कभी अपनों ने ही समझा नहीं है
कभी अपनों ने ही समझा नहीं है

कभी अपनों ने ही समझा नहीं है

( Kabhi apno ne hi samjha nahin hai )

 

कभी अपनों ने ही समझा नहीं है !

दिल उनसे इसलिए अब मिलता नहीं है

 

गली में इसलिए छाया अंधेरा

कभी तक चाँद वो  निकला नहीं है

 

मुहब्बत की क्या होती गुफ़्तगू फ़िर

कभी वो  पास में बैठा नहीं है

 

न जाने वो कहा क्या हाल होगा

बहुत दिन से वही देखा नहीं है

 

ख़ुदा उसका मुझे चेहरा दिखा दें

वही अब ख़्वाब में आता नहीं है

 

जाने से पहले वादा कर गया था

अभी तक उसका ख़त आया नहीं है

 

रहा उसकी नजरों में  ग़ैर “आज़म”

कभी  माना  मुझे अपना  नहीं है

❣️

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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