कविता में डूबा रहता हूं | Kavita mein
कविता में डूबा रहता हूं
( Kavita mein dooba rahta hoon )
कविता में डूबा रहता हूं।
छंदों की भाषा कहता हूं।
भावों का सागर यूं उमड़े।
सरिता बनकर बहता हूं।
नव सृजन स्वप्न बुनता हूं
शब्दों के मोती चुनता हूं।
मनमंदिर में दीप जलता।
वीणा की झंकार सुनता हूं।
सौम्य शब्द सुधारस घोले।
मुखर वाणी अधर खोले।
दिल तक दस्तक दे कविता।
रस बरसता यूं हौले हौले।
कंठो से वाणी जब आई।
चेहरों पर मुस्कानें छाई।
सभा सारी हर्षित हो गई।
साधक कृपा शारदे पाई।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )