उठी कलम
( Uthi Kalam )
उठी कलम चली लेखनी कविता का स्वरूप हुआ।
शब्द सुसज्जित सौम्य से काव्य सृजन अनूप हुआ।
टांग खींचने वाले रह गए सड़कों और चौराहों तक।
मन का पंछी भरे उड़ानें नीले अंबर आसमानों तक।
छंद गीत गजलों को जाना कलमकारों से मेल हुआ।
एक अकेला चला निरंतर अब जाकर पूरी रेल हुआ।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण देश विदेश सारे जहां में।
कविता ने लहराया परचम काव्य की हर विधा में।
हौसलों से बढ़ता रहा होकर मैं मनमौजी मतवाला।
कलमकार वाणी साधक सीखा सदा ही मुस्काना।
मन वचन कर्म श्रद्धा से शारदे शब्द पुष्प समर्पित हो।
काव्य सृजन मां चरणों में तेरे नित्य निरंतर अर्पित हो।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )