
मनीष अपने परिवार में सबसे बड़ा लड़का है। परिवार में बड़ा होने के कारण माता-पिता का प्रेम कुछ उसे पर ज्यादा ही है। उससे छोटी उसकी दो बहनें है।
उसके पिताजी समाज में एक संभ्रांत व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। उसके परिवार में वैदिक परंपरानुसार धार्मिक कृत्य होते हैं। जिसका प्रभाव उसके जीवन में भी दिखलाई पड़ता है।
इंटर पढ़ने के बाद उसे कोटा राजस्थान में इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए भेजा गया। जहां पर उसका सिलेक्शन एक इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया। कॉलेज में ही कुछ दोस्त राधा कृष्ण के परम भक्त हैं। जो की राधा कृष्ण का अक्सर भजन गाया करते हैं और मस्ती के साथ झूमते नाचते हैं।
मनीष को भी यह बहुत अच्छा लगता था। न जाने कब उसके जीवन में कन्हैया की भक्ति का नशा चढ़ गया पता ही नहीं लगा। वह भी अब पूर्ण रूप से कृष्ण के रंग में रंग चुका था।
मुझे मेरी मस्ती कहां लेकर आईं। मनुष्य के जीवन में कब क्या परिवर्तन हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता? माता-पिता तो अक्सर चाहते ही हैं कि हमारा बच्चा इन सिद्धांतों को माने और जाने लेकिन कभी-कभी परमात्मा की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती।
बच्चे हमारे द्वारा आए हैं। लेकिन हम जैसा चाहे वैसा करें। हमें यह समझना होगा कि बच्चों के पालन पोषण में ही हम स्वतंत्र हैं। बनना या बिगड़ना प्रभु की मर्जी पर निर्भर है। हम मार्गदर्शन कर सकते हैं ,रास्ता बता सकते हैं लेकिन चलना तो उसे ही है।
मनीष का अब पढ़ाई-लिखाई में रुचि धीरे धीरे कम होने लगी थीं।उसे संसार के मिथ्या आकर्षण अब नहीं लुभाते हैं। धीरे-धीरे उसकी शादी विवाह में भी विश्वास नहीं रहा। उसने यह निर्णय पक्का कर लिया था कि आगे का जीवन भगवान कृष्ण की सेवा में ही लगाएगा।
अपना निर्णय जब उसने अपने पिता और मां को सुनाया तो उनके होश उड़ गये। लेकिन उन्होंने अपने को संभालने का प्रयास किया। मनीष के पिता और मां दोनों उच्च शिक्षित और सुलझे हुए इंसान हैं। उन्होंने अपने बच्चे को बहुत समझाया परंतु जब वह नहीं माना तो परमात्मा की मर्जी समझ कर समझौता कर लिया कि जैसी उसकी मर्ज़ी।
उसके माता-पिता ने कभी भी कोई सिकायत नहीं किया कि हमारा बच्चा नालायक हो गया। उसने हमारी नाक कटवा दी जैसे कि सामान्य व्यक्ति करता है।
उसके पिता से कोई पूछता तो वह कहते कि उसकी जिसमें खुशी हो वैसे ही करें। मेरी जितनी भी छमता थी उसको सुविधाएं उपलब्ध कराई। लेकिन किसी के कर्मों को हम कैसे बदल सकते हैं।
आज मनीष को भी अपने निर्णय से कोई सिकायत नहीं है। कृष्ण के रंग में वह अपने आप को रंग चुका है।
यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है। अपनी प्रतिक्रिया जरूर व्यक्त करें।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )