क्या रावण मर गया है ?
आज दोपहर उस वक्त मुझे प्रभु राम मिले जब मैं नींद में था। कहीं जा रहे थे वह, जल्दी में थे। मैंने उन्हें देखा और पुकारा। वह रुके। मैंने उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने जल्दबाजी में अपना दायाँ हाथ मेरे सर पर रखकर आशीर्वाद दिया।
मैंने कहा प्रभु इतनी जल्दी में ? उन्होंने कहा हां कहा और चुप हो गए। मैंने कहा प्रभु चिंतित दिखाई दे रहे हो? उन्होंने कुछ कहा नही बस अपलक मुझे देखते रहे मानो तय कर रहे हों कि मुझसे कहें या नही।
कुछ क्षणों के मौन के बाद वह बोले मैं ये पृथ्वी छोड़कर जा रहा हूँ, अब यहां रहने को जी नही चाहता।मैंने कहा प्रभु!! हम इंसानों से कोई भूल हो गयी क्या!!
मानव जाति तो आप ही से है यदि आप ही यहां से चले गए तो हमारा क्या होगा!! इसी पवित्र भारत भूमि पर तो आपने जन्म लिया था, अपनी जन्मभूमि को आप क्यों छोड़कर जा रहे हैं??
क्षुब्ध मन से प्रभु श्री राम ने कहा, “मैं ये पृथ्वी छोड़ने को मजबूर हूँ। आज हर ओर रावण बढ़ चुके हैं। हर देश,हर राज्य और गली-मोहल्ले भिन्न भिन्न प्रकार के रावणों से भर गए हैं। ऐसी जगह अब रहने को जी नही चाहता।”
मैंने कहा प्रभु आपने मेरे मन की बात कह दी मैं भी यही सोच रहा था। हम उसे हर वर्ष जलाते हैं तब भी वह न मालूम कहाँ से जिंदा होकर 3 साल की बच्ची को फुसलाकर ले जाता है और उससे दुराचार कर मार डालता है।
मैंने उन्हें याद दिलाते हुए कहा प्रभु आज विजयादशमी है कई हजार वर्ष पूर्व आज ही आपने लंकापति रावण को मारा था।
प्रभु श्री राम की आंखे डबडबा आईं।भरे गले से उन्होंने कहा , “इसी का अफसोस है, मैंने उस दिन रावण को मारा जरूर लेकिन पूरा नही मार सका।वह टुकड़ों में कहीं बच गया ।
मैंने हाथ जोड़ते हुए प्रभु से विनती की, “भगवन यदि इस मुश्किल वक्त में आप भी पृथ्वी छोड़कर चले गए तो यह मानव जाति आपस में लड़ मर कर समाप्त हो जाएगी और चहुँ ओर रावण ही रावण होंगे। प्रभु आप न जाइये बल्कि उपाय बताइये कि मानव जाति जगह जगह घूम रहे रावणों से कैसे निजात पाए”
प्रभु कुछ पल मौन रहे, “एक उपाय है” प्रभु ने कहा। मैंने उनकी ओर देखा प्रभु की आंखे एक मद्धम लौ में जलते दिए कि भांति प्रकाशमान थीं जिसकी रोशनी थोड़ी ही जगह सही लेकिन अंधकार को नष्ट कर रही थी।
“आप आज्ञा दो प्रभु !! मानव जाति यदि बचना चाहती है तो उसे इस पर अमल करना ही होगा”
“देखो ! राम अर्थात मैं सत्य, ईमानदारी और सत्कर्म के रूप में जबकि रावण अहंकार, पापकर्म और दुराचार के रूप में हर मनुष्य के भीतर ही हैं। यह मनुष्य के विवेक पर निर्भर है कि वह अपने भीतर किसे रखना चाहता है”
कुछ पलों बाद प्रभु श्री राम बोले , “लोगों ने मुझसे अपनी नजरें फेर लीं हैं और रावण के सम्मोहन में है जिससे हर ओर रावण ही रावण पैदा हो गए।
जब कोई मुझे अपने पास रखना ही नही चाहता तो मैं यहां रहकर क्या करूँ!इसी वजह से मैं पृथ्वी छोड़कर जा रहा हूँ।
मैंने श्री राम के पैर पकड़ उनसे विनती की, “प्रभु क्या एक भी इंसान यदि आपको अपने पास रखना चाहे क्या तब भी आप अपना निर्णय नही बदलोगे ??
प्रभु राम के चेहरे पर पहली बार मुस्कुराहट आयी, “नही,यदि एक भी व्यक्ति मुझे अपने पास रखना चाहता है तो मैं कहीं नही जाऊंगा, कहीं जा नही सकता।
मैं रुकूँगा तब मुझे रुकना ही पड़ेगा”। और एक बात,” कोई भी एक व्यक्ति यदि मुझको अर्थात राम को अपने भीतर रखने को राजी हो गया तो वह कई हजार रावणों पर भारी पड़ेगा। रावण तब भी कमजोर था अब भी है बस जरूरत राम को उसके सामने लाने की है। ”
“अच्छा अब मुझे जाना होगा, मैं पृथ्वी छोड़ कर नही जाऊंगा यहीं रहूंगा तुम्हारे आसपास। जिस पल तुम मुझे बुलाओगे, मुझे अपने पास पाओगे.”
मैंने श्री राम भगवान को प्रणाम किया। कुछ पलों बाद वह अंतर्ध्यान हो गए।
#विशेष – यहां रावण को मैंने बुराइयों का प्रतीक माना है, हालांकि रावण में भी थोड़े बहुत “राम” थे।