रात मेरी सियाह होती है

( Raat meri siyah hoti hai ) 

 

जब इधर वो निग़ाह होती है
प्यार की उसके चाह होती है

दी सनम ने नहीं यहाँ दस्तक
रात मेरी सियाह होती है

प्यार की इम्तिहां हुई इतनी
हर घड़ी उसकी राह होती है

एक भी फोन वो नहीं करता
रोज़ जिसकी परवाह होती है

कौन दें दाद शेर पे सच्ची
झूठ बस वाह वाह होती है

कुछ बुरा दुश्मन कर नहीं सकता
जब ख़ुदा की पनाह होती है

याद ने इस क़दर सताया दिल
रोज़ गीली निग़ाह होती है

जुल्म अब इस क़दर बढ़ा आज़म
हर तरफ़ रोज़ आह होती है

 

शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )

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