

पूर्व विधायक

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