जीवन धारा | Kavita jeevan dhaara
जीवन धारा
( Jeevan dhaara )
हर्ष उमंग खुशियों की लहरें बहती जीवन धारा।
मेहनत लगन हौसला धरकर पाते तभी किनारा।
भावों की पावन गंगा है मोती लुटाते प्यार के।
पत्थर को भगवान मानते सुंदर वो संस्कार थे।
इक दूजे पे जान लुटाते सद्भावों की पावन धारा।
क्या जमाना था सुहाना बहती प्रेम की रसधारा।
पथिक पथिक हमसफर हो तय सारा सफर करते।
सुख दुख में बन सहारा दुख तकलीफें सारी हरते।
एकता की डोर घर में खुशहाली दौड़ी आती थी।
दुलार पा अनमोल प्यारा आंखें चमक जाती थी।
त्याग समर्पण सहयोग भरी भावना घट में होती।
सत्य सादगी साहस से बुलंदियां घर घर में होती।
शील संस्कार भरकर सम्मान बड़ों का होता था।
भाग्य के तारे चमकते आलस कही पे रोता था।
आस्था विश्वास दिलों में अनुराग उमड़ता सारा।
जीवन में आनंद बरसता लहराती जीवनधारा।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )