
धरती माता
( Dharti mata )
मैं हूं धरती माँ सबकी माता,
सबके मुख पर एक ही गाथा।
खरीद लू इतनी सारी जमीन,
या फिर बेच दूं यें वाली ज़मीन।।
आज के इस आधुनिक युग में,
देखा-देखी की यें होड़ मची है।
उसके पास है मोबाइल व गाड़ी,
मैं क्यों न खरीदूं मोबाईल गाड़ी ।।
गहना बिके तो सारा बिक जाएं,
ज़मीन भी बिके तो बिक जाएं।
कर्ज़ा होना है तो वो भी हो जाएं,
पर मोबाइल गाडी़ और हो लाडी।।
कुछ भी बैचना आसान है जग में,
पर बसाना बहुत मुश्किल है जग में।
पैतृक ज़मीन तो रखो अपनें पास,
खरीदें नही तो अपनी तो रखें पास।।
खुशियाँ धन, रुपयों से नही आती,
यह परिस्थितियों पर निर्भर करती ।
कोई गुब्बारा खरीदकर कोई बेचकर,
कोई उन्हें देखकर ही ख़ुश होता है।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )
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