बंटवारा | Batwara
( स्वातंत्रता दिवस विशेष )
लगभग 100 वर्ष पूर्व की बात है भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश तीन भाई थे। वे सभी बड़े प्रेम से रहा करते थे। आपस में कोई मनमुटाव होता तो आपसी बातचीत से सुलझा लेते थे। यह प्रेम कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को देखीं नहीं जा रही थी। तीनों शरीर से भले अलग थे लेकिन आत्मा से एक थे।
अंग्रेज नामक दुष्ट प्रकृति के व्यक्ति को लगा कि इनमें बिना आपस में फूट डालें मेरा उल्लू सीधा नहीं हो सकता। फिर उसने फूट डालना शुरू कर दिया।
उसने पाकिस्तान से कहा कि “देखो सारा संघर्ष तुम करते हो सारी मलाई तो भारत खा जाएगा आखिर तुम्हारे हिस्से क्या बचेगा। क्यों ना तुम भारत से अलग हो जाते।”
पाकिस्तान ने कहा, देखो भारत हमारा भाई है। कुछ भी हो लेकिन हम उससे कैसे अलग हो सकते हैं। आइंदा से हमारे भाइयों के बीच फूट डालने की कोशिश मत करना।”
अंग्रेज बड़ा कुटिल बुद्धि का था। उसने संकल्प ले लिया था कि इनको लड़ा कर हम अपनी राज्य सत्ता कायम रखेंगे। उसने फिर बांग्लादेश के मन में भाइयों के बीच जहर भरने का प्रयास किया।
अंग्रेजों ने कहा , “देखो तुम और पाकिस्तान एक में रह जाओ तुम्हारे विचार पाकिस्तान से मिलते हैं। यदि तुम अलग नहीं हुए तो भारत तुम्हारा हिस्सा कभी नहीं देगा।”
पाकिस्तान और बांग्लादेश को एक होने की बात कुछ कुछ समझ में आने लगी थी। अंग्रेजों अपनी कुटिल बुद्धि उनके मन में भरने में सफल हो गए। फिर बटवारा तीन हिस्सों में ना होकर दो में हुआ।”
कहां जाता है कि भाई जैसा हित्ती ना भाई जैसा दुश्मन ” भाइयों की दुश्मनी का सबसे बड़ा उदाहरण महाभारत का युद्ध हम लोगों ने देखा होगा। कहा जाता है कि इस युद्ध से पूरा राष्ट्र पुरुष विहीन हो गया था। गिने-चुने पुरुष बचे थे। विधवाओं के अंबार लग चुके थे। यह मंत्र भाइयों के आपसी रंजिश का नतीजा था।
पाकिस्तान तो अलग हो गया लेकिन वह अपने बड़े भाई भारत के साथ बहुत द्वेष रखता था। क्योंकि पहले उसकी भारत के सामने कुछ नहीं चलती थीं। जब उसे राज्य सत्ता मिली तो वह बहुत खूंखार हो गया। उसने फिर अपने राज्य में मारकाट लूटपाट हत्या बलात्कार करवाना शुरू कर दिया।
इसी बीच महात्मा गांधी नामक बिचौलिए का सहारा लेकर उसने भारत से 55 करोड़ रुपए और झटक लिए। सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे राजनेता समझाते रहे महात्मा गांधी को कि पाकिस्तान को ₹550000000 ना दिया जाए नहीं तो और मारकाट मचाएगा। लेकिन भारत गांधी का गुलाम हो चुका था।
भारत वही कर रहा था जैसा गांधी चाहता था। डॉ भीमराव अंबेडकर जैसे लोगों की इच्छा थी कि यदि भारत और पाकिस्तान में बंटवारा हो ही रहा है तो पूर्ण रूप से हो जाए। आगे का लफड़ा ही समाप्त हो जाए। लेकिन जवाहरलाल नेहरू जैसे चापलूस नेताओं की इससे अपनी राजनीति की रोटी कैसे चलतीं।
आखिर जो होना था वही हुआ। पाकिस्तान 55००० करोड़ रुपए पाकर और बावला हो गया। भारत को लगा कि गांधी के चक्कर में मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी।। ऐसी स्थिति में सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे राष्ट्रवादी साथियों ने भारत का पूर्ण सहयोग किया। क्योंकि भारत के पाकिस्तान के बंटवारे के साथ ही अन्य कई राज्यों अलग होना चाहते थे।
पाकिस्तान और बांग्लादेश भले एक साथ रहने के लिए राजी हो गए थे लेकिन उनमें भी आपस में नहीं पटती थी। अंततः दोनों में भी आपस में ही लड़ाई झगड़े होते रहते थे और 1971 में दोनों में पुनः बटवारा हो गया।
इसलिए हमें चाहिए कि घर हो, परिवार हो या राष्ट्र भाइयों के बीच आपस के लफड़े स्वयं सुलझा लेना चाहिए कभी भी किसी बिचौलिए का सहारा ना लें। यदि अंग्रेज आपस में फूट डालने का प्रयास न करते तो भारत आज अखंड राष्ट्र होता। वहीं यदि सरदार वल्लभ भाई पटेल भीमराव अंबेडकर जैसे राष्ट्रवादी नेताओं की बात भारत मान लेता तो वर्तमान समय में पुनः हिंदू मुस्लिम की समस्या जड़ से खत्म हो जाती ।
लेकिन गांधी ने नेहरू की कुटिल बुद्धि के आगे ऐसा ना होने दिया। वर्तमान समय में भी सांप्रदायिक ताकतों ने अपना वर्चस्व बढ़ा रही हैं। सरकार भी सांप्रदायिकता को बढ़ावा दे रही है। जनता को चाहिए कि नेताओं के बहकावे में ना आए। नेट तो अपनी कुर्सी के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकता है।
जैसे के नेहरू और जिन्ना ने अपने कुर्सी के लिए करोड़ों का कत्लेआम होना स्वीकार कर लिया था। जनता को चाहिए की वह करें जिससे राष्ट्र में अमन और शांति हो। दो भाई अपने जीवन में तब तक बंटवारे की बात नहीं सोचते जब तक की कोई उनके मन में बंटवारे का जहर ना घोल दे। हिंदू मुस्लिम दो भाइयों की भांति हैं।
लेकिन वर्तमान समय में दोनों के धार्मिक नेता एक दूसरे के प्रति जहर उगल रहे हैं। हिंदुओं को यह बताया जा रहा है कि मुसलमान तुम्हारे दुश्मन है । वही मुसलमानों को बताया जा रहा है कि हिंदू तुम्हारे दुश्मन है। जिसके कारण यह लकीर फिर बढने लगी हैं।
स्वतंत्रता के पूर्व जब तक अंग्रेजों ने मुसलमानों के मन में जहर घोल कर मुस्लिम लीग की स्थापना नहीं करवा दी कोई भी मुस्लिम अलग राष्ट्र की बात नहीं करता था। जैसे ही यह जहर उनके मन में घुल गया वे द्वि राष्ट्र की बात करने लगे। ऐसी स्थित में भी सूझ बूझ से काम लिया जाता तो राष्ट्र के टुकड़े न होने पाते।
वर्तमान समय में भी राष्ट्र ऐसी ही स्थिति में पहुंच चुका है। ऐसे में राजनेताओं को आपसी रंजिश को छोड़कर राष्ट्र को सर्वोपरि रखने की आवश्यकता है। जिन मुसलमान को लगता था कि अलग राष्ट्र बनाने से वे ज्यादा सुखी रहेंगे उन्हें पाकिस्तान अफगानिस्तान बांग्लादेश के हालातो से सीख लेनी चाहिए। आज भी यहां के मुसलमान जो वहां बसे हैं वह दम दर्जे के माने जाते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार के सुविधा नहीं दी जाती।
इसलिए हम सब का कर्तव्य है कि हम भारत को पुनः अखंड राष्ट्र बनाने का प्रयास करें।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )