इन लम्हों को मत जाने दो

( In lamhon ko mat jane do ​) 

नज़्म

 

जीतने की खुशी में किसी को बे-कफ़न मत करो,
क़त्ल का सामान इस तरह कभी जमा मत करो।
सदियों पुरानी है विश्व की सभ्यता और संस्कृति,
किसी साजिश के तहत इसे छिन्न-भिन्न मत करो।

साज मत बिगाड़ो तुम इस खूबसूरत सृष्टि का,
हो सके जश्न मनाओ,आग के हवाले मत करो।
इन लम्हों को मत जाने दो तू ख़ूनी संघर्षो में,
महफूज रखो हसीं जवाँ रात,महरूम मत करो।

दुनिया आखिर कब तक मातम,ये सोग मनाए,
इस तरह की कोई तुम वारदात मत करो।
लोग चैन की साँस लें अब अपने -अपने घरों में,
फिजाओं में न खिले दर्द का फूल,ऐसा मत करो।

किसी की छत पे रोज उतरे चाँद,तुझे क्या गिला,
हो किसी का ख्वाब टुकड़े -टुकड़े, ऐसा मत करो।
मासूम बच्चों का खिलौने न सनें बारूदी खूनों से,
लोरियाँ सुनाने के लिए न बचें माँयें,ऐसा मत करो।

चाँद -सितारे नहलाने के लिए खड़े हैं चाँदनी से,
पड़े उनके दिल पे छाला, ऐसा मत करो।
बचा लो तबाह होने से पहले जग की मुस्कान को,
उतार ले किसी के चेहरे से कोई नूर,ऐसा मत करो।

ये दरिया,ये समंदर कुदरत बनाई हमारे लिए ही,
लहरों को जंजीर से बाँधने निकले,ऐसा मत करो।
अंधेरों के सैलाब में मत डुबाओ इस कायनात को,
मिसाइलों की बदौलत सूरज चुराएँ, ऐसा मत करो।

वो दरीचे, वो कूचे, वो उसके बदन की खुशबू,
घुट-घुट के मरे न उसकी तलब,ऐसा मत करो।
कब तलक सोए उन राखों के ऊपर ये दुनिया,
हो रही उस तरह के धुएँ से घुटन,ऐसा मत करो।

न बिस्तर है, न नींद है और न ही बचा है ख्वाब,
उठने लगा अब मोहब्बत का साया,ऐसा मत करो।
कहाँ गुम हुई वो रंगीन शाम,मोहब्बत भरी गुफ़्तगू,
लोग जाम की जगह जहर पियें, ऐसा मत करो।

ताज-ओ-तख़्त सिर्फ मोती बिछाने के लिए है नहीं,
लोग दबें गम के बोझ तले, ऐसा मत करो।
माँगो दुआ खुदा से कि जहां में अम्न-शान्ति लौटे,
धरा कब्रिस्तान से सजे,तुम कभी ऐसा मत करो।

 

लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )

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