ख़बर रखता है
ख़बर रखता है
ज़ख़्म देकर भी वो पल-पल की ख़बर रखता है
नब्ज़ कब बन्द हो इस पर भी नज़र रखता है
उसकी उल्फ़त पे यक़ीं कैसे भला मैं कर लूँ
हैसियत पर जो मेरी आँख ज़बर रखता है
जाने कितने ही किराये के मकानों में रहे
अपना घर ही मेरा ख़ुश जान जिगर रखता है
जब अचानक से कभी छाँव अगर मुँह मोड़े
तब ये दिल धूप में चलने का हुनर रखता है
मेरी तक़दीर का मालिक भी ख़फ़ा है ‘मिथिला’
मेरे क़दमों में नया रोज़ सफ़र रखता है
डॉ.मिथिलेश राकेश ‘मिथिला’ बरेलवी
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