lakshman murcha shakti baan

लक्ष्मण मूर्छा शक्ति बाण | lakshman murcha shakti baan

लक्ष्मण मूर्छा शक्ति बाण

( lakshman murcha shakti baan )

आलेख

 

रावण का पुत्र मेघनाथ जिसमें इन्द्र तक को जीत लिया था। वह इंद्रजीत कहलाता था। उसकी पत्नी सुलोचना एक पतिव्रता नारी थी। सतीत्व के बल के कारण उसने तपस्या करके अनेक अमोध शक्तियां प्राप्त कर ली थी।

रामादल में मेघनाथ युद्ध करने आया तो उसने सारे कटक में त्राहिमाम त्राहिमाम मचा दिया। राम लक्ष्मण को उसने नागपाश में बांध दिया था‌ हनुमान जी नारद जी के परामर्श पर गरुड़ जी को संग लेकर आए। गरुड़ जी ने नागपाश को काटा।

मेघनाथ पुनः रणभूमि में गर्जना करता हुआ आया। लक्ष्मण जी ने मेघनाथ की ललकार सुन श्री रामचंद्र जी से आज्ञा लेकर युद्ध करने चले। इंद्रजीत एक मायावी राक्षस था। वह आकाश में कभी दिखाई देता कभी गायब हो जाता। उसकी बाणों की वर्षा से लक्ष्मण जी व्याकुल हो गए।

श्री राम जी से लक्ष्मण जी ने ब्रह्मास्त्र चलाने की आज्ञा मांगी। प्रभु श्रीराम ने कहा जो शत्रु हमें प्रत्यक्ष दिखाई नहीं दे रहा हो उस पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग अनुचित है। मेघनाथ लक्ष्मण जी को हरा नहीं पाया तो फिर उसने शक्ति बाण का प्रयोग किया।
वो बोला
यह शक्ति बाण है ब्रह्मा की जो ब्रह्मलोक से आई थी
जिस समय इंद्र को जीता था उस समय हाथ में आई थी।

लक्ष्मण जी ने ब्रह्म शक्ति का सम्मान करते हुए नतमस्तक हो गए और शक्ति बाण लगते ही मूर्छित होकर धरा पर गिर पड़े। लक्ष्मण जी के मूर्छित होते हुए तुरंत हनुमान जी लक्ष्मण जी को गोद में उठाकर भगवान श्री राम के पास लेकर गए।

लक्ष्मण जी को मूर्छित देख भगवान श्री राम विलाप करने लगे कि मैं अयोध्या जाकर क्या जवाब दूंगा। माताओं को क्या जवाब दूंगा कि मैं लक्ष्मण को साथ लेकर गया था और आज उसकी यह दशा मेरे कारण हो रही है।
विभीषण जी के परामर्श पर हनुमान जी लंका से सुषेण वैद्य को उठाकर लाए। सुषेण वैद्य ने लक्ष्मण जी को देखकर बताया कि द्रोणागिरी पर्वत पर संजीवनी बूटी है जिसे सूर्योदय से पूर्व ले आए तो लक्ष्मण जी के प्राण बचाए जा सकते हैं।

पवन तनय पवन वेग से आकाश में उड़ते हुए द्रोणागिरी पर्वत की ओर चले। रास्ते में कालनेमि राक्षस ने हनुमान जी को मायाजाल में फंसाना चाहा लेकिन वह विफल रहा। हनुमान जी संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाए अतः महाबली हनुमान समूचे द्रोणागिरी पर्वत को ही उठा लाए ।

वे वापस आसमान के मार्ग से आ रहे थे तो भरत जी ने सोचा कि कोई दैत्य आकाश मार्ग से जा रहा है। उनको बाण छोड़ा जो हनुमानजी के घुटनों पर लगा।

भरत जी को आश्वस्त कर अनुमान जी संजीवनी ले जाकर लक्ष्मण जी के प्राणों को बचा लिया। लक्ष्मण जी ने श्रीरामजी से आज्ञा लेकर मेघनाथ से दुबारा युद्ध कर उसे यमलोक पहुंचा दिया।

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रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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