अंतर्द्वंद्व
1996 की बात है। 12 वर्षीय मानव के घर पर गांव से उसके चाचा-चाची जी आये। चाची को समोसे बहुत पसंद थे। चाची ने आते ही समोसे खाने की अपनी इच्छा जाहिर की और बोली, “मुझे चेतराम के यहां के समोसे खाने हैं। बहुत दिनों से यहां आने की सोच रही थी, आज आई हूं तो समोसे खा कर ही जाऊंगी।”
मम्मी ने आवाज देकर मानव को बुलाया और कहा, “मानव ये ले ₹20 रुपये और जल्दी से चेतराम जी की दुकान से 10 समोसे लेकर आ। मैं इतने चाय बनाती हूं।”
मानव चेतराम जी की दुकान पर पहुंचा। उसने 10 समोसे लिए और ₹20 का नोट चेतराम जी को दिया। उस समय एक समोसे की कीमत एक रुपये थी। चेतराम जी ने ₹10 वापस करने की बजाय गलती से ₹40 मानव को वापस कर दिए थे और फिर से अपने ग्राहकों में लग गए थे।
मानव कुछ देर वहीं खड़ा रहा। उसको लगा, कहीं उनको ध्यान आ जाए कि उन्होंने गलती से मानव को ज्यादा रुपए दे दिए हैं तो… कहीं आवाज देकर उसको बुला ना लें। जब मानव को इत्मीनान हो गया कि चेतराम जी उससे रुपए वापस नहीं लेंगे। चेतराम जी ने 20 के नोट को 50 का नोट समझकर उसको रुपए वापस किए हैं तो वह खुश हो गया और खुशी-खुशी रुपये व समोसे लेकर अपने घर की तरफ चल पड़ा।
घर जाते समय वह रुपयों का ही हिसाब लगा रहा था। सोच रहा था कि समोसे के ₹10 काटकर ₹10 मम्मी को वापस कर दूंगा। फिर मेरे पास ₹30 रह जाएंगे। अब वह उन ₹30 से क्या क्या खाएगा??? क्या क्या लेगा?? क्या क्या खरीदेगा?? वगैरा-वगैरा सोचता हुआ जा रहा था। वह सोचे भी क्यों न…. आख़िर उसकी लॉटरी जो लग गई थी। रुपए के रुपए मिले सो अलग और समोसे खाने के लिए मिले सो अलग।
घर जाकर मम्मी को उसने ₹10 वापस किये और ₹30 अपनी जेब में रख लिये। उस दिन वह बहुत खुश था। पूरी रात ₹30 के बारे में ही सोचता रहा।
मानव ऑटो से स्कूल जाता था। ऑटो चेतराम जी की दुकान के सामने से ही मिलता था। अगले दिन स्कूल जाने के लिए जब वह चेतराम जी की दुकान के सामने से होकर गुजरा तो उसने देखा की चेतराम जी समोसे बनाने की तैयारी कर रहे थे। जैसे ही चेतराम जी ने मानव की तरफ देखा तो मानव ने अपनी नजरें घुमा ली। वह दूसरी तरफ देखने लगा। उसको बड़ा अजीब लग रहा था।
उनसे नज़रे मिलाने में उसको डर सा महसूस हो रहा था। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे उससे कोई बड़ा गुनाह हो गया हो। उसे यह भी लग रहा था कि कहीं वे उससे रुपए ना मांग लें। उसका दिमाग बोल रहा था कि उसने गलत किया है। उसको कल ही रुपये लौटा देने चाहिए थे, जबकि मन बोल रहा था कि यह सारी गलती तो उनकी है।
कल से उन्होंने क्यों ध्यान ना दिया। अगर कोई बात होती तो वे कल शाम ही घर पहुंच जाते। मगर अब डरने की क्या बात है?? अगर वह कुछ बोलेंगे तो बोल दूंगा कि 50 रुपये का ही नोट दिया था। फिर मजे से इन बाकी बचे रुपयों से अपनी मनपसंद चीजें खरीदूंगा और खाऊंगा। आखिरकार उसका मन जीत गया और वह उनको नजरअंदाज करके अपने स्कूल पहुंचा।
जब इंटरवेल हुआ तो उसका ध्यान जेब में रखे रुपयों पर गया और उसने सोचा कि चलो कुछ खाया जाए। स्कूल के बाहर ही एक समोसे वाला उसको नज़र आया। वह उसके पास गया और उसने दो समोसे मांगे। जब वह समोसे खा रहा था तो उसको रह रह कर चेतराम की दुकान के समोसे और रुपए याद आ रहे थे।
इत्तेफाक से उसी समय, समोसे वाले के परिचित किसी सज्जन ने समोसे वाले से कहा,”बड़े भाई आप यहां?? यह समोसे बेचने का काम कबसे शुरू किया?? आप यह काम क्यों कर रहे हो?? कोई और काम कर लेते?? कितना कमा लेते हो??”
समोसे वाला बोला, “बड़े भाई परिवार में 10 लोग हैं। बस जैसे-तैसे गुजारा हो जाता है। नौकरी लगी नहीं और लगकर कहीं काम मिला नहीं तो सोचा ठेला ही लगा लूं। घर की हालत इतनी नहीं थी कि अपना खुद का बिजनेस कर पाता। बस किसी के आगे हाथ फैलाने नहीं पड़ रहे। जैसे तैसे घर का गुजारा हो रहा है। इसी में संतोष है।”
वे दोनों बातें कर रहे थे। उधर मानव चेतराम के समोसों व रुपयों के बारे में सोचता जा रहा था। उसे खुद पर शर्म आ रही थी। वह सोच रहा था कि कितनी मुश्किल से ये लोग अपने परिवार का पेट भरते हैं और वह यूं ही उनकी मेहनत की कमाई की रकम जेब में लिए घूम रहा है।
अगर चेतराम जी को पूरी जिंदगी इस बात का पता न भी चले कि उसने उनके रुपये लिये हैं, लेकिन उसको व भगवान जी को तो सब पता है। भगवान जी से तो कुछ भी छुपा हुआ नहीं है। देर सवेर वे उसकी इस हरकत की सजा तो उसको जरूर देंगे। वह चेतराम जी से नजरें झुकाकर, नजरें बचाकर नहीं जी सकता।
आखिर उसे उनके सामने से रोज गुजर कर स्कूल जाना होगा। अंत में उसने सोच लिया कि वह आज छुट्टी में स्कूल से घर जाते समय चेतराम जी के रुपए वापस कर देगा और एक अच्छा व नेक इंसान बनकर दिखाएगा।
छुट्टी में घर जाते समय वह हिम्मत करके चेतराम जी की दुकान पर पहुंचा और उसने ₹30 उनके हाथ पर रख दिए। वह बोले, “बेटा, कितने समोसे दूँ??”
“कुछ नहीं चाहिए, अंकल जी”। यह रुपये आपके ही हैं। कल गलती से आपने मुझे ज्यादा रुपए दे दिए थे। कृपया आप इनको रख लीजिए।”
चेतराम जी कुछ बोलते उससे पहले ही मानव अपने घर की तरफ बढ़ गया। इतने समय बाद आज भी जब कभी मानव समोसे खाने या समोसे लेने चेतराम जी की दुकान पर जाता है तो वह देखता है कि वे उसका बड़ा ध्यान रखते हैं और बहुत अच्छे से, बिल्कुल अपने बच्चे की तरह पेश आते हैं।
उसको बड़ा मान सम्मान देते हैं। अगर मानव उस दिन रुपए वापस ना करता तो वह पूरी जिंदगी परेशान रहता। उसकी आत्मा उसको कचोटती रहती, धिक्कारती रहती। वह पूरी जिंदगी पश्चाताप की आग में जलता रहता। अच्छा हुआ उसने समय रहते प्रायश्चित कर लिया।

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा
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