महेन्द्र सिंह प्रखर की ग़ज़लें

महेन्द्र सिंह प्रखर के दोहे | Mahendra Singh Prakhar ke Dohe

महेन्द्र सिंह प्रखर के दोहे

( 39 )

पीर छुपाकर जो हँसें , दें जीवन को दान ।
औरत ही क्यूँ मान तू , आदि शक्ति भी जान ।।

प्रीत जताती हूँ सखी , करती हूँ मनुहार ।
गात सजानें को नहीं , करती हूँ शृंगार ।।

आँसू ही हथियार है , कहते क्यों हो आज ।
हल्की सी मुस्कान पर , लुटे राज अरु काज ।।

व्यर्थ परीक्षा ले रहे , तुम औरत की आज ।
सुनों तुम्हारे ही लिए , बैठी छोड़ समाज ।।

खिला दिया किसने तुम्हें , आखिर आज धतूर ।
हल्की सी मुस्कान पर , व्याकुल अरु मजबूर ।।

जीवन में नर ही नहीं , करता है संग्राम ।
नील गगन में उड़ रही , हाथ तिरंगा थाम ।।

अबला कह जिसका कभी , करते थे अपमान ।
उसी शक्ति को पूजता , आज यहाँ इंसान ।।

मन की मन से बात कर , मन समझेगा खूब ।
औरों की मत बात सुन , मन जायेगा ऊब ।।

मन की सुनकर आजतक , किए बहुत शुभ काम ।
फिर कहता मन आज है , चलो शरण प्रभु राम ।।

रखे शरण प्रभु राम जी , मन की आज पुकार ।
मन की महिमा राम की , देंगें भव से तार ।।

मन को कुंठित मत कहो , यह है एक विचार ।
मन ही तुमको एक दिन , ले जाये भव पार ।।

मन मैला जिनका रहा, उनके नेक विचार ।
नेकी करके आज हम , बैठे हैं मझधार ।।

प्रेम समझ पाया नहीं , कहता है दिलदार ।
जीवन बाजी हार के , बैठा मैं मझधार ।।

बन मरहम जो भी मिले , दिए नई वो पीर ।
सिसक-सिसक कर कह रही , अब आँखो की नीर ।।

दिखती हो गुडिया हमें , पर होती हो दूर ।
छूना चाहूँ मैं तुझे , पर होता मजबूर ।।

मोर पंख ले हाथ में , देखे चारो ओर ।
मैं प्यासा पनघट तकूँ , मीत बना है चोर ।।

देख सुदामा की दशा , नगर लोग बेहाल ।
झर-झर झरते नीर से , पग धुलते गोपाल ।।

देख सुदामा यह भवन , हुए बहुत भयभीत ।
कैसे पहरेदार से , कहूँ कृष्ण हैं मीत ।।

करते बातें लोग है , आज सुदामा देख ।
आये दर पे श्याम के , बदलेंगे वो रेख ।।

शयन कक्ष बैठा दिया, मित्र सुदामा देख ।
नयन नयन पढ़ने लगे , देखो विधि की रेख ।।

ये जो तेरी आँख में , भर आया है नीर ।
बिन इसके संसार में , खूब उठेगी पीर ।।

संकट ये गंभीर है , मानो मेरी बात ।
बूँद-बूँद से भर घड़ा , आयी है बरसात ।।

रोते फिरते आज जो, नही पास व्यापार ।
बैठे-बैठै लोग वह , वृक्ष करें तैयार ।।

काम बड़ा छोटा नहीं , करो समय से काम ।
याद रखें ये आप भी , साथ रहें श्री राम ।।

अधिक हुआ विज्ञान अब , आगे दिखे विनाश ।
सोच-सोच मानव सभी , होने लगे निराश ।।

उठे भोर में आप जो , करें बाग की सैर ।
स्वच्छ वायु तन को मिलें रहे रोग से बैर ।।

करते करते योग सब , कर बैठे ब्यापार ।
असली मतलब योग का , भूल गया संसार ।।

नदी ताल पोखर दिखे , बने नहीं नादान ।
हाथ पैर फिर मारिए , है यही योग स्नान ।।

योग अगर आये नहीं , खेले बचपन खेल ।
वही योग सबसे बड़ा , करे युवा को फेल ।।

गली-गली चर्चा यही , करे योग हर रोज ।
स्वस्थ रहे जीवन सदा , आभा पे हो ओज ।।

प्रात समय ही योग का , देखो रहे सुयोग ।
योगी धरते ध्यान को , सैनिक करते योग ।।

बचपन के वह खेल ही , बन जाते थे योग ।
गाँव-गाँव घर घर हुए , कबड्डी के प्रयोग ।।

तेरी मेरी प्रीत का, लेती पवन सुगंध ।
कहती राधे श्याम सा, दोनों का सबंध ।।

तेरी मेरी प्रीत का, कौन करेगा मोल ।
जिनके मुख निकले नही, मीठे प्यारे बोल ।।

तेरी मेरी प्रीत का, साक्षी है भगवान ।
माँगूं आज प्रमाण क्या, यह उनका वरदान ।।

( 38 )

राम-कृष्ण हनुमान में , जो करते हैं भेद ।
उनके आगे व्यर्थ है, रामायण औ वेद ।।

जिसने खुद को कृष्ण कह , चली कृष्ण सी चाल ।
उस पौंड्रक का जानते, अंत हुआ जो हाल ।।

जिसकी जैसी सोच है, वैसे दिखे विचार ।
व्यर्थ करे अब आप हम, उनमें आज सुधार ।।

वट पूजन में कर रहीं , मंत्रो का गुणगान ।
सदा सुहागन मैं रहूँ , माँगू मैं वरदान ।।

मृत्यु निकट आ ही गई , होते क्यों भयभीत ।
साथी कोई भी नही , बने वहाँ मनमीत ।।

सूर्यदेव के ताप से , काँप रहे हो आज ।
भाग रहे शीतल जगह , छोड़ आज सब काज ।।

वादा करते आपसे , अभी न छोड़ूँ हाथ ।
जीवन भर बस प्यार से , रखना हमको साथ ।।

जीवन साथी संग में , उठा रहे आनंद ।
दुआ यही करता प्रखर , कभी न हो ये मंद ।।

वर्षगाँठ शुभकामना , करें आप स्वीकार ।
जीवन भर मिलता रहे , साथी से यूँ प्यार ।।

आगे जीवन में यही , करे खड़ी दीवार ।
बात-बात पर तुम कहीं , अगर करो तकरार ।।

जी भर कर अब देख लो , शीतल निर्मल नीर ।
आने वाली पीढ़ियां , झेलेंगी यह पीर ।।

प्रहरी बनकर हैं खड़े , देखो बीर जवान ।
दुश्मन भी भय में रहे , ऐसे इनकी शान ।।

भारत माँ की आन पर , हो जाते बलिदान ।
सीमाओं पर है खड़े , ऐसे बीर जवान ।।

मातृभूमि को छू सके , रहते इनके कौन ।
बाजू धड से हो अलग , देख रहे सब मौन ।।

सकल जगत में नाम है , खाकी है पहचान ।
है भारत का बीर पुत्र , ये ध्वज इसकी शान ।।

सीमाओं पर है खडे , लिए हाथ में भाल ।
पल मे दुश्मन चित करे , ये भारत के लाल ।।

मातृ शक्ति ने भी किया , खाकी का सम्मान ।
बन के प्रहरी आ गई , सीमा हिंदुस्तान ।।

संकट मोचन नाम है, महावीर हनुमान ।
करते रहते नित्य जो, राम-सिया का ध्यान ।।

करना अपनी भूल का, जब हो पश्चाताप ।
महाबली के नाम का , कर लीजै फिर जाप ।।

जीवन मंगल मय रहें , करो ध्यान श्री राम ।
कहे बीर हनुमान जी, सुखद मिले परिणाम ।।

आओ मिलकर सब करें, रघुवर का गुणगान ।
सुना उन्हीं की प्रीति से, पास रहे हनुमान ।।

मातु सिया वरदान से, अजर अमर हनुमान ।
उनके जैसा हैं नहीं, कहीं और बलवान ।।

क्या माँगूं मैं आज सुन , जाकर उनके द्वार ।
बिन माँगें जब दे रहे , बाला जी सरकार ।।

बाला जी करते रहें, सब पर यह उपकार ।
आकर उनके धाम पर, सुखी हुआ परिवार ।।

बाला जी की हो कृपा, रहे दूर अवरोध ।
अज्ञानी को ज्ञान का , तब हो जाता बोध ।।

( 37 )

पाते अधिकारी सभी , जग में हैं सम्मान ।
निर्धन निर्गुण भी सुनो , होते हैं इंसान ।।

भूखे रहते प्यार के , निर्गुण सब इंसान ।
थोडी खुशियां दो उसे , करते सदा बखान ।।

तपती धरती दे रही , और अधिक ही पीर ।
मानव इस पल भी नहीं , होता दिखे अधीर ।।

सुख वैभव को त्याग कर, बन जाऊँ हरि दास ।
तो पाऊँ रघुनाथ को , मैं भी अपने पास ।।

स्वप्न हुए साकार थे , सुख वैभव को त्याग ।
कर ले इनका मान तू, लगा न इनमें आग ।।

भाषण सुन-सुन के सभी, घूम रहे हैं गोल ।
बिना सिर और पाँव के , नेताओं के बोल ।।

सत्ता में रहकर बहुत, किया गोल मटोल ।
आया चौकीदार है , अब खोलेगा पोल ।।

नीति नियम से जो चले , पाता है वह कष्ट ।
यही जगत में सत्य है, पाता है सुख भ्रष्ट ।।

भेद खोलिए गा नही, ये है प्रकृति विधान ।
समय स्वयं देगा पता, कौन यहां बलवान ।।

लोभ मोह मन में भरा , काम न आये राम ।
काम चलाना हैं यहाँ , तो दीजै कुछ दाम ।।

कहता पापी पेट है, समझ न आये साम ।
भाषण से अब आपके , मिले नहीं आराम ।।

पापो से तुम चाहते, मिले नहीं अब दंड़ ।
भज ले प्यारे आप फिर, रामचरित के खंड़ ।।

हाल सभी का एक सा, गर्मी से बेहाल ।
सूर्य देव के ताप से , सूख गये हैं ताल ।।

सूख गये हैं कंठ यह , गर्मी से बेहाल ।
सूर्य देव का ताप ये , जन-जन का है काल ।।

अब श्रमिकों की बेबसी, नहीं समझते लोग ।
धन माया के लोभ में, खूब करे उपयोग ।।

नहीं समझते लोग ये, आज जनक की पीर ।
बेटी सबकी लाडली , गिरे नयन से नीर ।।

राजा दिखे फकीर सा, करके सुता विवाह ।
नहीं समझते लोग यह , इन्हें और की चाह ।।

नहीं समझते लोग यह, बात बड़ी गम्भीर ।
क्यों राजा की लाडली, गिरा रही है नीर ।।

बात कहीं गम्भीर है, प्रथा नहीं है रोग ।
फिर न सुनाई दे कहीं, नहीं समझते लोग ।।

( 36 )

हटा रहे पीछे कदम , देख आज संहार ।
मानव प्रेमी ही सुनों , बाँट रहें है प्यार ।।

माँ को मत पाये समझ, सुत हैं अब नादान ।
पूँजी जाती बेटियाँ , है ये प्रथा महान ।।

बहन बेटियाँ पूज्य है , समझ उसे मत धातु ।
सुन उसके हर रूप में , छुपी एक है मातु ।।

वह तन क्यूँ मैला करो , जो दे जीवन दान ।
मान उसे इंसान तू् , अपना अब भगवान ।।

जिस तन को मैला किया , बनकर तू इंसान ।
जन्म वही तुमको दिया , समझ तुम्हें संतान ।।

तन उसका मैला सही , मन उसका है पाक ।
जैसे वन में हो उगा , वृक्ष एक अब आक ।।

धड़कन दिल की भी कभी , सुन ले जो दिलदार ।
सच कहता हूँ आपसे , जाँ भी दूँ मैं वार ।।

पत्नी सुख पाते कहाँ , आज यहाँ पतिदेव ।
उनके तो दिल में सदा , रहे यार ही सेव ।।

निर्धन है जो आज पति , दिखते हैं असहाय ।
उनकी तो पत्नी कहे , दूर कहीं मर जाय ।।

पत्नी के ही प्रेम से , वंछित ये पति खास ।
धन माया जो संग में , रखे न अपने पास ।।

जिन पतियों के पास में , दौलत रहे अथाह ।
वे भी पत्नी पे नज़र , रखे मेरी सलाह ।।

पति पत्नी को आज तो , बंधन लगता जेल ।
ताक-झाँक में देख लो , रिश्ते उनके फेल ।।

पत्नी पावन थी कभी , अब तो है लाचार ।
सिर्फ निभाती आज है , डरकर ये संस्कार ।।

पति पत्नी का प्रेम भी , लगता है व्यापार ।
अब तो हों फरमाइशें , दिखता कहीं न प्यार ।।

प्रेमी जन जो भी यहाँ , फांसी खाते आज ।
और दिखावा वो करें , करते दिल पर राज ।।

जख्मी दिल लेकर किधर , जायेंगे हम लोग ।
एक उसी की याद का , बना हुआ है योग ।।

देखो कितना कम जिया , रही अधूरी प्यास ।
सोच सोच कर अब उसे , होता जिया उदास ।।

पढ़ा करो दुर्गा कवच , होती सदा सहाय ।
पाप हरे सबके वही , कष्ट सभी मिट जाय ।।

सुनों व्यथित मैं क्यों रहूँ , जब तुम मेरे संग ।
मेरे अधरों पर कली , देख सभी हैं दंग ।।

छोटा सा परिवार है , मातु पिता तुम साथ ।
और नहीं कुछ चाह है , रहें हाथ में हाथ ।।

( 35 )

माता की ममता सदा, रही जगत अनमोल ।
वस्तु न कोई इस धरा, जो ले इसको तोल ।।

व्यर्थ जगत के तीर्थ हैं, व्यर्थ जगत के धाम ।
चरण पिता के छोड़ मत, वही तुम्हारे राम ।।

न भाई विभीषण बुरा, करता रहा सचेत ।
रावण ही हठ में सदा, देखो रहा अचेत ।।

रुके नहीं सुन नैन में, आज अश्रु की धार ।
बहिन विदा करते गया, भाई का अधिकार ।।

पत्नी से लें मंत्रणा, करें तभी शुभ कार्य ।
कहते यही सुमंत सब, यही कहें सब आर्य ।।

समझ न पाये हम कभी, खोये थे जो चैन ।
अधर रहे असमर्थ तो, बोल रहे थे नैन ।।

अंतर्मन की पीर को, देख रहे थे नैन ।
कोई होता पास में, तो फिर करते बैन ।।

कैसा युद्ध विराम है, समझ न आये बात ।
भूल गये क्या आप सब, दुश्मन की वह घात ।।

कैसा युद्ध विराम है, क्या है मन में चाव ।
भरे नहीं हैं वो अभी, लगे हृदय पर घाव ।

शांति चाहिए थी तुम्हें , तो तुम करते बात ।
क्यों बेटो की लाश का, देते हो सौगात ।।

युद्ध रोक कर आपने, किया नही उपकार ।
वीरों के संघर्ष का , नेक दिया उपहार ।।

युद्ध नही उपचार था , मानव हित में देख ।
इससे इस संसार की , बदल रही थी रेख ।।

युद्ध नहीं करना कभी , ये है तुम्हें सलाह ।
जब करना हो युद्ध तो, दुश्मन की लो थाह ।।

लगी नही थी आपके, लगता मन को चोट ।
या फिर मन में आपके , छुपी हुई थी खोट ।।

धैर्य बनाओ आप सब, अपना लक्ष्य समीप ।
चलो जलाएं आज तो, घर-घर जाकर दीप ।।

दुश्मन के छक्के उड़े, भारत के देख सपूत ।
बता रहे अखबार ये, बता रहे हैं दूत ।।

चलो जंग को छोड़कर , करें अमन की बात ।
आज जगत को दें सभी , प्यार भरी सौगात ।।

सींच रहे क्यों खून से , मानवता को आज ।
छोड राह तकरार की , मानव हित कर काज ।।

यह खूनी तलवार है , बुझती कभी न प्यास ।
छोड़ इसे तू हाथ से , आजा सबके पास ।।

यह खूनी तलवार है , बुझती कभी न प्यास ।
छोड़ न पाया जो कभी , रहता सदा उदास ।।

( 34 )

अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात ।
देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।।

रात अमावस की बड़ी , होती काली रात ।
सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती पल में घात ।।

रात-रात भर जागकर , रक्षा करे जवान ।
अमन हमारे देश हो , किए प्राण बलिदान ।।

कह दूँ कैसे मैं सजन , अपने मन की बात ।
रजनी मुझको छेड़ती , कह बिरहन की जात ।।

रात-रात करवट लिया , तुम बिन थे बेहाल ।
एक-एक रातें कटी , जैसे पूरा साल ।।

अपने दिल के मैं सभी , दबा रही जज्बात ।
समझाओ आकर सजन , रजनी करे न घात ।।

नींद उड़ी हर रात की , देख फसल को आज ।
करता आज किसान क्या , रुके सभी थे काज ।।

उन पर ही अब चल रहे , सुन शब्दों के बाण ।
रात-रात जो देश हित , त्याग दिए थे प्राण ।।

जो कुछ जीवन में मिला , बाबा तेरा प्यार ।
व्यक्त न कर पाऊँ कभी , तेरा वही दुलार ।।

हृदय स्मृतियों में चले , बचपन के वह काल ।
हाथ थाम चलते सदा , कहते मेरा लाल ।।

जीते जी भूलूँ नही , कभी आप उपकार ।
कुछ ऐसे हमको दिए , आप यहाँ संस्कार ।।

जीवन में ऐसे नहीं , खिले कभी भी फूल ।
एक परिश्रम ही यहाँ , है ये समझो मूल ।।

बिना परिश्रम इस जगत , मिलते है बस शूल ।
कठिन परिश्रम से यहाँ , खिलते सुंदर फूल ।।

छोड़ो मत सम्मुख खड़ा, अब तेरे गद्दार ।
जय-जय भारत देश की, आती यही पुकार ।।

वीर शांति सद्भाव का, और नहीं परिवेश ।
देख उसे तुम भी कहो, जय-जय भारत देश ।।

जय-जय भारत देश से, वीरो का यशगान ।
वर दे आज गणेश तो, रहे न पाकिस्तान ।।

करें समूल विनाश तो, जय-जय भारत देश ।
टंटा तब ये खत्म हो, उर का मिटे क्लेश ।।

पापी का अब अन्त हो , दे दो बज्र सुरेश ।
सभी लोग हर्षित रहें, जय-जय भारत देश ।।

पिता कभी भी पुत्र को, झुका न पाये देख ।
वश में बस होता नहीं , लिखे तनय की रेख ।।

भाई लक्ष्मण चाहिए, बने आप भी राम ।
कहीं विभीषण सा नहीं, भाई अपने पास ।

( 33 )

आओ हम स्वीकार लें, यह जीवन रीत ।
मिलकर गाये साथ में, सुख-दुख के हम गीत ।।

जीवन भर तो साथ भी , दे न सकेगा मीत ।
इसे विधाता लेख कह, यह जीवन की रीत ।।

योगी-मोदी साथ में , खेल रहें हैं मैच ।
छक्के पे छक्का लगे , हाथ न आये कैच ।।

योगी-मोदी नाम तो , जग में है मशहूर ।
बस अपने कुछ लोग ही , रहते उनसे दूर ।।

योगी-मोदी नाम का , करो आप भी जाप ।
जीवन में सुख शाँति हो, रहे नही संताप ।।

छोड़ो माया मोह यह , कुछ मत आये काम ।
योगी-मोदी नाम से , लौटे हैं प्रभु धाम ।।

इनके मन आया नहीं , कोई और विचार ।
जनता सेवा ही प्रथम , इनका है आधार ।।

जीवन के हर मोड़ पर , नही मिलेगा साथ ।
ऐसी वाणी बोलते , दिखे हमें कुछ हाथ ।।

भूले जो संस्कार अब , उनको कहना नीच ।
मिल जायेंगे अब वही ,देख हमारे बीच ।।

माह चैत्र वैशाख का , अति प्रचंड है धूप ।
सूर्यदेव के कोप से , सूख गये हैं कूप ।।

बैठी गागर को लिए , गाँव-गाँव की नार ।
जल बिन अब जीवन नहीं , होता हाहाकार ।।

बैठ कूप को देखती , करतीं रहीं विचार ।
बिन पानी संसार का , क्या है अब आधार ।।

देख कूप को कह रही , करो भूप संदेश ।
जल ही जीवन का यहाँ , आज है बडा क्लेश ।।

टूट गये सपने सभी , रही न कोई आस ।
जो भी थे अपने यहाँ , रहे नही वो पास ।।

मोह आज अब त्याग दो , सब है माया जाल ।
बन अपने छलते सभी , करते रहो मलाल ।।

कर्म करे इंसान तो , देते फल भगवान ।
पढ़कर मैं यह खुश हुआ , यहाँ नहीं शैतान ।।

गात जन्म निर्वस्त्र थी ,चीखें थीं सौगात ।
आधी रोटी कर्म की , मिलती मुश्किल तात ।।

पति पत्नी बच्चे हुए , आज एक परिवार ।
मात-पिता को छोड़कर , कहें सुखी संसार ।।

धर्म युद्ध जब भी हुआ , हुआ सदा विपरीत ।
भाई भी हो सामने , जगे न मन में प्रीत ।।

काजल की है कोठरी , गोरी के वह नैन ।
बिन बोले बातें करें , लूटे मन का चैन ।।

बैरन काजल हो गई , हुई बात गम्भीर ।
देख सजन कहने लगे , उठी जिया में पीर ।।

नैनो का काजल कहे , आँखें होंगी चार ।
सुनो पिया से तुम करो , प्रीत भरी तकरार ।।

आते होगें आज वे , करने को मनुहार ।
आज पिया से सुन सखी , आँखें होगी चार ।।

( 32 )

पक्षी तरसे नीर को , जीव जन्तु बेहाल ।।
सूर्य देव के ताप से , सूख गये सब ताल ।।

माँ जननी जगदम्बिका , कृपा करें हर साल ।
नित दर्शन से अब हमें , करती रहें निहाल ।।

कितना भी दिल को समझाऊँ, पाऊँ कहीं न चैन पर ।
गीत ग़ज़ल दोहा हो जाए, फिर कजरारे नैन पर ।।

मातु रेणुका गर्भ से , प्रकट हुए भगवान ।
जन मन के हित के लिए , धरे रूप इंसान ।।

धर्म ध्वजा रक्षित रहे , शत शत तुम्हें प्रणाम ।
पद पंकज भी हो तुम्हीं , मेरे चारो धाम ।।

दीनबंधु दाता तुम्हीं , तुम ही तारन हार ।
तुमसे ही जीवन यहाँ , तुम्हीं सकल संसार ।।

बंद हृदय के खोल दो , मेरे आज कपाट ।
भटक रहा कब से यहाँ , भूला अपना बाट ।।

रजनी जैसे केश हैं , शशि समान है रूप ।
देख सभी मोहित हुए , नर नारी अरु भूप ।।

आजा छत पे चाँद सा , कर लें हम भी दीद ।
तुझको देखें आज तो , हो जाए फिर ईद ।।

दुश्मन सम्मुख देखकर , आज नहीं तू भाग ।
हृदय हमारे आज भी , लगी हुई है आग ।।

देर बहुत अब हो चुकी , अब प्यारे जाग ।
देख-देख आतंक यह, लगी हुई है आग ।।

बिरहन के मन आज भी, लगी हुई है आग ।
नींद बिना वे स्वप्न भी , गये नयन से भाग ।।

बिरहन के मन आज भी, लगी हुई है आग ।
नमक छिड़कने नित्य ही , आ जाता है काग ।।

सेवा में गुरुदेव के, इतना रखना ध्यान ।
आज तुम्हारे हैं वही, मातु-पिता भगवान ।।

मातु-पिता ही देव हैं, इतना रखना ध्यान ।
इनके ही आशीष से, पायेगा सम्मान ।।

उनकी ही संतान हो , इतना रखना ध्यान ।
भूले से होगा नहीं, तुमसे फिर अपमान ।।

जीवन के हर मोड पर, इतना रखना ध्यान ।
मातु-पिता को पूज लो, मिल जायें भगवान ।।

जिनके पुण्य प्रताप से , ये जीवन गतिमान ।
रहना उनकी ही शरण, वह तेरे भगवान ।।

कभी न कोई पा सका, सुनो मृत्यु पर जीत ।
आज आप भी मान लो, यह जीवन की रीत ।।

सुख-दुख के लोभ में, फसो नहीं मनमीत ।
यह तो सबके साथ है, यह जीवन की रीत ।।

सब कुछ मिलता है यहीं, यह जीवन की रीत ।
यहीं छोड़कर एक दिन, सब कुछ जाना मीत ।।

( 31 )

धर्म जाति के नाम पे , लगा देश में रोग ।
नाच रहे हम आप सब , देख रहे यह लोग ।।

व्यर्थ मनाते आप हम , आज शोक संदेश ।
ऐसा हमको है मिला , जीने को परिवेश ।।

सत्ता की इस मांद में, हैं लाखो के फेर ।
जागेंगे जब आप हम , होगी सुन लो देर ।।

आज हम पहलगाम को, सुनो न सकते भूल ।
टूट गये उस डाल के , देखो सुंदर फूल ।।

कभी मुर्शिदाबाद तो, कभी है पहलगाम ।
अत्य हो गई है बहुत , कब आओगे राम ।।

बातें ऐसी मत करो, मन में लगती ठेस ।
कह-कह कर यह बात नित, बदले अपना भेस ।।

कब जागोगे वीर तुम, लेने को प्रतिशोध ।
सोच-सोच मन है दुखी, श्वासें करें विरोध ।।

अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार ।
पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।

मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।
खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।

वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद ।
ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।

तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद ।
छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।

बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप ।
अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।

मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद ।
हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।

मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग ।
उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।

हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन ।
सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।

खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन ।
सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।

टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश ।
वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।

अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन ।
भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।

थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज ।
कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।

मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल ।
तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।

अपना-अपना पथ चुनो, सब अपने अनुसार ।
देंगे फल प्रभु राम जी , कर्मो के आधार ।।

जमदग्नि और रेणुका , के वे ही संतान ।
अति क्रोधित स्वाभाव था, परशुराम भगवान ।।

( 30 )

मंगल उनके काज हो , मंगल मय घर द्वार ।
खुशियाँ आँगन में रहें , बरसे प्रेम अपार ।।

शुभ दिन की शुम कामना , दे सुंदर संदेश ।
काज सभी उत्तम रहें , कह दें आज गणेश ।।

प्रेम डाल खिलते रहें , सदा सुगंधित फूल ।
कभी भूल से भी नहीं , आएं पथ में शूल ।।

चार पैर के हो गये , देखो सभी गुलाम ।
जन गण अब भूखे मरें , कुर्सी उसका नाम ।।

निर्धन को कानून भी , करता है भयभीत ।
उसका गिरधर के सिवा , रहे न कोई मीत ।।

राजनीति व्यापार की , निशिदिन होती वृद्धि ।
अपराधी जन को यहाँ , मिलती खूब प्रसिद्धि ।।

देश प्रेम भी आज तो , रहा नही नि:शुल्क ।
इससे अब छूटा नही , देखो कोई मुल्क ।।

राज नीति की ओट में , पले सदा अपराध ।
इस कुटुम्ब में स्वच्छ भी , रहते हैं एकाध ।।

राज नीति अपराध का , चोली दामन साथ ।
सदा अलग दिखते सभी , चले पकड़ कर हाथ ।।

पानी से ही है घिरा , सुंदर यह संसार ।
फिर भी वह बिकने लगा , बढ़ा नीर व्यापार ।।

इतनी गर्मी के तुम्हीं , बने आज सरताज ।
दोष प्रकृति को दे रहे , फिर भी मानव आज ।।

रोटी ही मजदूर की , होती है नित पीर ।
बहे पसीना देह से , जैसे सरिता नीर ।।

प्यासे ही दम तोड़ना , सुनो पड़ेगा काल ।
अभी चेत कर तुम सभी , बदलो अपनी चाल ।।

सुनो सुराही में रखा , लोटा भर है नीर ।
बुझ जाये तो फिर बुझा , अपने मन की पीर ।।

जिन हाथों में मेहँदी, दिए रक्त से सींच ।
उस पापी निर्लज्ज की, अब जिह्वा लो खींच ।।

कभी बुझेगी ही नहीं, इस दानव की प्यास ।
व्यर्थ लगाते आप हम, मानवता की आस ।।

भारत माँ की गोद में, बैठे कुछ गद्दार ।
आओ माँ अब चंडिके, करने को संहार ।।

जिसने हमको भेंट में, दिया लाल का शीश ।
तन से सर कर दूँ अलग, शक्ति मुझे दो ईश ।।

पूछ-पूछ कर धर्म जो, करते रहे प्रहार ।
उनसे मत करना कभी, आप प्यार व्यवहार ।।

ऐसी-ऐसी आग में , जलता अपना देश ।
अब तो लगता है यही, धर्म बड़ा परिवेश ।।

कब तक अपनी मृत्यु पर, देखें हम यह भीड़ ।
कोई बतलाये हमें, कहाँ हमारा नीड़ ।।

( 29 )

न पिया पिया पुकारती , न रहती वो उदास ।
अभी उसे इस नाम से , हुई न कोई आस ।।

आकर गुरुवर की शरण, जिसने मानी बात ।
जीवन में उसके हुआ , सुन लो तभी प्रभात ।।

सत्ता की माया जिसे , बना दिया शैतान ।
धर्म-धर्म करके वही , मिटा दिया इंसान ।

सत्य सनातन धर्म को , आओ दें आवाज ।
देख रक्त उठता नहीं , सोया हिन्द समाज ।।

रक्त सभी के एक से , तन के रंग अनेक ।
उलझ गये इंसान सब , खोकर आज विवेक ।।

समझ तुम्हें आयी नहीं , करते सब उपयोग ।
आज तुम्हें इस लोभ से , फाँस रहे हैं लोग ।।

राज नीति के जाल से , रहते जो जन दूर ।
वह ही बन मानव यहाँ, चमके बनकर नूर ।।

नेक पड़ोसी की जगत , में खोई पहचान ।
जबसे इस इंसान को , हिन्दू मुस्लिम ज्ञान ।।

धर्म जाति को भूलकर , आओ कर लें प्रेम ।
मिले कभी जो राह में, पूछे सबकी क्षेम ।।

इन बच्चों की बात पर , देना मत तुम ध्यान ।
आओ समझाएँ इन्हें, ये बालक नादान ।।

राम-कथा सुन वाटिका, सिय हिय जगी उमंग ।
आयेंगे कब नाथ सुत, ले जाने को संग ।।

मिट्टी की यह देह है , करना नहीं गुमान ।
ऊपर गिरधर तोलता , सबको एक समान ।।

कंचन काया देखकर , करता क्यों अभिमान ।
नश्वर काया है मिली , कर ले इसका भान ।।

मिट्टी की इस देह का , कर ले तू सम्मान ।
जन-गण के हित कार्य कर , रखते गिरधर ध्यान ।।

मिट्टी को सोना बना , लेकर उनका नाम ।
उनके ही तो नाम से , होते सबके काम ।।

मिट्टी के इस रूप को , कर ले तू अनमोल ।
गिरधर जिसको चाहता , उसका करें न तोल ।।

कृपा करे जगदीश अब , माँग रहा वरदान ।
गुरुवर का मेरे सदा , गिरधर रखना ध्यान ।।

वैवाहिक शुभकामना , करो आप स्वीकार ।
दोहा छन्द सृजन किए , ले आया उपहार ।।

सुखी रहें गुरुदेव जी , विनय सुनें रघुनाथ ।
साथ बनाये ये रखें , रहे हाथ में हाथ ।।

( 28 )

दारू मुर्गा देख के , बेच रहे हो वोट ।
होगी कब तुमको खबर, पाओगे जब चोट ।।

नव दिन माँ नवरात्रि के, किया पूर्ण है ध्यान ।
करो मातु इतनी कृपा, बनूँ नेक इंसान ।।

और नही वरदान में , चाहूँ मैं कुछ और ।
बस माता तेरी शरण, मिले मुझे अब ठौर ।।

फल वैसा ही जानिए, जिसके जैसे कर्म ।
समझेगा तू कब यहाँ, पाप पुण्य का मर्म ।।

फल वैसा ही जानिए, जिसके जैसे कर्म ।
आओ चल के सीख लें , हम मानव का धर्म ।।

गली-गली में हो रही , मैया की जयकार ।
कर दो माँ सब पर कृपा, सब हों भव से पार ।।

क्रोध कष्ट का है जनक , कभी न जाना भूल ।
संयम से देखो खिलें , जीवन में बनफूल ।।

हिंसा के ही बीज हैं , उद्बोधन में आज ।
कहें चुनावी रंग हैं , देखें सकल समाज ।।

छोटी छोटी बात पे , हो जाता संहार ।
मानव हो तो कुछ करें , इनपे सोच विचार ।।

न मृत्यु तक जीवित रहो , सदा करो कुछ काम ।
धर्म कर्म के काज हो , अजर अमर हो नाम ।।

अब चुनाव मे चल रहा , अरोप प्रत्यारोप ।
कर्मठ सुशील ब्यक्ति ही , चला रहे हैं तोप ।।

बातो से ही बह चली , अब विकास की नाव ।
गली गली सरपंच जी , कर रहें काँव काँव ।।

महल छोड़ सरपंच जी , खोज रहें हैं ठाँव ।
दादा मुन्ना के यहाँ, पकड रहे हैं पाँव ।।

आज छुआए पैर तो , कल खाओगे धूल ।
अब तो गये प्रधान जी , तुम भी जाओ भूल ।।

संकट मोचन नाम से, हो जाये दुख दूर ।
क्यों उनके होते हुए, होता है मजबूर ।।

संकट मोचन अवतरण, देख दिवस है आज ।
भज ले उनके नाम को, पूर्ण करें वह काज ।।

बाला जी के नाम से , लगता नित दरबार ।
जो भी जाते हैं शरण, पाते उनका प्यार ।।

राम भक्त उनसे बड़ा , नही जगत में आज ।
जो भी सुमिरे राम को, उनके रुके न काज ।।

राम-राम सुमिरन करो , खुश होगें हनुमान ।
राम-नाम का मोल अब, समझो सब इंसान ।।

राम-नाम के बिन कभी , करे न कोई काम ।
राम-नाम ही है हृदय, पवनपुत्र का धाम ।।

राम-नाम की गूँज से , गये अवध हनुमान ।
खुश होकर था दे दिया, भक्तों को वरदान ।।

( 27 )

त्रिकुटा पर्वत पर करें , वैष्णों माता वास ।
लेकर जाते भक्त सब , अपने मन की आस ।।

विंध्यवासिनी मातु की , महिमा रही अपार ।
दर्शन करते ही हुई, खशियों की बौछार ।।

हंसवाहिनी मातु का , मैहर में निज धाम ।
दर्शन से ही बन पड़े , बिगड़े सबके काम ।।

घर में बैठी मातु का , करे न कोई मोल ।
देख रहा हूँ आजकल , सुत के तीखे बोल ।।

घर में बैठी मातु को , जो समझ सके संतान ।
दर-दर भटके क्यों भला , घर में जब भगवान ।।

मातु-पिता आशीष ही, होता है वरदान ।
कब समझेगी बात को , अपनी यह संतान ।।

बिन फेरों के जब जुड़े, कहीं हृदय के तार ।
मान लीजिए आप भी , वही बड़ा संचार ।।

इस युग के दिलदार की , पूछो ही मत बात ।
मधुर-मधुर बातें करें, रखकर दिल में घात ।।

आप बचाएं प्राण को, भूले अब ये इश्क़ ।
ऐसी लगती चोट है, काम न आता विश्क़ ।।

अब तो प्रेम प्रसंग में , अजब मिलन ही होय ।
हृदय त्याग जब तन मिले, बैठे नैन भिगोय ।।

मुझे प्रेम की जाति पर , नहीं तनिक संदेह ।
पर जाये जो पास में , पाये कहीं न नेह ।।

प्यार अधूरा ही सही , मानी जाती जीत ।
आज समझ मैं भी गया , तू भी सुन मनमीत ।।

इस दुनिया के प्रेम को , देखा जाकर पास ।
हाथ न आया आज कुछ, टूटी दिल की आस ।।

जहाँ स्वार्थ से मीत हैं, दिखा वहीं पे प्रेम ।
वही पूछते आज हैं , जग में देखो क्षेम ।।

तू जो मेरे साथ है, जीवन है उजियार ।
इससे सुंदर हो नहीं , सकता यह संसार ।।

पग-पग होता जा रहा , तम का आज विनाश ।
तू जो ऐसे साथ चल, मिल जाये आकाश ।।

पाते भात पिसान कब, जौ माँगत हो सोंठ ।
कैसे हो निर्लज्ज तुम, खोलत आपन ओंठ ।।

चलनी जाँत पिसान को, क्या पहचाने लोग ।
सौ प्रतिशत अब शुद्ध जो , लिखा मिले उपभोग ।।

ओखल मूसल सूप वे, थे जीने के ढ़ंग ।
रहते तब ही स्वस्थ थे, सब नारी के अंग ।।

सांवा कोदो से हुए, सब जन कोसो दूर ।
मैगी चाऊमीन पे , अब सब करे गुरूर ।।

( 26 )

होनी तो होकर रहे , मत होना भयभीत ।
यही दिलाए एक दिन, जग में तुमको जीत ।।

सेवक का यह धर्म है , स्वामी को दे मान ।
दशो दिशाओं में करे, स्वामी का गुणगान ।।

देख-देख संसार को, बढ़ता जाता ताप ।
सब अपने में हैं मगन, किसको है संताप ।।

सब पुरवासी मन मगन, करते जय-जयकार ।
अपने राजा राम जी , जग के पालन हार ।।

परहित सेवा भाव ही , सज्जन की पहचान ।
होते जो प्रभु के निकट, करता जग गुणगान ।।

मैया दर्शन दीजिए, विनय करूँ करजोर ।
और न दिखता है कहीं, जग में मुझको छोर ।।

मैया दर्शन दीजिए , विनय करूँ करजोर ।
मिले कृपा जो आपकी , झूमूँ मैं चँहुओर ।।

घर बाहर परदेश में, मिलता नहीं सुकून ।
जो पाये वह गूँध दे , समझ हमें अब चून ।।

सुख शांति घर बनी रहे, गया मानता बात ।
पर अपने ही कर गये, देखो मुझसे घात ।।

रेशम के परिधान लो, पहनो मत अब टाट ।
पर पत्नी मन और था , दिया गला वह काट ।।

नहीं गया परदेश तो , बोले बोली लोग ।
जाऊँ जो परदेश तो , लगे गृहस्थी रोग ।।

लेख बिधाता देखकर, आता है अब रोष ।
ऐसी घटना पर कहो , दूँ मैं किसको दोष? ।।

सबका ही कल्याण हो , वर दे दीनानाथ ।
तेरे आगे है झुका , नित्य प्रखर का माथ ।।

विपदा में संतान ही , मातु-पिता की आस ।
हाथ उठा माँगें दुआ , रहे सदा वह पास ।।

सुख दुख में संतान जो , कल तक रही सहाय ।
आज वही संताप का , कारण बनती जाय ।।

मातु-पिता से प्यार जो , करती है संतान ।
जग में उनको ही सदा , मिलता है सम्मान ।।

माँग रही माता सभी , माता से वरदान ।
रघुनायक जैसा मुझे , दे दो तुम संतान ।।

चरण धूल नित मातु की , लेती जो संतान ।
जीवन की बाधा हटे , राह बनें आसान ।।

माता के हर रूप का, करता हूँ गुणगान ।
जन-जन को माँ ने दिया , जीने का वरदान ।।

मातु शारदे को नमन, करता बारम्बार ।
बुद्बि हीन को दे दिया , विद्या का उपहार ।।

दुर्गा माँ की वंदना , करते हैं जो लोग ।
करती माँ उन पर कृपा , निकट न आता रोग ।।

( 25 )

देख अवध छवि धाम की , मन में है उल्लास ।
यही पास रघुवीर जी , मन को है विश्वास ।।

जिसकी जैसी सोच है, वैसा उसका कर्म ।
क्या बतलायें आज हम , उसको उसका धर्म ।।

अच्छे नेक विचार रख, दुनिया है यह गोल ।
आयेगा वह लौटकर, अंत: करण टटोल ।।

रक्षक जिनके आज हैं, महावीर हनुमान ।
उनसे बढ़कर कौन है, इस जग में बलवान ।।

देख न पाते आज हैं, पिया गात के रिन्द ।
छूट गया अखबार भी , हुआ मोतियाबिंद ।।

जाने कब किस जन्म में , किया हुआ है पाप ।
जिसके बदले अब हमें , मिलता है संताप ।।

होते अच्छे कर्म तो , मिलता क्यों संताप ।
बेटा भी होता सही , दूर न होते आप ।।

जीवन में संघर्ष ही , आया अपने हाथ ।
सुख की कोई भी घड़ी , कभी न आयी साथ ।।

छोड़ो माया मोह को , यह सब है भ्रम जाल ।
जिस सुख की है चाह अब , वह था पिछले साल ।।

धन से सुख की चाह को , करना है अब व्यर्थ ।
इससे तो निकला नहीं , कभी कहीं भी अर्थ ।।

धन वालों को देखकर , ढूंढ़ लिया सुख आज ।
रोटी अपनी है भली , नमक संग है प्याज ।।

जीवन के हर मोड़ पर , मिल जाते कुछ लोग ।
उन पर थोड़ा ध्यान दो , करें नहीं उपयोग ।।

रोना छोडो भाग्य पर, अपनाओ पुरुषार्थ ।
सब कुछ कर्मो पे टिका , हो जाओ सेवार्थ ।।

अपना ले पुरुषार्थ जो , सब कुछ उसके हाथ ।
देता है यह भाग्य भी , निशिदिन उसका साथ ।।

करते जाओ कर्म को , करो न फल की चाह ।
भाग्य दिलायेगा तुम्हें , मनचाही वह राह ।।

करते जाओ कर्म को , होकर तुम नि:स्वार्थ ।
व्यर्थ न जायेगा कभी , यह तेरा पुरुषार्थ ।।

कर्मो से ही भाग्य की , जीवन की हर रेख ।
फिर क्या होता है यहां , आगे-आगे देख ।।

नदियाँ बहतीं दूध की , देखा था आकाश ।
तुम अपने पुरुषार्थ में , भरना वही प्रकाश ।।

कोशिश करना कर्म है , मान नही तू हार ।
अब अपने पुरुषार्थ से , कर किस्मत पे वार ।।

रहे सुरक्षित यह धरा, जिसका एक विकल्प ।
वट पीपल के चार फिर , उपजे लो संकल्प ।।

( 24 )

मानव द्वारा पाप का , होने वाला अंत ।
बस कुछ क्षण के बाद में , आयेगा वह संत ।।

बची धरा है आज तो , जीव-जन्तु का श्रेय ।
मानव में तो पाप का , दिखता मुझको ध्येय ।।

कभी पलटकर वार तो, किया नहीं है दूब ।
मानव द्वारा कर्म से ,गई धरा है ऊब ।।

राम-राम के नाम से , होते खुश हनुमान ।
कष्ट सभी तन के मिटे , कर लीजै फिर ध्यान ।।

सत्य सनातन धर्म के , हैं सब पावन पर्व ।
क्यों न करें मिलकर सभी , आओ इस पर गर्व ।।

गंगा यमुना शारदे , मैय्या का वह धाम ।
चलो चलें लेने कृपा , लेकर उनका नाम ।।

लगा हुआ है आजकल , जहाँ कुम्भ का स्नान ।
चलें पिता जी आप भी , करने कुछ तो दान ।।

नागा औघड़ संत का , मिले अलग ही रूप ।
जिनके दर्शन में झुके , हुए जगत के भूप ।।

गंगा यमुना शारदा , माता दें वरदान ।
सत्य सनातन की सदा , अलग रहे पहचान ।।

सत्य सनातन भी जगे , करूँ यही अरदास ।
आज कुम्भ में मातु ये , दिलवा दो विश्वास ।।

देख रहे हैं जो यहाँ , आप लोग यह भीड़ ।
सत्य सनातन की यही , आप समझ लो रीढ़ ।।

लगा हुआ जो कुम्भ में , देख रहे दरबार ।
सत्य सनातन का सुनो , है पूरा परिवार ।।

देख सनातन जन यहाँ , मिलती खुशी अपार ।
जन-जन का करता प्रखर , दिल से है आभार ।।

अदरख वाली चाय तो , उनको नहीं पसंद ।
फिर भी पीकर कह उठे , आया अब आनंद ।।

तुलसी और इलायची , की बढ़िया हो चाय ।
पीता है हर वर्ग अब , चाहे जो हो आय ।।

शीत लहर का है यही , सुन अच्छा व्यवसाय ।
आकर टपरी बैठिये , ले अदरख की चाय ।।

जीवन साथी हाथ की , आती चाय पसंद ।
संग-संग अब बैठकर , लेते हैं आनंद ।।

नित्य भोर में अब यही , पत्नी दे आवाज़ ।
चाय हुई यदि ठंड़ तो , फिर बदलोगे साज ।।

गर्म पकोड़ी प्याज की , अदरख वाली चाय ।
पूछो मत कुछ और अब , यह सुख नही समाय ।।

आया है आनंद भी , हुई उम्र जो साठ ।
दोनो बैठे संग हैं, ऐसे अपने ठाठ ।।

( 23 )

देख रहे थे एक टक , तुझको मेरे नैन ।
आ जाते जब सामने , आ जाता तब चैन ।।

अधर हृदय की बात को , छुपा लिए थे देख ।
अगर न कहते नैन तो , बदल गई थी रेख ।।

मेरा मुझको मिल गया , करूँ नहीं अफसोस ।
जग ये सारा रौस में , मैं उनकी आगोश ।।

कौल दिया उसने मुझे , नहीं छोड़ना हाथ ।
जब तक साँसे तन रहें , तुम भी रहना साथ ।।

एक दूसरे की हमें , है कितनी परवाह ।
जान गये हैं आज हम , नहीं मिटेगी चाह ।।

जीवन के इस मोड पर , मिला मुझे आनंद ।
मधुर-मधुर बाते वही , मधुर-मधुर ये छन्द ।।

नर-नारी में आज क्या , बोलो नही समान ।
दोनों वर भगवान के , दोनों हैं इंसान ।।

सम्मुख मेरे हैं खड़े , देखो कितने राम ।
झुका-झुका कर शीश सब , कर लो उन्हे प्रणाम ।।

गौमुख जन-जन जा रहे , गौ को जाते भूल ।
धुल देना हर पाप माँ , अर्पित श्रृद्धा फूल ।।

राम-नाम रख ताख पर , करे स्वार्थ की बात ।
कहें पुजारी राम का , यह तन है सौगात ।।

राम नाम जिव्हा नहीं , लिया एक भी बार ।
और चाहते वर यही , मुझे बुलाएं द्वार ।।

मातु-पिता आशीष हो , सुन लो जिसके पास ।
उनके वे ही राम जी , उनमें हो विश्वास ।।

जीवन साथी से बड़ा , नही मिलेगा मित्र ।
यह भी मानों सत्य है, देखे नहीं चरित्र ।।

देगा ये नववर्ष नित , खुशियों का पैगाम ।
करते रहना कर्म सब , लेकर हरि का नाम ।।

मातु-पिता आशीष लो , आया है नववर्ष ।
सुख-दुख अपने भूलकर , आज मनाओ हर्ष ।।

उठो भोर में आप जब , करना सूर्य प्रणाम ।
निशिचित देंगे आपको , अच्छा ही परिणाम ।।

ऊँच-नीच के पाठ को , पढ़ते हैं हम लोग ।
आज समझ में आ गया , यही विकट है रोग ।।

जाति-धर्म के नाम से , हमें लड़ा कर लोग ।
लेते रहते लाभ नित , कर ऐसे उपयोग ।।

कौन विभाजित कर गया , हमें धर्म के नाम ।
मिलता तो हम पूछतें , कैसा तेरा राम ।।

वर्ण-वर्ण में बाँटकर , लेता है आनंद ।
ऊँच-नीच करके यहां , करते हैं हम द्वंद।।

( 22 )

जाओ उसका आज तुम , कर दो काम तमाम ।
जिसके दम पर फूलता, ले ले उसका नाम ।।

करना नही बिलंब अब, कर दो काम तमाम ।
जाओ मेरे शेर दिल, अब दुश्मन के धाम ।।

बातों से माना नहीं , कर दो काम तमाम ।
फिर दुश्मन के धाम में, गूँजे जय श्री राम ।।

दुश्मन के हर ठौर का, कर दो काम तमाम ।
आतंको पर हर तरह , देखो लगे लगाम ।।

अब उसकी हर चाल का , कर दो काम तमाम ।
तुम्हें शपथ श्रीराम की, कर दो नींद हराम ।।

पल भर में राफेल ने , किया काम आसान ।
चले गये यमलोक को, सारे तब शैतान ।।

ताकत हिंदुस्तान की , गया शत्रु पहचान ।
बढ़ा पैर पीछे किया, हुआ उसे जो ज्ञान ।।

उठते शोले देखकर, दुश्मन था भयभीत ।
प्राण बचे बस आज तो, भले न हो अब जीत ।।

आप्रेशन सिंदूर का , सफल हुआ अभियान ।
पूरा भारत कर रहा , जिस पर अब अभिमान ।।

नारी की जिस माँग का, छीने थे सिंदूर ।
उसके आज प्रकोप से, आयु तुम्हारी पूर ।।

तुमने जिस आतंक में, शामिल किए सपूत ।
उनको हिंदुस्तान से, बुला लिए यमदूत ।।

जो भारत के सामने, था बिल्कुल असमर्थ ।
वह दिखलाने को चला , मुझमें है सामर्थ्य ।।

विंग कमांडर व्योमिका, का था रूप प्रचंड।
तब करनी का पाक को, दिया उचित है दंड ।।

करते जो बदनाम हैं उसको मुस्लिम जान ।
नाम उसी का सोफ़िया, भारत की पहचान ।।

करना अब नफ़रत नही, सुनकर तुम इस्लाम ।
वो ही अल्हा राम है, जिनका तुझमें धाम ।।

जाति धर्म को भूलकर , जागों तुम इंसान
नही वतन से है बडा , हम सब खी जान ।।

मानवता के बीच में, पाक बना दीवार ।
जड़ से कर दो खत्म अब , जग की यही पुकार ।

पहल गाँव के कृत्य का , लेना है प्रतिकार ।
आये जो भी मध्य में , कर देना संहार ।।

बातें हमने की बहुत, मिला नहीं उपचार ।
एक मात्र बस युद्ध ही, आया आज विचार ।

सैनिक भारत देश के , करे न देखो घात ।
दुश्मन से अब वह करें , बस तोपो से बात ।।

मेरे भारत देश को, समझ नही मजबूर ।
सफल किया अभियान जो , नाम दिया सिंदूर ।।

सैनिक की दिखती अलग, सुनों यहाँ पहचान ।
सदा वतन के ही लिए , देता वह बलिदान ।

( 22 )

देख रहे थे एक टक , तुझको मेरे नैन ।
आ जाते जब सामने , आ जाता तब चैन ।।

अधर हृदय की बात को , छुपा लिए थे देख ।
अगर न कहते नैन तो , बदल गई थी रेख ।।

मेरा मुझको मिल गया , करूँ नहीं अफसोस ।
जग ये सारा रौस में , मैं उनकी आगोश ।।

कौल दिया उसने मुझे , नहीं छोड़ना हाथ ।
जब तक साँसे तन रहें , तुम भी रहना साथ ।।

एक दूसरे की हमें , है कितनी परवाह ।
जान गये हैं आज हम , नहीं मिटेगी चाह ।।

जीवन के इस मोड पर , मिला मुझे आनंद ।
मधुर-मधुर बाते वही , मधुर-मधुर ये छन्द ।।

नर-नारी में आज क्या , बोलो नही समान ।
दोनों वर भगवान के , दोनों हैं इंसान ।।

सम्मुख मेरे हैं खड़े , देखो कितने राम ।
झुका-झुका कर शीश सब , कर लो उन्हे प्रणाम ।।

गौमुख जन-जन जा रहे , गौ को जाते भूल ।
धुल देना हर पाप माँ , अर्पित श्रृद्धा फूल ।।

राम-नाम रख ताख पर , करे स्वार्थ की बात ।
कहें पुजारी राम का , यह तन है सौगात ।।

राम नाम जिव्हा नहीं , लिया एक भी बार ।
और चाहते वर यही , मुझे बुलाएं द्वार ।।

मातु-पिता आशीष हो , सुन लो जिसके पास ।
उनके वे ही राम जी , उनमें हो विश्वास ।।

जीवन साथी से बड़ा , नही मिलेगा मित्र ।
यह भी मानों सत्य है, देखे नहीं चरित्र ।।

देगा ये नववर्ष नित , खुशियों का पैगाम ।
करते रहना कर्म सब , लेकर हरि का नाम ।।

मातु-पिता आशीष लो , आया है नववर्ष ।
सुख-दुख अपने भूलकर , आज मनाओ हर्ष ।।

उठो भोर में आप जब , करना सूर्य प्रणाम ।
निशिचित देंगे आपको , अच्छा ही परिणाम ।।

ऊँच-नीच के पाठ को , पढ़ते हैं हम लोग ।
आज समझ में आ गया , यही विकट है रोग ।।

जाति-धर्म के नाम से , हमें लड़ा कर लोग ।
लेते रहते लाभ नित , कर ऐसे उपयोग ।।

कौन विभाजित कर गया , हमें धर्म के नाम ।
मिलता तो हम पूछतें , कैसा तेरा राम ।।

वर्ण-वर्ण में बाँटकर , लेता है आनंद ।
ऊँच-नीच करके यहां , करते हैं हम द्वंद।।

( 21 )

भटका जब भी मन यहाँ , खंडित हुए विधान ।
क्षमा करो अब मातु तुम , समझ लाल नादान ।।

नौ दिन के उपवास का , लिया आज संकल्प ।
माँ मेरी रक्षा करो , मैं बालक हूँ अल्प ।।

माँ जग में सुख शांति हो , एक कामना नेक ।
सबको यह आशीष दो , सब में जगे विवेक ।।

उसी विधाता को यहां , मैं दे रहा स्वरूप ।
जिसने मुझको दे दिया , इतना सुंदर रूप ।।

लाभ हानि की बात अब , करना है बेकार ।
जीवन मे संघर्ष को, कर प्राणी स्वीकार ।।

यश अपयश तो आपके , रहते सदा अधीन ।
दान धर्म करके सदा , बनते रहो कुलीन ।।

संगत संतो की सदा , बदले जीवन रेख ।
कर्मो की तलवार से , मिटे विधाता लेख ।।

मेरी सूरत देखकर , भर लो अपना पेट ।
मर जाए हम भूख से , बने रहो तुम मेट ।।

काम धाम कुछ है नहीं , पियो बैठकर चाय ।
दो-दो बच्चे पालने , कैसे होगी आय ।।

ऐसे बुद्धू से यहां , पाला पडा हमार ।
मेरी तो मति मर गई , तुमको सुनो पुकार ।।

काम धाम के नाम पर , बस करते पर पंच ।
बन बैठे हो गाँव के , तुम कैसे सरपंच ।।

नजर घुमाकर देख लो , अपना घर परिवार ।
अब ऐसी स्थिति आ गई , करो कोई विचार ।।

काम धाम कुछ है नहीं , पियूँ बैठकर चाय ।
तुझे देखकर अब मुझे , सूझे बड़े उपाय ।।

जीवन साथी का सदा , रख तू पूरा ध्यान ।
एक वही करता यहां , है तेरा सम्मान ।।

राम-राम करते रहो , मिल जाये आराम ।
राम-राम में जग रमा, कण-कण उनका धाम ।।

करके मन को राम मय , हो जा उनमें लीन ।
यह काया है राम की , मत कर इसको हीन ।।

राम नाम की भक्ति में , लीन हुए हनुमान ।
भक्त नहीं ऐसा मुझे , दिखा कहीं इंसान ।।

राम नाम के जाप से , मिल जाती है शक्ति ।
करके देखें आप भी , राम नाम की भक्ति ।।

राम और हनुमान से , नाता ले तू जोड़ ।
खुल जायेंगे बंध सब , राहें अपनी मोड़ ।।

राम-राम करते रहो , राम लगाये पार ।
ये दुखिया संसार है , मत कर और विचार ।।

( 20 )

जीवन के इस रंग से , होते क्यों हैरान ।
त्याग नहीं जीवन कभी , संग चले भगवान ।।

संकट सम्मुख देखकर , हो जाता हैरान ।
छोड़ चले जीवन यहाँ , पल भर में इंसान ।।

मुश्किल से मुश्किल घड़ी , हो जाती है दूर ।
थोड़ा बस संयम रखो , होते क्यों मजबूर ।।

मत कर जीवन से कभी , तू अब ऐसी चाह ।
जो फिर कल दीवार बन , रोके तेरी राह ।।

धर्य-रहित जीवन जियो , संकट जाओ भूल ।
दें गिरधर आशीष तो , सब बन जाएं फूल ।।

सत्य सनातन धर्म के , होते मीठे बोल ।
बतलाते जीवन यहाँ , सुन लो है अनमोल ।।

जीव-जन्तु मानव यहां , सब में भरा कलेश ।
मृत्युलोक का है यही , सबको ये संदेश ।।

जाना सबको है उधर , रख ले धीरज आज ।
अभी तुम्हारे बिन वहाँ , रुका न कोई काज ।।

जीवन के हर रंग में , कर्म रखोगे याद ।
ये ही जीवन से तुम्हें , कर देंगे आजाद ।।

ये जीवन संग्राम है , विजयी होते धीर ।
मीठी बोली प्रेम की , भरे घाव गंभीर ।।

कट जायेंगे दिन सभी , चले आप हम साथ ।
छूट न पाये बस कभी , इन हाथों से हाथ ।।

तुमको पाकर ही यहां, निकला जीवन अर्थ ।
अब तो लगता है हमें , तुम बिन जीवन व्यर्थ ।।

संग तुम्हारे हो नहीं ,खुशियों का अब अंत ।
तुमको पाकर आज जो , खुशियाँ मिली अनंत ।।

कभी-कभी मन में उठे , मेरे अब संताप ।
जाने कब किसको यहाँ , करना पड़े विलाप ।।

दिन जीवन के चार है , छोड़ो ये घर द्वार ।
हम तुम दोनों से यहां , कोई करें न प्यार ।।

आओ अपनी प्रीति की , अलग करे पहचान ।
हम तुम दोनों संग में , करे प्राण बलिदान ।।

विचरण करता है धरा, वही अब पशु समान ।
पास नही जिसके तनिक, यहाँ सुनों अब ज्ञान ।।

माँ की महिमा का करूँ , जग में मैं गुणगान ।
कृपा उन्ही की है हुई , मैं तो था नादान ।।

नहीं श्लोक आते मुझे , नही मंत्र का ज्ञान ।
मैं तो बस अब मातु का , करता हूँ नित ध्यान ।।

( 19 )

रिश्ते में हम आप हैं , पति पत्नी का रूप ।
मातु-पिता को मानते , हैं हम अपने भूप ।।

रिश्तों की बगिया खिली , तनय उसी के फूल ।
लेकिन उनमें आज कुछ , बनकर चुभते शूल ।।

एक रंग है रक्त का , जीव जन्तु इंसान ।
जिसका रिश्ता इस जगत , जोड़ गया भगवान ।।

रिश्ता छोटा हो गया , पति पत्नी आधार ।
मातु-पिता बैरी बने , साला है परिवार ।।

संग रहे अर्धांगिनी , लेकर हाथ गुलाल ।
प्रीति-प्रीति में मैं करूँ, आगे अपने गाल ।।

रंगों अपनी प्रीति से , तुम अब मेरे अंग ।
बहका-बहका मैं रहूँ , जैसे पीकर भंग ।।

फाग मनाएंगे सजन , आज तुम्हारे संग ।
तुम बिन जीवन में नही , देखा कोई रंग ।।

प्रीति रंग जबसे चढ़ा , हो गई मैं मलंग ।
उडती रहती संग में , जैसे डोर पतंग ।।

संग तुम्हारे हो सदा , सुनो सभी त्यौहार ।
तुम पर ही छलके सदा , निशिदिन मेरा प्यार ।।

खट पट तो होती रहे , रहें सदा जो साथ ।
प्रीत बढायेगी यही , छोड़ न मेरा हाथ ।।

नारी शक्ति महान है , त्यागो तुम अभिमान ।
उसका तो हर अंश है , स्वयं एक वरदान ।

नारी के हर रूप में , हो देवी का वास ।
जो चाहो तुम माँग लो , सब है उनके पास ।।

माँझीं हैं इस नाव के , जग के पालन हार ।
रहो शरण उनकी सदा , करते नैया पार ।।

कागा बैठ मुँडेर पर , देता है संदेश ।
आयेंगे जब साजना , बदलेगा परिवेश ।।

ज्यों पलाश के फूल से , प्यारा लगे बसंत ।
वैसे ही अब हे सखी , मुझको भाए कंत ।।

लिख दूँ पाती आज मैं , आ जाओ अब गाँव ।
तुम बिन भाती है नहीं , यह पीपल की छाँव ।।

फीके लगते हैं मुझे , होली के सब रंग ।
तुम बिन तो आता नहीं, जीने का अब ढंग ।।

बता रहे वह लोग अब , यहाँ प्रेम को रोग ।
जिनकी किस्मत में कहीं , लिखा नहीं ये योग ।।

अबके फागुन जी जला , बीच पड़ा मलमास ।
आते आते ही पिया , गुजर गया मधुमास ।।

जीवन के हर रंग से , कर ले तू पहचान ।
इच्छा यहाँ अनंत है , करती नित व्वयधान ।।

( 18 )

उर को मेरे जो रँगे , दूँ फूलों का हार ।
मेरे तन-मन का वही , बन जाये शृंगार ।।

बरसों बीते प्रेम की , खेले हमको फाग ।
अब आती जो याद तो , जले हृदय में आग ।।

लगकर हमसे वह गले , रोये थे कल खूब ।
बहते आंसू में वहीं, गया हृदय फिर डूब ।।

कभी फाग मिल कर गले , खेलो तुम भी यार ।
बरसों बीते प्रीति के , टूटे अपने तार ।।

देख फाग मिलने गले , आये हैं सब लोग ।
तू भी आकर मिल गले , अच्छा है संयोग ।।

फागुन में मिलना गले , लेकर हाथ गुलाल ।
श्याम रंग तुझ पर चढ़े , सुर्खी मेरे गाल ।।

व्याकुल मन से देखती , दूर सजन का गाँव ।
प्यासे नैना दीद में , खोज रहे थे छाँव ।।

डगर-डगर वह दे रही , पिया-पिया आवाज ।
आज मिलन की चाह में , भूल गई सब काज ।।

आओ भोलेनाथ जी , घर नंदी के साथ ।
मिलकर अब सेवा करे , देखो दोनो हाथ ।।

हर हर गंगे जप चले , नभ तक हो आवाज ।
हे त्रिपुरारी आपका , पूर्ण जगत पे राज ।।

आयी है शिवरात्रि ये , भक्त करे यशगान ।
शिवशंभू ये देख कर , देते हैं वरदान ।।

गौरी-शंकर आज तो , छोड़ दिए कैलास ।
देख रहे करके भ्रमण , भक्तो का आवास ।।

आयी माँ गौरी यहाँ , होकर सिंह सवार ।
देख रही हैं भक्त का , वह अपने घर द्वार ।।

घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल ।
छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।।

लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल ।
आज तुम्हारी चाल का , पूरा रखूँ खयाल ।।

आये कितनी दूर से , देखो है ये ग्वाल ।
हे राधा छू लेन दो , यही नन्द के लाल ।।

हर कोई मोहन बना , लेकर आज गुलाल ।
मैं कोई नादान हूँ , सब समझूँ मैं चाल ।।

भर पिचकारी मारते , हम भी तुझे गुलाल ।
तुम बिन तो अपनी यहाँ , रहती आँखें लाल ।।

रिश्ता अपना भी यहाँ , देखो एक मिसाल ।
छुपा किसी से है नही , हम दोनो का हाल ।।

रिश्ते की बुनियाद है , अटल हमारी प्रीति ।
क्या तोड़ेगा जग इसे , जिसकी उलटी रीति ।।

( 17 )

उर को मेरे जो रँगे , दूँ फूलों का हार ।
मेरे तन-मन का वही , बन जाये शृंगार ।।

बरसों बीते प्रेम की , खेले हमको फाग ।
अब आती जो याद तो , जले हृदय में आग ।।

लगकर हमसे वह गले , रोये थे कल खूब ।
बहते आंसू में वहीं, गया हृदय फिर डूब ।।

कभी फाग मिल कर गले , खेलो तुम भी यार ।
बरसों बीते प्रीति के , टूटे अपने तार ।।

देख फाग मिलने गले , आये हैं सब लोग ।
तू भी आकर मिल गले , अच्छा है संयोग ।।

फागुन में मिलना गले , लेकर हाथ गुलाल ।
श्याम रंग तुझ पर चढ़े , सुर्खी मेरे गाल ।।

व्याकुल मन से देखती , दूर सजन का गाँव ।
प्यासे नैना दीद में , खोज रहे थे छाँव ।।

डगर-डगर वह दे रही , पिया-पिया आवाज ।
आज मिलन की चाह में , भूल गई सब काज ।।

आओ भोलेनाथ जी , घर नंदी के साथ ।
मिलकर अब सेवा करे , देखो दोनो हाथ ।।

हर हर गंगे जप चले , नभ तक हो आवाज ।
हे त्रिपुरारी आपका , पूर्ण जगत पे राज ।।

आयी है शिवरात्रि ये , भक्त करे यशगान ।
शिवशंभू ये देख कर , देते हैं वरदान ।।

गौरी-शंकर आज तो , छोड़ दिए कैलास ।
देख रहे करके भ्रमण , भक्तो का आवास ।।

आयी माँ गौरी यहाँ , होकर सिंह सवार ।
देख रही हैं भक्त का , वह अपने घर द्वार ।।

घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल ।
छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।।

लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल ।
आज तुम्हारी चाल का , पूरा रखूँ खयाल ।।

आये कितनी दूर से , देखो है ये ग्वाल ।
हे राधा छू लेन दो , यही नन्द के लाल ।।

हर कोई मोहन बना , लेकर आज गुलाल ।
मैं कोई नादान हूँ , सब समझूँ मैं चाल ।।

भर पिचकारी मारते , हम भी तुझे गुलाल ।
तुम बिन तो अपनी यहाँ , रहती आँखें लाल ।।

रिश्ता अपना भी यहाँ , देखो एक मिसाल ।
छुपा किसी से है नही , हम दोनो का हाल ।।

रिश्ते की बुनियाद है , अटल हमारी प्रीति ।
क्या तोड़ेगा जग इसे , जिसकी उलटी रीति ।।

( 16 )

सुन ईटों से मत बना , तू अब यहाँ मकान ।
बिन अपनों के जिंंदगी , हो जाती शमशान ।।

घर के बुजुर्ग अब यहां , हो गये मेहमान ।
बेटा बहूँ न रख सके , मातु-पिता का ध्यान ।।

राधा रानी पूछ लो , अब कान्हा का हाल ।
व्यथित आज है दिख रहे , मुझे नंद के लाल ।।

राधा रानी अब करो , तुम कान्हा का ध्यान ।
राधे राधे रट रहे , दे मुरली की तान ।।

राधे रानी नाम पे , त्यागो अपने प्रान ।
आ जाए वैकुंठ से , तुझको लेने यान ।।

कंठ न जाए भूल अब , राधा रानी नाम ।
कुब्जा कुब्जा जप रहे, बैठ देख घनश्याम ।।

कान्हा तुम भी जानते , राधे मन की पीर ।
राधे अब क्या माँगती , रख के धीरज धीर ।।

नैना तट पर देखते , कान्हा तेरी राह ।
बैरन है दिन रैन अब , करके तेरी चाह ।।

राधा रानी नाम पे , त्यागो तुम अभिमान ।
हर लेंगी सब कष्ट वह , दे करके वरदान ।।

गिरिधर तेरी बासुरी , बोले मीठे बोल ।
मंद मंद मुस्कान से , पवन रही है डोल ।।

सेज सजा कर आज तू , देख पिया की बाट ।
द्वार छाँव में देख लें , बैठ पिया हैं खाट ।।

रूप गगन का चंद्रमा , ओढ़ चाह ले टाट ।
खबर नगर को आज है , ताक रहे सब बाट ।।

पिया पिया अब जीभ पर , नाम रहे नित भोर ।
जिया चुरा कर आज वह , कहे मुझे चित चोर ।

मुझे समझ कर चाँद वह , मिला रहा है नैन ।
नैन कहे चल साथ चल , मौन रहे फिर बैन ।।

उसे देख मन डोलता , कहू्ँ बात मैं खास ।
रूप गगन का चंद्रमा , नही बुझे है प्यास ।।

एक चाँद है पास में , कहूँ यही दिन रात ।
रात रात में बात हो , सुनो तात अब बात ।।

आज चाँद से रात में , बात करूँ मैं खास ।
उठा टाट मैं देख लूँ , जो मन रहें उदास ।।

जीवन यह अमोल है , नहीं समझते आप ।
तब ही पाते आप हो , जीवन में संताप ।।

स्वर्ग नर्क दोनों यहाँ, सब है कर्म विधान ।
सूर्य पुत्र शनिदेव ही , इसका करें निदान ।।

पिचकारी की धार से , रँगते तन हर साल ।
हृदय सदा कोरा रहा , मिली न प्रीति गुलाल ।।

( 15 )

कहने का तात्पर्य जब , समझ सके इंसान ।
भाषा वह ही है सही , वह ही सच्चा ज्ञान ।।

बल्ला चला विराट का , जीता हिंदुस्तान ।
सबके मन गदगद हुए , प्रतिद्वंद्वी हैरान ।।

जग में कुछ अज्ञान हैं , जो करते परिहास ।
उनमें देखा है नही, हिंदी में विश्वास ।।

हिंदी भाषा प्रेम की , सुनकर हृदय प्रसन्न ।
जैसे भूखे को कहीं , आज मिला हो अन्न ।।

हिंदी भाषा प्रेम की , जग में बड़ी महान ।
दिलवाती है हिन्द को , अलग एक पहचान ।।

अवधी बोली को वही , भूल गये वह लोग ।
करते हैं जो आजकल , अंग्रेजी उपयोग ।।

चुभते तो होगें सदा , उस गुलाब को शूल ।
फिर भी उपवन में वही , प्यारा सबसे फूल ।।

सुख दुख में देते सभी , सुंदर फूल गुलाब ।
जिसका बागों में नहीं , कौई और जवाब ।।

उपमा देते हैं सभी , राजा लगे गुलाब ।
उसके सम्मुख सब दिखे , मुझको बहता आब ।।

बागों की शोभा बढे , जिसमें लगे गुलाब ।
मधुवन से होता नही , इसका कभी हिसाब ।।

चंचल मन की यदि कभी , सुनते आप पुकार ।
प्रियतम आते दोड़कर, आप प्रिया के द्वार ।।

चंचल मन की वो खुशी , देख सके क्या आप ।
मन ही मन खिलता रहा , सुनकर ये पदचाप ।।

चंचल मन ने बाँध ली , आज प्रेम की डोर ।
कैसे निकलेंगे सजन , नैना है चितचोर ।।

चंचल दिखती है पवन , छेड़े मन के तार ।
आने वाले हैं सजन , लायी खत इस बार ।।

चंचल मन वैरी हुआ , करके उनसे प्रीति ।
सुधि भी वह लेता नहीं , निभा रही मैं रीति ।।

मुझ पर ये उपकार नित , रखना भोलेनाथ ।
यूँ ही मेरे सिर रहे , आप सभी का हाथ ।।

आप सभी के प्रेम का , मिला मुझे उपहार ।
जन्मदिवस मेरा हुआ , खुशियों का त्यौहार ।।

अल्प ज्ञान पाकर मनुज , बनता कहाँ महान ।
पर बतलाये कौन अब , स्वयं बना गुणवान ।।

कितना प्यारा लग रहा , देखो फूल पलाश ।
जैसे धरती पर उतर, आया हो आकाश ।।

( 14 )

बहुत पुण्य पावन धरा , है ये हिन्दुस्तान ।
यहाँ प्रेम कण-कण बसे , हृदय-हदय भगवान ।।

राम नाम के प्रेम से , मिलें भक्त हनुमान ।
प्रेम पूतना का सफल , समझ दिव्य यह ज्ञान ।।

फागुन में होगा मिलन , याद सजन रख बात ।
इसी माह से प्रेम की , होती है शुरुआत ।।

सावन से पहले सजन, रहे जेष्ठ आषाढ़ ।
बढ़े धरा की प्यास तो , लाती है फिर बाढ़ ।।

भूल नहीं जाना हमें , देख गुलाबी रंग ।
मैं भी तो हूँ अब सजन , आधा तेरा अंग ।।

अब की उड़े गुलाल तो , रखना इतना याद ।
लाकर प्रिय बारात तुम , करना घर आबाद ।।

हुआ हमें जो रोग है , छुपा रहे है बैद ।
घर वाले कहते सदा , सजन करेंगे कैद ।।

भाभी कहती रात दिन, तू जायेगी जेल ।
लगता होली बाद ही , होगा अपना मेल ।।

करो आचरण पर कभी , अपने आज विचार ।
अच्छे बच्चों की तरह , क्या अपने संस्कार ।

अच्छे राधे श्याम जी , अच्छी उनकी प्रीति ।
मिटा गये जग से वही , गोरी काली रीति ।।

गोरे काले भेद की , अब भी जारी जंग ।
अच्छे राधे श्याम जी , रहे प्रेम के संग ।।

अंग्रेज़ी हो बोलते , लगते थानेदार ।
हम अवधों को आप मत , समझें आज गँवार ।।

भाषा अपनी प्रेम की , बोल गये कुछ लोग ।
आप नहीं समझें अगर, हुआ ज्ञान का रोग ।।

देश धर्म के नाम पर , बाट दिये इंसान ।
रंग ज्ञान परिधान भी , बाट रहे नादान ।।

तिल का ताड़ बना रहे , है ज्ञानी कुछ लोग ।
करो माफ विनती यही , मैं ही यहाँ अयोग्य ।।

( 13 )

साधु-संत कहते सभी , आता दिखे वसंत ।
शीत काल का मान लो , होना है अब अंत ।।

करो प्रेम की बात नित , दिलवाता यह क्षेम ।
हर संकट से आपको , मुक्ति दिलाता प्रेम ।।

कर्म करे जो शुभ यहाँ , जग में होता नाम ।
देते उसका साथ नित , सुन लो सीता-राम ।।

प्रेम मिलेगा प्रेम कर , कहते राधे श्याम ।
बिना प्रेम बसते नहीं , पत्थर में शिवराम ।।

यह जग निशिदिन आपका , करता है परिहास ।
कर लेना इस बात पर , थोडा सा विश्वास ।।

मातु-पिता पर आप भी , कर लेना विश्वास ।
चल जाये तुमको पता , कौन खड़ा है पास ।।

ज्यादा मीठी बात पर , देना मत अब ध्यान ।
वो होते है ठग बड़े , समझ नहीं इंसान ।।

मन को हरने आ गया , देखो आज बसंत ।
सबको ही प्यारे लगे , अपने-अपने कंत ।।

फूली सरसो देखकर , मन हुआ अति प्रसन्न ।
बस कुछ दिन के बाद ही , घर-घर होगा अन्न ।।

रिश्ते दुआ सलाम के , गर हो जायें बंद ।
तो बतलाये आप फिर , कैसे हो आनंद ।।

प्रेम-प्रेम करते सभी , नहीं प्रेम पहचान ।
तन से तन का हो मिलन, कहे प्रेम इंसान ।।

विजय प्रेम की देखिये , कहीं नहीं है जीत ।
राधा-मोहन राम-सिय , दोनों मन के मीत ।।

प्रेम माँगता है सदा , मानव से बलिदान ।
तब ही कहलाता यहाँ , अच्छा वह इंसान ।।

तन को पाने के लिए , रचे प्रेम का स्वाँग ।
होता सच्चा प्रेम तो , देते हर पल बाँग ।।

जिसका मन मैला नहीं , वह ही करता प्रेम ।
आये मुश्किल जो घड़ी , त्यों ही पूछे क्षेम ।।

( 12 )

जिनके सिर पर हाथ हो , तेरा भोलेनाथ ।
वे ही जाते है नही , छोड़ आपका साथ ।।

मानव को लाचार अब , कहना होगा भूल ।
दिखते जैसे हैं यहाँ , वैसे दिखे न फूल ।।

भक्तों को समझो नहीं , आप यहाँ लाचार ।
उनका जीवन राम का , बना हुआ आधार ।।

उचित समय का जो यहाँ , करते हैं उपयोग ।
जीवन में अच्छा वही , कलते हैं उपभोग ।।

नहीं समय को दोष दो , समय बड़ा बलवान ।
इसके आगे हैं झुके , जग के सब धनवान ।।

दिव्य शक्ति है राम में ,सुनकर खिलता रोम ।
नहीं पढ़ा देखा कहीं , राम नाम में ओम ।।

नहीं किया है ओम का , हमने यहाँ विरोध ।
बस बतलाया आपको , राम नाम का शोध ।।

ठंडी – ठंडी चल रही , देखो पूष बयार ।
मिल जायें जो वों कहीं , लगूँ अंग मैं यार ।।

सारे बंधन स्वार्थ के , सिवा पिया का प्यार ।
जिनसे अब नित हो रही , मुझपे प्रेम फुहार ।।

मात-पिता के बाद अब , दूजा यह संसार ।
संग पिया का प्यार ही , एक मात्र आधार ।।

संग पिया का प्यार ही , बना रहे आधार ।
सब कुछ अब तो व्यर्थ है , बिना पिया के प्यार ।।

तुम्हें बताऊँ क्या सखी , आज जिया का हाल ।
बिन उनके करता सदा , मेरा जिया मलाल ।।

तुम आओ तो फिर लगे , सुंदर घर संसार ।
दोऊ नैना बाट से , करते रहते रार ।।

सबसे सुंदर जग लगे , जग से सुंदर आप ।
पाकर तुमको मिट गये , जीवन के संताप ।।

नैन मिला के आपसे , नैन हुए है चार ।
निशिदिन स्वप्नों में करे , हम तेरा दीदार ।।

जिद मैके की छोड़ दो , बहुत पड रहीं ठंड ।
मैं तो देवी भक्त हूँ , क्यों देती हो दंड ।।

बिन सजनी के सोच लो , थर-थर काँपे गात ।
रूठ गई सजनी अगर , पूस माघ की रात ।।

रातें लम्बीं हो गईं , दिन हो गये पहाड़ ।
दूर आपसे क्या हुए , हर पल लगे उजाड़ ।।

सर्द रात की बात थी , आप नहीं थी पास ।
रात रात करवट गई , मन ये हुआ उदास ।।

शीत लहर चलने लगी , पूस माष दिन रैन ।
सूर्य चंद्र दोनो छिपे , खोज रहें है नैन ।।

वादा पिछले साल का , करो पूर्ण सरकार ।
चूड़ी कंगन अब नहीं , झुमके हो इस बार ।।

( 11 )

राधे रानी आप भी , मेरी सुनें पुकार ।
सुना आपके हाथ में , है जीवन पतवार ।।

आज धरा पर घोर ही , छाया है अँधियार ।
दीपक सा रोशन करो , माता यह संसार ।।

ऐसी क्या विपदा मुझे , जिसका नही इलाज ।
हँसता है अब देखकर , हमको आज समाज ।।

हर विपदा से आप ही , करें यहां उद्धार ।
फिर क्यों इतनी देर है , क्या कुछ और विचार ।।

कर दो संकट दूर अब , तुम्हें राम सौगंध ।
मात्र तुम्हारी आस है , क्या जाने हम अंध ।।

कह दो दिल की बात को , करो नहीं संकोच ।
आप और हम एक हैं , अब मत इतना सोच ।।

जब दो मीठे बोल से , हो जाता है प्यार ।
तो क्यों लेकर हम चलें ,बोल साथ तलवार ।।

कुछ हैं जग में दुष्ट भी , जिन्हें प्रेम से बैर ।
उनकी खातिर है दुआ , बने रहें वे गैर ।।

सुख-दुख दोनों ही सदा मन के हुए गुलाम ।
तब ही कहते कवि सभी , भज ले हरि का नाम ।।

मन के अच्छे भाव को , मत गठरी में बाँध ।
जिससे जग में ज्ञान बिन, दिखे नहीं जन्मान्ध ।।

आती-जाती ठंड ने , किया नेक यह काम ।
तन उनके भी ढक दिये , चले खुले जो आम ।।

तन उनके ही थे खुले , जिनके वस्त्र तमाम ।
उनको अब हम क्या कहें , पास न जिनके दाम ।।

देखो अपनी यह प्रकृति , सिखलाती हर बात ।
छत की कीमत भी यहाँ , बतलाती बरसात ।।

कितना किसमें तेज है , आओ करे प्रयोग ।
यहाँ सूर्य से आँख को , मिला सके कब लोग ।।

बढ़ती जब भी भूख तो , आती घर की याद ।
रोटी सूखी भी तभी , दे जाती है स्वाद ।।

( 10 )

मूर्खो की संगत दिखी , करे ज्ञान की बात ।
चटक चाँदनी पूर्णिमा , कहे अमावस रात ।।

माया से इंसान के , बंद रहे यह नैन ।
खुलते जब यह नैन तो, छिन जाते हैं चैन ।।

जब आए मतलब निकल , करते हैं सहयोग ।
हमने देखा है इसी , धरती पे वे लोग ।।

फीकी लगती चाय भी , करते ऐसी बात ।
जब भी दो आवाज फिर , आए आधी रात ।।

वह सेवा सत्कार में , करते कभी न चूक ।
कोयल भी पीछे हुई , सुनकर उनकी कूक ।।

ऐसे आज समाज में , लेते हैं हम स्वास ।
जिसकी दुम का भी नहीं , हमको कुछ अहसास ।।

अधरो पर मिश्री लिए , बड़े बोलते बोल ।
उनको भी दे दो खबर , दुनिया भी है गोल ।।

महिला सुंदर देखकर , टपक रही थी लार ।
हमें बताते थे वहाँ , उच्च कोटि संस्कार ।।

किसको बतलाते यहाँ , तुम कपडो के रेट ।
इनसे तो भरता नही , यहाँ किसी का पेट ।।

पहले के इंसान को , देखा नही अधीर ।
रहट चलाकर जो कभी , पा लेते थे नीर ।।

आज समझ में आ रहा , है पानी का मोल ।
पाते हैं अब लोग सब , सुनो यहाँ पे तोल ।।

बिन मिश्री मीठा लगे , आज हमें यह नीर ।
देकर नीर शरीर को , हरते मन की पीर ।।

फसलों को वह ताकता , बैठा आज मचान।
उड़ते पक्षी खोजते , देखो किधर किसान ।।

शीश घड़ा रखकर चलें , हम पनघट की ओर ।
छम-छम करके पायलें , कर देती थी शोर ।।

शीश घड़ा रखकर चलें , जब पनघट को नार ।
छम-छम पायल धुन वही , होती दिल के पार ।।

बाला जी अब आप ही , सुन लो आज पुकार ।
इस जग में बस आपकी , चलती है सरकार ।।

( 10 )

भाई तो घर-घर दिखे, लक्ष्मण दिखे न आज ।
मिले विभीषण खोज बिन, ऐसा आज समाज ।।

दशरथ बनकर भी कभी , जी कर देखे आप ।
यूँ ही हरते हैं नहीं , सुनो राम संताप ।।

कभी नन्द के द्वार अब , जाकर देखो आप ।
वहां मिलेंगे आपको , राधे के पदचाप ।।

बन क्या पाये राम हम , कर सीता की चाह ।
बन बैठी रानी अवध , कर लंका का दाह ।।

राधे माँ के नाम को , करो नहीं बदनाम ।
राधे-राधे भज यहां, पा लेगा तू श्याम ।।

जीवन की नैय्या मिली , सुख-दुख की पतवार ।
धीरज तुम खोना नही , है यही सार संसार ।।

सुख दुख के कारण कई , लेकिन एक उपाय ।
सुख के पीछे भाग मत , दुख हो सदा सहाय ।।

सुख दुख का तो मोल ही , जान न पाये कोय ।
सुख के पीछे भागकर , दुख पाये तो रोय ।।

पीर पराई देखकर , जिसको दुख हो आज ।
ऐसे मानव पे सदा , कृपा करे रघुराज ।।

सुख दुख जीवन संगिनी , मान इसे तू गेह ।
नही बड़ा कोई यहाँ , कर दोनो से नेह ।।

सुख दुख की छाया मिले , नित हो अधर सुधीर ।
जैसे प्यासे को मिले , सुंदर शीतल नीर ।।

सखा छुपा मत आज तू , करके सुंदर भेष ।
हृदय तुम्हारी पीर का , देती है संदेश ।।

रोना है संसार में , दुर्बल का हथियार ।
रोने से मिलता नही , सुन लो तुम उपचार ।।

नीर नयन से कह रहा , कर मत मुझको व्यर्थ ।
पीर और बढ़ती रहे , कुछ मत निकले अर्थ ।।

रो लैता मैं भी यहाँ , उठे हृदय जो पीर ।
कर तो कुछ सकता नही , पैर पड़ी जंजीर ।।

( 9 )

पति पत्नी के प्रेम का , करो सदा सम्मान ।
नही हास्य के पात्र अब , बना इसे इंसान ।।

क्यों अपने ही पर्व का , करते हम अपमान ।
मातु शारदे ने हमें , दिया नही क्या ज्ञान ।।

उपहारों की लालसा , छीन रही है नेह ।
जैसे सुंदर दिख रहे , आज तुम्हें ये गेह ।।

लौट रहे रघुवीर हैं , सुनो अवध के धाम ।
मातु सिया हैं संग में , बोलो जय श्री राम ।।

खुशियों का यह पर्व है , दीपो का त्यौहार ।
जयकारा श्री राम का , लगा रहा संसार ।।

त्वरित चाहतें आज वर , माँ से वे सब लोग ।
मातु-पिता को आज जो, दिए नही सुखयोग ।।

त्वरित न फलता पूण्य है , त्वरित न फलता पाप ।
त्वरित फलों की चाह में , भोग रहे संताप ।।

घर से निकले सोचकर , होगी उनकी दीद ।
रात स्वप्न में आ गई , लेकर मीठी नींद ।।

दे दूँ अपने प्रीति की , उनको एक किताब ।
मिल जायेगा फिर उन्हें , खुद ही देख जवाब ।।

प्रेम नाम के आज भी , बैठे ठग दो चार ।
समझाओ गिरधर उन्हें , छलते हैं जो प्यार ।।

अच्छा होगा आपका , रहना जग में हीन ।
दया दिखाकर लोग यह , लेते सब हैं छीन ।।

जीते जी जीता नही , मरने पर है जीत ।
कहते हैं गिरधर यही , यह है प्रभु की मीत ।।

राम नाम की दीप तो , करता हृदय प्रकाश ।
निर्धन को भी जो कभी , करता नही निराश ।।

यहाँ किसी को भी नहीं , लगा प्रेम का रोग ।
व्यर्थ करे बदनाम सब , करे सिर्फ उपयोग ।।

भूल गये मीरा सभी , भूल गये रसखान ।
राधे जैसे प्रेम को , तरस गये भगवान ।।

( 8 )

मातु-पिता को छोड़ जो , गये लोग हरिद्वार ।
खड़े वही झोली लिए , कर दो माँ उपकार ।।

देख-देख माँ भी दुखी , भटक रहा संसार ।
मेरे ही अवतार को , समझ रहा अब नार ।।

भीड़ बहुत है भक्त की , देखो माँ के द्वार ।
चल अपनी ही मातु को , पहनाएं हम हार ।।

प्रेम हृदय में जब जगे, होगा खुश इंसान ।
सुखी रहे संसार यह , माँ का है वरदान ।।

कण-कण माँ का वास है , पर हो तभी सहाय ।
चरण पकड़ उस मातु के , देगी वही उपाय ।।

माँ की जय जयकार से , गूँज रहा संसार ।
माँ मेरी ममता मयी , कर दें भव से पार ।।

माँ ही करती स्वार्थ बिन, सदा तनय से प्यार ।
उसपे ही औलाद यह , जता रही अधिकार ।।

एक हाथ में पुष्प तो , एक हाथ में भाल ।
ऐसी महिसा मर्दनी , बनी दुष्ट की काल ।।

पावन करवा चौथ का , आया है त्यौहार ।
लाये हैं पतिदेव जी , साड़ी का उपहार ।।

सभी सनातन पर्व ये , हैं जीवन आधार ।
हर्ष और उल्लास से , कर इनका सत्कार।।

दर्पण भी बतला रहा , तुम दोनो का प्यार ।
देख रहें तुझमें सजन , अपना ही संसार ।।

मुझपे तेरा पूर्ण ही , सुन लो है अधिकार ।
करो हमारी प्रीत से , जीवन भर शृंगार ।।

दो तन हम इक जान है , कहता है संसार ।
भूले से भी हो नही , सुनो कभी तकरार ।।

रंग रूप मत देखना , करना जब भी प्यार ।
यह ही तो है बावले , जीवन की पतवार ।।

खोल दिये हैं आज तो , मन मंदिर के द्वार ।
आकर करो निवास तुम , तुम को है अधिकार ।।

( 7 )

महकी महकी यह फिजा , महकी आज बहार ।
अब तो तेरे नाम से , हो जीवन उजियार ।।

अब तो इतनी हैं सजन , मेरी भी दरकार ।
तेरी बाहों का प्रखर , पड़े गले में हार ।।

डॉट डपट करते रहो , अपने सुत पर आप ।
ताकि कल न यह दे सके, जग को फिर संताप ।।

अपने सुत पर आप भी , छोडो अपनी छाप ।
यह दुनिया पहचान ले , सुनकर कल पद चाप ।।

रिश्तों की बोली लगी , खडे रहे अनबोल ।
होगी दौलत पास में , लेंगे सब यह तोल ।।

जीवों से ईर्ष्या नही , करता था इंसान ।
पर अपना उसने कभी , दिया नही स्थान ।।

अपने पन के प्रेम को , बचा न पाये आप ।
लूट उसे धन से जगत , दिया तुम्हें संताप ।।

प्रेम कभी बदला नही , प्रेम एक ही रूप ।
जीव-जन्तु मानव मिले , या सम्मुख हो भूप ।।

मानव मानव से कहाँ , अब करता है प्रेम ।
लगा हुआ है आजकल, चमकाने में नेम ।।

वैष्णों देवी मातु की , करता जग जयकार ।
इस युग में वह भक्त की , करती बेडा पार ।।

विंध्या वासिनी मातु की , महिमा है आपार ।
हर लेती संकट सभी , जो भी जाता द्वार ।।

करता रह नवरात्रि में , मातु भवानी ध्यान ।
करें कृपा जो मातु तो, मिले अभय वरदान ।।

राम राम का नाम ही , रखे राम के पास ।
राम राम के नाम में , रमते तुलसीदास ।।

जीवन की टेढ़ी डगर , तम ही दिखता छोर ।
हार नहीं मानो अभी , मंजिल है उस ओर ।।

मीलों का करके सफर , दिखा चाँद जब पास
कहता वापस लौट जा , है ये झूठी आस ।।

( 6 )

करते रहते तंज हैं , क्या होता है प्यार ।
सब कुछ तो हैं हारतें , दिल को भी दें हार ।।

मातु-पिता सेवा करो , हो जाओ उद्धार ।
क्या जाने भगवान फिर , दे मानव अवतार ।।

जीवन से अब हार कर , पाया है यह सीख ।
पेरी जाती है सदा , जग में देखो ईख ।।

आशा की पूँजी बड़ी, कभी न होती खर्च ।
रखिये अपने साथ नित , चाहे जायें चर्च ।।

आशा हो तो ईश भी , मिल जाते हैं द्वार ।
वरना रहिये खोजते , बन पागल संसार ।।

युग कितने बीते यहाँ , किया नहीं विश्राम ।
आशाओं से राम जी , लौटे अपने धाम ।।

धैर्य रखे इंसान तो , सब संभव हो जाय ।
आशाओं के दीप से , जग रोशन हो जाय ।।

मातु-पिता को पूज कर , पा लो तुम उद्धार ।
क्या जाने भगवान फिर , दे मानव अवतार ।।

जिस घर में करते सभी , नारी का सम्मान ।
वह घर होता है सदा , हर गुण से धनवान ।।

खुला गगन मुझको मिला , उड़ने को है आज ।
कैसे खुद को रोक लूँ , पूर्ण हुए बिन काज ।।

तीखे-तीखे नैन से , क्यों करती हो वार ।
हम तो तेरे हो चुके , पहनाओ अब हार ।।

इस जीवन में आप पर , बैठा ये दिल हार ।
लगा हृदय फिर से कहो , हुआ हमें भी प्यार ।।

करता हूँ मैं आज कल , छोटा सा व्यापार ।
लेना देना दिल यही , अपना कारोबार ।।

कुछ तो मेरी भी सुनो , अब मेरे दिलदार ।
भर दो झोली आज यह , पड़ा तुम्हारे द्वार ।।

कब तक बैठा मैं रहूँ , बोलो अब सरकार ।
पहनाओ मुझको गले , इन बाँहों का हार ।।

( 5 )

और नहीं कुछ चाहिए , मुझको दीनानाथ ।
जन्म मिले जब-जब मुझे , थामो मेरा हाथ ।।

भूल हुई जो भी यहाँ , क्षमा करो रघुनाथ ।
शरण आपकी नित मिले , झुका रहे यह माथ ।।

दासी बनकर मैं चलूँ , सदा आपके साथ ।
क्षमा सभी अवगुण करो , मेरे दीनानाथ ।।

मन को अपने स्वच्छ रख , बना प्रभु का धाम ।
मिलें नित्य मन स्नान से , सबको ही श्री राम ।।

जब तक तन में प्राण हैं , पाक इसे तू जान ।
इसमें दीनानाथ का , अंश भरा लें मान ।।

मैं पूजा के नाम पर , भजता उनका नाम ।
वेद मंत्र जानूं नहीं , यह तन उनका धाम ।।

श्वासों से प्रभु राम के , जोड़ रहा हूँ तार ।
भव से कर दें पार वे , माँग रहा उपहार ।।

निशिदिन जपते क्यों नहीं , संकट मोचन नाम ।
मिल जाये फिर पथ तुम्हें , सफल बने सब काम ।।

मातु-पिता सेवा करूँ , मिले मुझे बक्शीश ।
हर पल इनके संग हूँ , मान इन्हें मैं ईश ।।

करते नहीं प्रयास हैं, लेकिन सब संलग्न ।
हरि इच्छा किसने सुनी , अपने में सब मग्न ।।

माता के हर त्याग का , करना है सम्मान ।
यह जीवन उसका दिया , सुन ले अब इंसान ।।

माता से बढ़कर नहीं, होते देव महान ।
इनके चरणों में झुके , देख स्वयं भगवान ।।

पति पत्नी के बीच में, होती नाजुक डोर ।
ऐसे मत छेडो उन्हें , हो जाए दो छोर ।।

प्रेम कभी मरता नही , मर जाते हैं लोग ।
बात वही बतला गये , लगा जिन्हें था रोग ।।

बात-बात पर जग भला , क्यों देता है टोक ।
कहाँ आयु है प्रेम की , जो लूँ दिल को रोक ।।

( 4 )

मन में रख कर मैल जो , करते थे अरदास ।
अब चमकाने में लगे , देखो वही लिवास ।।

संग सजन के चाँद को , देख रही हूँ आज ।
मेरी उनकी प्रीति का , वैरी नही समाज ।।

छलनी लेकर हाथ में , देख रही हूँ चाँद ।
सात जन्म तुमसे बँधी , खुले नहीं यह फाँद ।।

छलनी लेकर हाथ में , सजन रही हूँ देख ।
सात जन्म तुमसे बँधी , मिटे नहीं यह रेख ।।

कलयुग की सबसे अहम , बात दिखी है सिद्ध ।
नारी को नर घूरता , ऐसे जैसे गिद्ध ।।

आप सनातन धर्म की , बने हुए हो शान ।
पढ़कर गीता आप भी , कर लो अब पहचान ।।

सदा सनातन धर्म पर , करना है अब गर्व ।
धन्य हुआ जीवन सुनो , पाकर ऐसे पर्व ।।

आदत अपनी छोड़ दे , कहना मेरा मान ।
पछतायेगा एक दिन , बन जा अब इंसान ।।

अच्छी आदत एक दिन , लाती है सुन रंग ।
जो जलते थे देखकर , वो भी होते दंग ।।

नित्य भ्रमण की तुम सुबह , आदत लो अब डाल ।
रहे न रोगी तन कभी , बदले जीवन चाल ।।

आदत जिसकी हो भली , करें नहीं वह बैर ।
सबसे हिल मिलकर चले , माँगें सबकी खैर ।।

आदत से मजबूर है , दुनिया में कुछ लोग ।
मतलब से करते यहाँ , जन-जन का उपयोग ।।

राजनीति के नाम पर , करते क्यों षडयंत्र ।
छोडो आदत है बुरी , प्यारा यह गणतंत्र ।।

आदत भी तो रोग है , लगे न छूटे देख ।
लगती जिसको भी यहाँ , बदले उसकी रेख ।।

नित्य तुम्हारे दीद से , आता मुझको चैन ।
आदत ऐसी पड़ गई , तुम बिन कटे न रैन ।।

( 3 )

रूठ गई हैं राधिका, कृष्ण करें मनुहार ।
लगा रहे हैं केश में , वो फूलों का हार ।।

यमुना तट पर बैठकर , रचा रहे हैं रास ।
आ बैठी हैं राधिका , देखो उनके पास ।।

अब तक जिनके प्रेम का , प्रकृति देखती बाट ।
वे तो राधेश्याम हैं , उनकी ऊँची ठाट ।।

उस ग्वाले की प्रीति को , जान रहा संसार ।
जिसे पूजता है जगत, कहकर पालन हार ।।

ग्वाले जैसा फिर कहाँ, दिया किसी ने ज्ञान ।
जिसको सुनकर देख लो , हुए धन्य इंसान ।।

छोड़ द्वेष की भावना , करे मनुज भी रास ।
क्यों ऐसा दिखता नही , पूछ रहा यह दास ।।

रास रचाकर आप क्यों , करते उनसे आस ।
यही नेह मानव करे , बन कर तेरा दास ।।

नाग पंचमी पर्व का , सुन लो बहुत महत्व ।
पढ़कर वेद पुराण को , जानो इसका तत्व ।।

मानों तो संसार में , पूज्य सभी हैं जीव ।
तभी सनातन धर्म में , हैं यह बहुत अतीव ।।

( 2 )

जबसे बन्द प्रणाम है, सब कुछ हुआ विराम ।
रिश्ते आज प्रमाण हैं , सम्मुख है परिणाम ।।

भजता आठों याम हूँ , जिनका हर पल नाम ।
वे ही सुधि लेते नहीं , कण-कण में है धाम ।।

हर पल तेरी ही शरण , रहता हूँ घनश्याम ।
कर दे अब कल्याण तो , मन में लगे विराम ।।

सुन लो इस संसार में , दो ही प्यारे नाम ।
पहला सीता राम है , दूजा राधेश्याम ।।

जीवन रक्षक आप हैं , जीवन दाता आप ।
फिर बतलाएँ आप प्रभु , होता क्यूँ संताप ।।

वह मेरा भगवान है , यह तन है परिधान ।
बस इतना ही जानता , यह बालक नादान ।।

डाल बाँह बीवी गले , भूल गये वह फर्ज ।
अब तो माँ के दूध का , याद नही है कर्ज ।।

(1)

जीवन में किस बात का , कहिए है अभिमान ।
मृत्यु बाद सब चाहते , दो गज भू का दान ।।

जीवन में संघर्ष ही , देता हरदम काम ।
एक समय के बाद में , दे सुंदर परिणाम ।।

परम-पिता से मेल का, कष्ट बनाये योग ।
बाद मृत्यु के आप भी , करते इसका भोग ।।

जीवन के संताप को , एक परीक्षा जान ।
करते जाओ पार सब , पाओगे सम्मान ।।

मीठे होंगे फल सभी , पहले कर संतोष ।
यूँ ही अपने भाग्य को , नहीं आप दें दोष ।।

करता जो संघर्ष है , मन में अपने ठान ।
पाता है वह एक दिन , जग में सुन सम्मान ।।

Mahendra Singh Prakhar

महेन्द्र सिंह प्रखर 

( बाराबंकी )

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