कभी वेदना कि संवेदना को समझे ही नही
कभी वेदना कि संवेदना को समझे ही नही

कभी वेदना कि संवेदना को समझे ही नही

( Kabhi Bedna Ki Sambedna Ko Samjhe Hi Nahi )

 

 

कभी वेदना कि संवेदना को समझे ही नही
अब आंखों में पानी बहाने से क्या फायदा

 

कभी मोहब्बत को मोहब्बत तुम समझे ही नहीं
अब दिल सामने निकाल रखने से क्या फायदा

 

कभी हमारी भावनाओं की कद्र समझे ही नहीं
अब बेवजह आंसू बहाने से क्या फायदा

 

कभी दिल की पुकार को दिल से समझे ही नहीं
अब दिल को दिल से पुकार ने से क्या फायदा

 

कभी साथ मिल रहने को तुम समझे ही नहीं
अब अपनी बेचैनी  बढ़ाने से क्या फायदा

 

कभी हमको तुम अपना अपना समझे ही नहीं
अब तुमको  ही अपना बनाने से क्या फायदा

 

 

 

Dheerendra

लेखक– धीरेंद्र सिंह नागा

(ग्राम -जवई,  पोस्ट-तिल्हापुर, जिला- कौशांबी )

उत्तर प्रदेश : Pin-212218

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