अफवा | Kavita Aphava
अफवा
( Aphava )
कभी तेरे लौट आने की खबर आई थी,
दिल ने उसे सच मानकर ख़ुशी मनाई थी।
पर हर बार वो एक अफवा ही निकली,
तेरी यादों से फिर दिल ने उम्मीद की लो जलाई थी।
इस अफवा में भी इक हसरत थी,
शायद कभी ये हकीकत में बदल जाए।
तेरी बातों का वो मीठा सा एहसास,
बस इसी उम्मीद से प्रेम अपने दिल को बहलाए।
अब ये दिल हर आहट पर चौंक जाता है,
शायद तू ही हो, सोचकर बहक जाता है।
पर वो अफवा ही थी, जो मस्तिष्क से खेली,
एक और रात की तन्हाई, जो दिल ने अकेले झेली।
आज डॉक्टर ने अजीब सी खुशी जताई थी,
तेरे लाए मीठे बेर देकर, तेरे आने की बात बताई थी।
इसी तरह तेरे लौटने की खबर आई थी,
दिल ने उसे सच मानकर ख़ुशी मनाई थी।
पर पता चला, वो बेर नहीं, वही कड़वी दवाई थी,
जो मेरे इस शरीर को ठीक करने के लिए मंगाई थी।
आज फिर से अफवा ने तेरे आने की झूठी उम्मीद दिलाई थी,
तेरी यादों से फिर दिल ने वही उम्मीद की लो जलाई थी।
कवि : प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
सुरत, गुजरात
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