पेपर आउट

पेपर आउट

सुबह के समय टहलते हुए एक दिन सोहन अपने मित्र मोहन से टकरा गया। सोहन ने मोहन से उसकी पारिवारिक कुशलक्षेम पता करने के बाद पूछा-

“मोहन भाई, आपके बेटे कृष्णा का नीट एग्जाम का रिजल्ट का क्या हुआ? उसका तो नंबर आ गया होगा?”

“क्या कहूँ, भाई? उसकी तो किस्मत ही खराब है।”

“क्यों? क्या हुआ? एग्जाम तो उसका अच्छा ही गया था। एग्जाम के बाद मेरी कृष्णा से इस बारे में बात भी हुई थी। आपके बच्चे ने तो जी तोड़ मेहनत की थी। दिन-रात एक कर दिए थे। वो ऐसे कैसे रह गया? एग्जाम में उसके कितने नंबर आए?” हैरानी से सोहन ने पूछा।

“भैया नंबर तो उसके अच्छे आए लेकिन उसको सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल पाएगा। गरीब इंसान के लिए अपने बच्चों को डॉक्टर बनते देखने का एकमात्र सपना उसका सरकारी कॉलेज में चयन होना है। पिछले साल तक नीट एग्जाम में आरक्षित वर्ग में 600 नंबर तक लाने वाले बच्चों को सरकारी कॉलेज में प्रवेश आसानी से मिल जाता था। लेकिन इस बार मेरे बेटे कृष्णा के 660 नंबर आने के बाद भी उसको सरकारी मेडिकल कॉलेज (एम्स) मिलने की कोई उम्मीद नहीं है।”

“660 नम्बर। नीट का पेपर कितने नंबर का होता है?” सोहन ने सवाल पूछा।

“पेपर 720 नंबर का होता है भैया।” मोहन ने बताया।

“720 में से 660 नंबर यह तो काफी अच्छा स्कोर है। बच्चे के 91% से ज्यादा मार्क्स आए हैं। उसका सलेक्शन तो हो जाना चाहिए। अच्छा एक बात बताओ- नीट की कट ऑफ कहाँ तक गई है? सरकारी सीटें कितनी है? मुझे नीट परीक्षा और एम्स के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है भैया।” सोहन ने कहा।

“NEET(नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) परीक्षा में छात्रों की रैंक के आधार पर एमबीबीएस, बीडीएस, आयुष, बीवीएससी और एएच, बीएससी नर्सिंग पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया जाता है।

देश के 20 एम्स संस्थानों में कुल मिलाकर कुल 2044 एमबीबीएस सीटें हैं। दिल्ली का एम्स देश की टॉप मेडिकल संस्थानों की लिस्ट में पहले नंबर पर आता है। भारत में एम्स की औसत फीस पूरी अवधि के लिए 5000 – 22,300 रुपये है। दिल्ली एम्स में MBBS की 132 सीटें हैं।

इसमें सभी वर्गों के लिए सीटें बांटी गई हैं। बस यह समझ लो भाई कि एग्जाम में 67 बच्चों ने पूरे में से पूरे नंबर प्राप्त किये हैं। मतलब 720 में से 720, 100% नंबर प्राप्त किए हैं। दिल्ली एम्स में हर कोई प्रवेश लेना चाहता है। उसमें प्रवेश को लेकर मारामारी रहती है। एक तरह से देखा जाए तो 100% नंबर पाने वाले 67 बच्चे मतलब आधे से ज्यादा सीटें तो 100% मार्क्स प्राप्त करने वालो बच्चों के खाते में चली जायेंगी।

इसके बाद 96% से 99% मार्क्स पाने वाले बच्चों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। भाई, इस बार बहुत बड़ी गड़बड़ हुई है, पेपर आउट कराए गए हैं। लाखों रुपए में पेपर बेचे गए हैं। क्या ऐसा संभव है कि 67 बच्चे 100% मार्क्स लेकर आएं और उनकी गलती की गुंजाइश शून्य हो? यह असंभव सा काम इस साल हुआ है।

मैं अपने बेटे की तरफ से बड़ा परेशान हूँ। वह टूट गया है। अपने कमरे में बंद रहता है। बात नहीं करता। मैंने उसको समझाया कि नम्बर नहीं आया तो क्या हुआ? अगले साल आ जायेगा। कोई बात नहीं परेशान नहीं होते। लेकिन उसने कहा कि अगली बार भी अगर पेपर आउट हो गया तो क्या होगा? मुझे डर है कि कहीं वह डिप्रेशन में ना चला जाए।” मोहन ने चिंता व्यक्त की।

“क्या सच में एग्जाम पेपर आउट हुआ है? पेपर में खबर पढ़ी तो थी लेकिन सरकार ने इस पर संज्ञान क्यों न लिया, ये हैरानी की बात है। ये हो सकता है कि पेपर ज्यादा सरल आ गया हो इसलिए मेरिट लिस्ट हाई गयी है।” सोहन बोला।

“नहीं ऐसा नहीं है। इस साल नीट परीक्षा शुरू से ही विवादों में रही। रविवार, 5 मई यानी जिस दिन नीट यूजी का आयोजन किया गया था, उस दिन कई परीक्षा केंद्रों पर छात्रों को देर से क्यूश्चन पेपर बांटे गए। छात्रों का समय बिना किसी कारण बर्बाद किया गया, जिसकी वजह से छात्र अपना पूरा पेपर नहीं दे सकें।

वहीं नीट पेपर लीक की खबरें भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी, लेकिन एनटीए ने इन खबरों को अफवाह बताया। अब जब नीट यूजी में एक साथ 67 बच्चों को 720 में 720 यानी 99.9971285 पर्सेंट मिले हैं तो लोगों को आश्चर्य हुआ है कि ऐसा कैसे हो सकता है।

वहीं एनटीए द्वारा दिए गए ग्रेस मार्क्स के कारण छात्रों को 718, 719 अंक मिले हैं जो नीट की मार्किंग स्कीम से असंभव जान पड़ता है। नीट यूजी परीक्षा कुल 720 अंकों की होती है, ऐसे में जिन बच्चों को 720 में 720 अंक मिले हैं, इसका मतलब है कि उन्होंने किसी प्रश्न का गलत जवाब नहीं दिया है।

वहीं छात्र एक प्रश्न गलत जवाब देता है तो उसे 715 अंक और एक सवाल छोड़ता है तो उसे 716 अंक मिलने चाहिए। लेकिन एटीए ने छात्रों को 718 और 719 अंक दिए हैं। एनटीए ने बताया कि उसने उम्मीदवारों को उनकी उत्तर देने की क्षमता और खोए हुए समय के आधार पर मुआवजा के तौर पर ये अंक दिए हैं, जो कहीं से भी तार्किंक नहीं है।” मोहन ने विस्तार से सोहन को पूरी बात समझाई।

“अगर ऐसा है तो सरकार को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए। अगर पेपर आउट हुआ है तो पुनः पेपर करवाना चाहिए। होनहार, प्रतिभाशाली गरीब छात्रों के लिए यह परीक्षा बहुत महत्वपूर्ण होती है। अगर इस तरह पेपर आउट होते रहे तो ऐसे बच्चों के सामने बड़ी दिक्कत हो जाएगी।

उनका डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह जाएगा। गरीब अपना पेट काटकर अपने बच्चों को पढ़ाता है। उसकी सारी उम्मीदें अपने बच्चों से ही होती है। ऐसे में बच्चों के अवसाद में जाकर सुसाइड करने की संभावना भी बढ़ जाती है। अमीर लोग तो अपने बच्चों को लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करवा कर भी आराम से डॉक्टर बनवा सकते हैं, उनके पास तो किसी चीज की भी कमी नहीं है, लेकिन गरीब इंसान क्या करें?

ऐसे लोगों को भी शर्म आनी चाहिए जो चंद पैसों के लिए पेपर आउट करवा कर… पात्र बच्चों का हक मार रहे हैं। यह निंदनीय है, अक्षम्य अपराध है। इस पर रोक लगनी चाहिए। जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए और पेपर पुनः करवाना चाहिए।”

“भाई पेपर दुबारा नहीं होगा। सरकार भी मानने को तैयार नहीं है कि पेपर आउट हुआ है या कोई घोटाला हुआ है। अब तो बच्चों को कॉलेज तक अलॉट होने वाले हैं। अब कुछ नहीं हो सकता। अब तो कृष्णा के पास अगले साल नीट परीक्षा में बैठने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। शायद तभी कुछ हो सके।”

“बिल्कुल, अब बस यही एक चारा है। मैं शाम को आता हूँ और कृष्णा से इस बारे में बात करता हूँ। उसका मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहना बेहद जरूरी है। आप भी बच्चें से प्यार से पेश आना। उसको इस समय इसकी बहुत जरूरत है। चलो, मिलता हूँ शाम को। इसी बहाने साथ में एक एक कप चाय भी हो जायेगी।” सोहन बोला।

“ठीक है भैया। मैं इंतज़ार करूँगा।” मोहन बोला। इसके बाद विदा लेकर सोहन और मोहन अपने-अपने रास्ते निकल गए।

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा

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