ख़्वाब में तुम
( Khwab mein Tum )
मेरे ख़्वाब में तुम आए थे या फ़क़त वहम था,
तुम ही तुम दिख रहे थे ऐसा खोया ज़हन था,
तुम्हारी कुर्बत का एहसास…कभी जाता नहीं,
आँखें खुली तो दिल तन्हाईं से गया सहम था,
ख़्वाब ही बेहतर लगते हैं मुझको हक़ीक़त से,
ख़्वाब में सुकून था हक़ीक़त ज़ख़्म ज़ख़्म था,
ज़ख़्मों का मरहम वही था जिसने ज़ख़्म दिए,
वो मेरा हमदम मेरा महबूब ही बड़ा बेरहम था,
वो अपने सारे हथियार आज़माता रहा मुझपर,
मैं लफ़्ज़ों का सौदागर मेरे पास सिर्फ़ क़लम था!
आश हम्द
( पटना )