जिस दिन सात फेरे पड़ते हैं | Laghu Katha Saat Phere
“बहू, अब रख ले अपने पास यह सभी चाभियां।” कमला ने अपनी बहू सरस्वती से कहा।
“मांँ, यह आप क्या कह रही हैं?” सरस्वती ने अपनी आँखों में आँसू भरे हुए स्वर में कहा। और सोचने लगी आज क्या हो गया है माँ को जो मुझे घर की चाभियांँ देने लगी। मैंने तो कभी कुछ कहा नहीं।
“ज्यादा सोचो मत बहू, यह दायित्व का हस्तांतरण है, और इससे मुझे खुशी होगी कि तुम अपनी जिम्मेदारी समझ गई।” कमला ने प्यार भरे शब्दों में सरस्वती से कहा।
“जब घर में चूल्हा जलता है मांँ, आपके आदेश से तो मुझे खुशी होगी है। यह खुशी हमें किससे मिलेगी, माँ।”
“जिस दिन सात फेरे पड़ते हैं उसी दिन यह दायित्व बहू को मिल जाता है। आदेश आदेश नहीं रह जाता है।
इस बात को यदि कोई सास नहीं समझती है तो उसकी भूल है।चल सब्जी काटने में मैं तुम्हें साथ दूंगी।” घर के फर्श पर खुशी पसर गई।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड