बिन्दु | Kavita bindu
बिन्दु
( Bindu )
ग्रह नक्षत्र योग कला विकला दिग्दिगन्त हैं।
बिन्दु मे विलीन होते आदि और अंत हैं।।
अण्डज पिण्डज स्वेदज उद्भिज्ज सृजाया है,
बिंदु में नित रमण करें ब्रह्म जीव माया है।
सकल महाद्वीप महासिंन्धु श्रृंग गर्त न्यारे,
अपरिमित निराकार चिन्मय स्वरूप प्यारे।।
त्रिगुणी प्रकृति ग्रीष्म शीत पावस बसंत हैं।।
बिन्दु में०।।
अक्षर वर्ण ह्रस्व दीर्घ व्यंजन निर्विशेष हैं,
भूत भविष्य वर्तमान बिन्दु के ही भेष हैं।
चेतन अचेतन में बिन्दु की ही सत्ता है,
स्वर्ग हो या अपवर्ग बिन्दु की महत्ता है।।
बिन्दु में ब्रह्माण्ड भुवन निहित अनन्त हैं।।
बिन्दु में०।
अनहद हद नाद प्रणव बिन्दु से निकलते हैं,
बिन्दु सिन्धु से बड़ा सब वेद शास्त्र कहते हैं।
एक अश्रुबिंदु ही महाप्रलय का जनक है,
हेमगर्भा सृष्टि का पालक संहारक सृजक है।।
बिन्दु परम सत्य रूप शेष मनगढ़न्त हैं।।
बिन्दु में०।
क्षेत्रफल न परिमाप व्यास परिधि आयतन,
सदा विलासमय रहे श्रमबिन्दु ही है श्रेष्ठ धन।
अशेष सूर्य दीप का प्रकाश स्रोत बिन्दु है,
ज्ञान सीप मोती यही, उज्ज्वल शरदेन्दु है।।
संन्यास गृहस्थ योगी यती त्रिया कंत हैं।।
बिन्दु ०।